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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-93 (विषय: भविष्य)

आदरणीय साथियो,

सादर नमन।
.
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-93 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है। इस बार का विषय है 'भविष्य', तो आइए इस विषय के किसी भी पहलू को कलमबंद करके एक प्रभावोत्पादक लघुकथा रचकर इस गोष्ठी को सफल बनाएँ।  
:  
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-93
"विषय: "भविष्य''
अवधि : 30-12-2022 से 31-12-2022 
.
अति आवश्यक सूचना:-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी केवल एक लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं।
2. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फॉण्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, १०-१५ शब्द की टिप्पणी को ३-४ पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है। 
4. एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है। देखा गया कि कई साथी अपनी रचना पोस्ट करने के बाद गायब हो जाते हैं, या केवल अपनी रचना के आस पास ही मंडराते रहते हैंI कुछेक साथी दूसरों की रचना पर टिप्पणी करना तो दूर वे अपनी रचना पर आई टिप्पणियों तक की पावती देने तक से गुरेज़ करते हैंI ऐसा रवैया कतई ठीक नहींI यह रचनाकार के साथ साथ टिप्पणीकर्ता का भी अपमान हैI
5. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा गलत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताये हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
6. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि लिखने/लगाने की आवश्यकता नहीं है।
7. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
8. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें। 
.    
यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.
.
.
मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)

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Replies to This Discussion

सहभागिता हेतु बधाई आदरणीया दिव्या जी।विक्रम -बैताल को पात्र बनाकर कही गई आज की सामाजिक दशा पुनरावृत्ति जैसी लगी।फिर भी हकीकत से दूर नहीं है।वाक्य -विन्यास का ढीलापन,टंकण जनित त्रुटियां एवं विराम -चिन्हों का यत्र -तत्र लोप भाव  - ग्राह्यता में किंचित बाधक हुए हैं।

जी, सहमत। प्रथम ड्राफ्ट सा लगता है अभीसहभागिता हेतु तैयार।

चिरपरिचित बढ़िया शब्दों को संस्कृत में लेकर बढ़िया उम्दा शीर्षक दिया है। इस शैली में इस सहभागिता प्रयास हेतु हार्दिक बधाई आदरणीया दिव्या राकेश शर्मा जी। बेताल के लिये लगता है/कहता है/शुरू करता है.... कि जगह लगा/कहा/किया शैली में कहना बेहतर होगा मेरे विचार से।

तुम पढ़ना मेरी पाती (लघुकथा) :


आशानगर/ संध्या, ३१ दिसम्बर, २०२२


प्रिय भविष्य,


ख़ुश रहो। ख़ुशियाँ बाँटने की कोशिशें करते रहो। यूँ तुम्हें शिक़ायत रहती है कि मैं तुम्हारी चिंता नहीं करता। सिर्फ़ तुमसे उम्मीदें लगाये रहता हूँ। देखो, मुझे तुम्हारी चिंता ही तो रहती है न, जो आज साल के आख़री रोज़ तुम्हें याद कर रहा हूँ। नया साल मनाने फ़िर तुम आओगे न। भविष्य मेरा हो, मेरे परिवार का या समाज का या मेरे देश या दुनिया का... हमेशा तुम्हें उज्जवल ही तो माना गया है, है न! लेकिन मैं उन महान शख़्सियतों की आशाओं पर ग़ौर करते-करते चिंता ग्रस्त या निराश हो जाया करता हूँ जिन्होंने किसी ज़माने में महिलाओं को ज़िंदा जलाये जाने यानि सती प्रथा के विरुद्ध जनजागरूकता की मशाल जलाई थी; जिन्होंने महिला शरीर को ढकने व उसकी सुरक्षा के लिये रीति-रिवाज़ और संस्कृति-संस्कार के बीज बोये थे; जिन्होंने स्त्री-पुरुष समानता की बात की और सोची थी; जिन्होंने हिंदुस्तान को सच्ची आज़ादी दिलाने और उसके सच्चे विकास की रूपरेखा तय कर उसकी मशाल जलाई थी। दरअसल उन्होंने तुम्हें जिस रूप में देखा था... उन्हें तुमसे जो उम्मीदें और अपेक्षाएं थीं... वे पूरी होते-होते शेष ही रह गईं। तुमने संतुष्ट करने के चक्कर में उन समस्याओं ...उन अपेक्षाओं का रूप-स्वरुप ही बदल कर रख दिया आधुनिकता के नाम पर, फ़ैशन के नाम पर, भौतिकता के नाम पर या अंतरराष्ट्रीय कारोबार-औद्योगिकीकरण के नाम पर। ज़ीरो टॉलरेन्स, ज़ीरो पॉवर्टी, ज़ीरो इल्लिट्रेसी, शून्य बेरोज़गारी के सपनों का क्या हुआ? ग़रीबों,अनपढ़ों, बेरोज़गारों की मंज़िलों का क्या हुआ। ये तो तुम ही बेहतर समझते है.. दोषियों को समझते-परखते हो। हमें दिलासा देने तभी तो हमारी दुआओं, प्रार्थनाओं, तीज-त्योहारों और पर तुम नज़र आते हो, तभी तो तुम 'हैप्पी न्यू ईअर' पर भी मीठी दस्तक देते हो। लेकिन तुम्हारा भी तो एक चक्र है वर्तमान, भूत और भविष्य का। यह चक्र लुभावना रहे या कष्टकारी, यह हमारी 'कथनी और करनी' पर तय होता है, है न!


