For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-90 (विषय: प्रतीक्षा)

आदरणीय साथियो,

सादर नमन।
.
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-90 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है। इस बार का विषय है ''प्रतीक्षा', तो आइए इस विषय के किसी भी पहलू को कलमबंद करके एक प्रभावोत्पादक लघुकथा रचकर इस गोष्ठी को सफल बनाएँ।  
:  
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-90
"विषय: प्रतीक्षा''
अवधि : 29-09-2022  से 30-09-2022 
.
अति आवश्यक सूचना:-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी केवल एक लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं।
2. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फॉण्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, १०-१५ शब्द की टिप्पणी को ३-४ पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है। 
4. एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है। देखा गया कि कई साथी अपनी रचना पोस्ट करने के बाद गायब हो जाते हैं, या केवल अपनी रचना के आस पास ही मंडराते रहते हैंI कुछेक साथी दूसरों की रचना पर टिप्पणी करना तो दूर वे अपनी रचना पर आई टिप्पणियों तक की पावती देने तक से गुरेज़ करते हैंI ऐसा रवैया कतई ठीक नहींI यह रचनाकार के साथ साथ टिप्पणीकर्ता का भी अपमान हैI
5. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा गलत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताये हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
6. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि लिखने/लगाने की आवश्यकता नहीं है।
7. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
8. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें। 
.    
यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.
.
.
मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)
ओपनबुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
Facebook

Views: 2558

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

आदरणीय रवि भसीन 'शाहिद' जी,
1. //लघुकथा किसी दार्शनिकता को ले कर चल रही थी, इसका मुझे ज्ञान नहीं है, हाँ चौहान साहिब ज़रूर जीवन का फ़लसफ़ा राजू को समझा रहे थे// एक तरफ़ आप यह कह रहे हैं कि लघुकथा किस दार्शनिकता को लेकर चल रही है इसका आपको ज्ञान नहीं है और दूसरी तरफ़ यह भी कह रहे हैं कि चौहान साहिब राजू को जीवन का फ़लसफ़ा समझा रहे थे। दोनों बातें एकसाथ कैसे?
2. //मैंने कहानी में कोई दार्शनिकता व्यक्त करने का प्रयास नहीं किया है, ये कहानी तो बस ज़िन्दगी का एक कतला है - दो लोगों के जीवन में कुछ क्षण।// ज़रूरी नहीं कि रचना में सिर्फ़ वही चीज़ें व्यक्त हों जिन्हें हम व्यक्त करना चाहते हों। कई बार अनचाहे भी कई चीज़ें व्यक्त हो जाती हैं जिनका हमें पता भी नहीं चलता। यह बात सही है कि इस लघुकथा में दो लोगों के जीवन के कुछ क्षण हैं पर जो क्षण हैं उनमें से एक दार्शनिक अभिव्यक्ति भी है।
3. //इंसान अपने फ़लसफ़े और आदर्श झाड़ता रह जाता है और ज़िन्दगी उन्हें एक पल में रौंद कर आगे बढ़ जाती है// यह कहना कि इंसान अपने फ़लसफ़े और आदर्श झाड़ता रह जाता है फ़लसफ़े की सतही समझ है। फिर यह कहना कि ज़िन्दगी एक पल में रौंद कर आगे बढ़ जाती है क्या स्वयं में जीवन के प्रति एक फ़लसफ़ा नहीं है?
4. //कुछ आपराधिक मानसिकता वाले लोगों का हृदय परिवर्तन हो भी जाता है, और कुछ का नहीं होता - राजू का नहीं हुआ, अब क्या कीजियेगा।// क्या करूँगा, कुछ नहीं। राजू आपका पात्र है। उसका हृदय परिवर्तन होगा या नहीं इसका अन्तिम निर्णय आप ही करेंगे मैं नहीं। //हर इंसान अच्छाई के प्रभाव में अच्छा नहीं हो जाता, और न ही हर इंसान बुराई के प्रभाव में बुरा।// बिल्कुल।
5. //हो सकता है राजू का मालिक को मारने का इरादा कुछ दिन पहले ही बना हो। और वैसे भी राजू को कुछ महीने/एक साल का समय तो लग गया होगा चौहान साहिब का विशवास जीतने में और घर के अंदर ही रहने वाला सहायक बनने में, फिर ये भी है कि उसे कुछ अर्सा शायद मौक़े का इंतिज़ार करना पड़ा हो - जब घर पर कोई और नौकर न हो, या जब कहीं से मोटी पेमैंट आई हो और अभी घर की तिजोरी में ही हो...// होने को बहुत कुछ हो सकता है पर इसका इशारा तो आपको अपनी रचना में देना पड़ेगा न?
6. //यदि आपके दिमाग़ में लघुकथा का कोई और उपयुक्त शीर्षक हो तो ज़रूर बताइयेगा।// जी अवश्य। पर पहले यह तो पता चल जाए कि आप अपनी रचना में परिवर्तन चाहते हैं (जो कि लगता नहीं) या इसे इसी रूप में रखना चाहते हैं (जो कि लगता है)।
सादर।

