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आदरणीय सतविन्द्र जी धन्यवाद आपने मेरी त्रुटी की ओर ध्यान दिलाया ....
अच्छी कथा है पर यह कई प्रश्न भी उठाती है .
शांती जी बहूत ही उम्दा पहला प्रयास आपका.वाकई बेटी के पढ-लिख जाने पर क्या मकसद सिर्फ़ शादी ही होना चाहिए.बधाई आपको शान्दार प्रयास के लिये
आदरणीया शांति जी , अच्छी एवं सीख देती लघु कथा के लिए हार्दिक बधाई। ..
लडकियों की आंकाक्षा का कोई मोल नहीं होता है. सुंदर आदरणीय शांति पुरोहित जी. बधाई.
बहुत अच्छा विषय उठाया है आपने आदरणीया शांति पुरोहित जी, शादी होते ही कई सारी आकांक्षायें समाप्त हो जाती हैं| सादर बधाई आपको इस रचना के सृजन हेतु|
बहहुत अच्छी तरह से निर्वहन किया है आपने कथ्य का \ अति-सुंदर \ बधाई
आदरणीया , कहानी की नायिका नारी है और नारी मन को आप परमात्मा की बेटियों से बेहतर कौन जान सकता है।
बिन मांगे सलाह देना बेवकूफी है , कर रहा हूँ : नायिका अपनी आकांक्षा अमेरिका में भी पूरी कर सकती है , ग्लोब के किसी भी हिस्से में।
इसकी जगह कोई और वज़ह बनी होती तो मुझे यह बेवकूफी न करनी पड़ती।
भविष्य में आप मुझे यह सुअवसर नहीं देगी न ?
अच्छी लघुकथा हुई है आ० शांति पुरोहित जी, बधाई स्वीकारें I सुधि साथियों की बात का संज्ञान अवश्य लें I
प्रदत्त विषय को सार्थक करती अच्छी कहानी लिखी है आ० शान्ति जी हार्दिक बधाई
हार्दिक बधाई आदरणीय शांति पुरोहित जी ! बहुत अच्छी और समयानुकूल लघुकथा है!लडकियां जितने ताने बाने बुनती हैं अपने भविष्य को लेकर, मेरे विचार में चंद ही खुश किस्मत होती हैं जो उन्हें पूरा कर पाती हैं!शानदार प्रस्तुति!
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