आज इक्तीस दिसम्बर की देर रात भी आओगे; संक्रामक महामारियों से बचने-बचाने की और ख़ुशियाँ और तोहफ़े बँटने-बाँँटने की उम्मीद और भरोसा दिलाओगे, है न! मिलते हैं फ़िर नववर्ष में!


तुम्हारा 'वर्तमान'


(मौलिक, स्वरचित, अप्रसारित व अप्रकाशित)

आद0 शेख शहज़ाद उस्मानी साहब पाती के माध्यम से देश काल परिस्थितियों का अच्छा वर्णन किया है आपने। मुझे तो यह लघुकथा अच्छी लगी। बधाई आपको

रचना पटल समय देकर अपनी राय से मुझे प्रोत्साहित करने हेतु व पहली प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक धन्यवाद आदरणीय नाथ सोनांचली जी। आदरणीय सर जनाब योगराज जी के सुझाव व मार्गदर्शन अनुसार लघुकथा की ऐसी शैलियों में लघुकथायें लिखने के प्रयास के क्रम में मेरा यह अगला प्रयास है जिन पर हमारी/आज की पीढ़ी कम लिख रही है। कितना सही है लेखन यह तो गुरुजन/वरिष्ठजन ही बता सकेंगे। इसी तरह नई प्रयोगात्मक शैलियों की बात भी की गई है इस वर्ष। उसका प्रयास भी कर रहे हैं।

आदरणीय उस्मानी जी,जाते और आते वक्त की नब्ज टटोलती आपकी लघुकथा सम्पूर्ण साल का या यों कहूं कि लगभग हर साल का लेखा -जोखा प्रस्तुत करती है।बधाई लीजिए।अपनी दो पंक्तियाँ याद आ गईं:               "आज करेंगे लेखा जोखा,

 प्यार मिला या खाये धोखा।"

 "आज करेंगे लेखा जोखा,

 प्यार मिला या खाये धोखा।"

वाह। आपकी इन बेहतरीन पंक्तियों के साथ मेरी रचना के अनुमोदन हेतु व मेरी यूँ हौसला अफ़ज़ाई हेतु बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय मनन कुमार सिंह जी।

आ. भाई शेखशहजाद जी, सादर अभिवादन। अच्छी कथा हुई है। हार्दिक बधाई।

आदाब। रचना पटल पर उपस्थिति और मेरी हौसला अफ़ज़ाई हेतु हार्दिक धन्यवाद आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी।

ग़ुरूर - लघुकथा -

बाबू जी नाश्ता करके अपने कमरे में गए ही थे कि तुरंत बड़बड़ाते हुए लौट आए और जोर जोर से कमली को पुकारने लगे। कमली रसोईघर में बर्तन धो रही थी। बाबू जी भी रसोईघर में ही आ गए। 

 "कमली अभी तुमने मेरा कमरा साफ किया था। मेरी घड़ी नहीं मिल रही। मेज पर रखी थी।

"मेज पर तो नहीं थी बाबू जी।आप कहीं और जगह रख दिए होंगे।

"कमली, मैं अभी इतना बूढ़ा और भुलक्कड़ नहीं हुआ हूँ। 

"बाबूजी मैंने ऐसा तो कहा ही नहीं।

"अच्छा ये बता तेरा बेटा अभी किसलिए आया था? कहीं उसे तो नहीं दे दी मेरी घड़ी?”