आदरणीय भसीन जी, सहभागिता हेतु बधाई। विस्वासघात,दुरभिसंधि की वारदात होती रहती है। पर, यहाँ एकदम से ऐसा हो गया है,जो थोड़ा खटकता है। वैसे विषयवस्तु को सहेजने का आपका प्रयास अच्छा रहा है। हाँ, 'इंतिज़ार' शब्द की अनावश्यक पुनरावृति रचना के प्रभाव के आड़े आती-सी लगती है। वार्तालाप को सुगठित करने पर इस दोष से बचा जा सकता है। फिलवक्त, रचना के लिए शुभकमनाएं। 

आदरणीय मनन कुमार सिंह जी, लघुकथा को अपना क़ीमती वक़्त देने के लिए आपका हार्दिक आभार। सकारात्मक आलोचना और बहुमूल्य सुझाव के लिए बहुत बहुत शुक्रिया जनाब, शुभकामनाएँ, सादर

आ० रवि भसीन शाहिद जी, इस लघुकथा के संवाद चुस्त और चुटीले हैं, रचना में जिस तरह से एक अकेले इंसान के आलम-ए-तन्हाई को उभारा गया है, वह प्रभावित करता है. प्रदत्त विषय के साथ पूर्ण न्याय हुआ है. 'इन्तिज़ार' और 'ज़ियादा' आदि आदि शब्द चुभ रहे हैं. यदि निम्नलिखित पंक्तियाँ इस लघुकथा से हटा दी जाएँ तो रचना का प्रभाव भी द्विगुणित होगा और रचना अस्वाभाविक (बल्कि नाटकीय) अंत से भी बच जाएगी,

"आपका इन्तेज़ार ख़त्म हुआ बाबू जी," कहते हुए राजू बिजली की गति से उनकी ओर लपका और छ: इंच का चाकू उनके सीने में उतार दिया। फिर उनकी जेब से तिजोरी की चाबी निकाल कर वो बैडरूम की तरफ़ चल दिया।

बहरहाल इस कसी हुई प्ढ़ारस्लतुति पर मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें.    

आदरणीय योगराज प्रभाकर साहिब, हौसला-अफ़ज़ाई और इस्लाह के लिए आपका तह-ए-दिल से शुक्रगुज़ार हूँ।

 दार्शनिकता के फ्लेवर के साथ रचना जिस एक सत्य/ सामाजिक समस्या की तरफ भी इशारा कर रही है वो है  एकाकी वरिष्ठ नागरिक की सुरक्षा की समस्या जो बड़े शहरों में हर दिन बढ़ रही है। अंत में सेवक का खूनी बन जाना दार्शनिकता के बहाव में झटका और थोड़ी नाटकीयता जरूर है पर सच्चाई है। इसको सकारात्मक अंत देने के लिये मैं सेवक का ह्रदय परिवर्तन नहीं दिखाती( जो मेरे अनुसार अस्वाभाविक है क्यों कि इस तरह के अपराधी लंबी प्लानिंग और विश्वास अर्जित करने के बाद ही अपने काम को अंजाम देते हैं)बल्कि मालिक का हिम्मत से विरोध करना या ऐसा ही कुछ दिखाती।एक अच्छी लघुकथा के लिये बधाई स्वीकार करें आदरणीय

हार्दिक बधाई आदरणीय रवि भसीन शाहिद जी। बेहतरीन सन्देश प्रद लघुकथा।

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय तेज वीर सिंह साहिब!

आपका हार्दिक आभार आदरणीय प्रतिभा पांडे साहिबा।

ग्रहण - लघुकथा - 

राजू दुकान से घर आते ही सीधे बाबूजी के कमरे में पहुंचा। अपने बैग से बाबूजी की दवाओं का पॉकिट निकाल कर बाबूजी के बेड से लगी मेज पर रख दी।बाबूजी ने लेटे लेटे ही हाथ के इशारे से राजू को अपने पास बैठने का आग्रह किया। राजू तुरंत उनके बेड के किनारे पर ही बैठ गया। 

पिछले दो साल से बाबूजी बिस्तर पकड़े हुए थे।मधुमेह और रक्तचाप की शिकायत तो पहले से ही थी। लेकिन कोरोना काल में धंधा चौपट हुआ तो वे यह सदमा नहीं झेल पाये और लकवा के शिकार हो गये। दस दिन अस्पताल में रहे। विशेष लाभ तो नहीं हुआ मगर जान बच गई।डॉक्टर तो उन्हें और कुछ दिन अस्पताल में रखना चाहते थे लेकिन कोई लाभ नहीं हो रहा था। आर्थिक तंगी की परिस्थितियाँ भी आड़े आ रही थीं। 

अतः सर्व सम्मति से बाबूजी को घर लाना ही उचित लगा। क्योंकि जो इलाज अस्पताल में चल रहा था वह तो घर में भी हो सकता था।

लकवे का असर मुँह पर भी था अतः बाबूजी हकलाते हुए बोले,"बेटा, ऐसा कब तक चलेगा?”