"बाबू जी, वह तो घर की चाबी लेने आया था।

"तुम ऐसे नहीं बताओगी।मुझे पुलिस बुलानी पड़ेगी।

और फिर बाबू जी पुलिस को फोन करने लगे।

मैं  भौचक्की सी बाबू जी और कमली की बातें सुन रही थी। मैं  कुछ भी बोलने की स्थिति में नहीं थी। हालांकि मुझे विश्वास था कि कमली ऐसा नहीं कर सकती। वह पिछले कई साल से काम कर रही थी।वह बहुत जिम्मेदार और ईमानदार काम वाली थी। कभी कोई शिकायत का मौका नहीं दिया था। 

लेकिन मैं अपने ससुर जी के मिजाज को भी जानती थी। वह बहुत गुस्से वाले हैं। अतः वह बाबू जी को भी कुछ कहने का साहस नहीं जुटा पा रही थी। 

इसी बीच पुलिस भी आ गई। बाबू जी ने सारी बात बता कर दरोगा जी से कहा,"इसे ले जाओ और इसके घर की तलाशी लो।" 

इसके बेटे को भी हिरासत में लेकर पूछताछ करो। सीधे तरीक़े से नहीं बताये तो थर्ड डिग्री  काम में लो।

चूंकि बाबू जी भी पुलिस के रिटायर्ड एस पी थे इसलिये दरोगा चुपचाप कमली को लेकर चल दिया। 

कमली रोये जा रही थी। वह बार बार यही कह रही थी कि उसने घड़ी नहीं ली है। 

निराश होकर कमली ने बाबू जी के पैर पकड़ लिये,"बाबू जी, मेरे बेटे को इस मामले में मत घसीटिये। उसका जीवन चौपट हो जायेगा। आप घड़ी के दाम मेरी पगार में से काट लेना।

लेकिन बाबू जी पर उसकी किसी फ़रियाद का कोई असर नहीं हो रहा था।

दरोगा जी कमली को लेकर अभी मेन गेट पर ही पहुंचे थे कि उसी वक्त मेरे पति राहुल जी आ गए। वह भी एक सैन्य अधिकारी हैं। अपने घर पर पुलिस देख कर दंग हो गए। दरोगा जी ने राहुल को सारी घटना सुनाई। 

राहुल जी ने पुलिस से कमली को छोड़ने को कहा,"आप लोगों को तकलीफ हुई। आप जाइये। मैं इस मामले को देख लूंगा।" राहुल जी कमली को लेकर अंदर आए,"बाबू जी, आपने कल अपनी घड़ी मुझे दी थी। इसकी बैटरी बदलवाने के लिए। ये लीजिए आपकी घड़ी।" 

राहुल जी की बात से घर में सन्नाटा पसर गया। 

उस सन्नाटे को कमली की दुख भरी आवाज़ ने तोड़ा,"बीवी जी, मैं कल से आपके घर काम पर नहीं आएगी।" 

"अरे कमली,  अब तो सब कुछ ठीक हो गया। कोई निर्णय लेने से पहले दस बार सोचना चाहिये।

बीबी जी, दस बार नहीं सौ बार भी मुझे सोचना पड़े तो भी मेरा निर्णय यही रहेगा क्योंकि कल क्या होगा, कौन जाने? विश्वास का धागा अब टूट चुका है।" ———————————————————————————————————————————

मौलिक, स्वरचित एवं अप्रकाशित 

आदाब। प्रदत्त विषय को एक भिन्न कोण से लेते हुए'विश्वास और स्वाभिमान के भविष्य के साथ अपनी-अपनी नौकरी के अनुभवों/प्रवृत्तियों/निर्णय की आदतों को उभारती बढ़िया रचना हेतु हार्दिक बधाई मुहतरम जनाब तेजवीर सिंह साहिब। आपकी प्रविष्टि का हम पाठकों को इंतज़ार रहता है। रचना कहानीनुमा न लगे, इसके लिए इसमें तनिक सी कसावट की गुंजाइश है मेरे विचार से। (कुछ बातें अनकहे में छोड़ते हुए।)

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