"सब ठीक हो जायेगा बाबूजी।

"बेटा, इन दो साल में सारा परिवार अव्यवस्थित हो गया है।पैसा पानी की तरह खर्च हो रहा है। लाभ कुछ भी नहीं हो रहा। तुम भी कारोबार पर पूरा ध्यान नहीं दे पा रहे हो।

"आप यह सब मत सोचा करो।अधिक चिंता तथा मानसिक तनाव  से आपकी बीमारी और बढ़ेगी।

"बेटा, मेरी तो उम्र भी पूरी हो चुकी है।अब मेरे तो जाने का वक़्त हो चुका है ।तुम मेरे लिये अपने बच्चों का भविष्य क्यों दाव पर लगा रहे हो?”

"ऐसा कुछ भी नहीं किया है मैंने?”

"मुझे पता है बेटा, तुमने दोनों बच्चों को प्राइवेट स्कूल से निकाल कर सरकारी स्कूल में दाखिल कर दिया है।

"बाबूजी, अब दिल्ली में सरकारी स्कूल भी बहुत अच्छे हो गये हैं।

क्यों  मुझे बहला रहे हो? अच्छा ,मेरी एक बात मानोगे।

"बाबूजी, आपके लिये मैं कुछ भी करूंगा। आप मेरे भगवान हो। माँ तो बचपन में ही गुजर गई थी। आपने ही मुझे दोनों का प्यार दिया। और तो और मेरे ही कारण आपने दूसरा ब्याह  भी नहीं किया। आप बोलिये क्या चाहिये?”

"बेटा, मैं खुद भी इस अपाहिज जिंदगी से ऊब चुका हूँ। सारी दिनचर्या बिस्तर में । मैं रोज ऊपर वाले से प्रार्थना करता हूँ कि अब तो मुझे बुला ले। लेकिन वह भी मेरी नहीं सुनता"

"बाबूजी आप भी"

"पहले मेरी पूरी बात सुन लो।

"हाँ बोलो।

मेरे नाम से एक  "इच्छा मृत्यु"  की अर्ज़ी लगा दो।" 

मौलिक एवं अप्रकाशित

आदरणीय तेज वीर सिंह जी, बहुत उम्दा लघुकथा लिखी आपने, आपको दाद और हार्दिक बधाई पेश करता हूँ। आपके लेखन में सहजता, स्वाभाविकता और प्रवाह है, जो मुझे बहुत अच्छा लगा। कोरोना काल की विपदा को ख़ुद भी भोगा है, इसलिए कहानी के पात्रों की मनोदशा समझ सकता हूँ। कुछ सुझाव पेश कर रहा हूँ:
पहुंचा – पहुँचा
पॉकिट – पैकेट
मेज – मेज़
"अतः सर्व सम्मति से..." ये पंक्ति पिछले पैराग्राफ़ के साथ ही शामिल की जा सकती है
दाखिल – दाख़िल
करूंगा – करूँगा
गुजर – गुज़र
खुद – ख़ुद
जिंदगी – ज़िंदगी
रोज – रोज़
मेरे नाम से एक "इच्छा मृत्यु" की अर्ज़ी लगा दो।" – "मेरे नाम से एक 'इच्छा मृत्यु' की अर्ज़ी लगा दो।"
रचना के लिए शुभकामनाएँ, सादर

हार्दिक आभार आदरणीय रवि भसीन शाहिद जी।

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर और भावप्रधान गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
23 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"सीख गये - गजल ***** जब से हम भी पाप कमाना सीख गये गंगा  जी  में  खूब …"
4 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"पुनः आऊंगा माँ  ------------------ चलती रहेंगी साँसें तेरे गीत गुनगुनाऊंगा माँ , बूँद-बूँद…"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"एक ग़ज़ल २२   २२   २२   २२   २२   …"
11 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"स्वागतम"
23 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
23 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय चेतन जी सृजन के भावों को मान और सुझाव देने का दिल से आभार आदरणीय जी"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय गिरिराज जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। दोहों पर आपकी प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन हुआ। स्नेह के लिए आभार।"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए आभार।"
Thursday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरनीय लक्ष्मण भाई  , रिश्तों पर सार्थक दोहों की रचना के लिए बधाई "
Thursday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  भाई  , विरह पर रचे आपके दोहे अच्छे  लगे ,  रचना  के लिए आपको…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service