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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-84

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 84वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह जनाब जिगर मुरादाबादी  साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|

"अपना सा क्यूँ  मुझ को बना कर चले गए"

221    2121     1221     212

मफऊलु फाइलातु मुफाईलु फाइलुन

(बह्र:  मुजारे मुसम्मन अखरब मक्फूफ़ )

रदीफ़ :- कर चले गए 
काफिया :- आ (बना, मिटा, हवा, दिखा आदि)
 

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 23 जून दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 24 जून  दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

 

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 23 जून दिन शुक्रवार  लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन
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मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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Replies to This Discussion

कुछ रोज़ मैं झटकता रहा हाथ ख्वाबों का

अब ख़्वाब मेरा हाथ छुड़ाकर चले गए-----वाह्ह्ह्हह 

बहुत सुंदर ग़ज़ल कही शिज्जू भैया बहुत बहुत बधाई बस एक जगह आद० तस्दीक जी की बात विचारणीय है 

 

वाहहहह! क्या खूब गजल कही है शिज्जू शकुर भाई आपने। मतला भी बहुत खूब हुआ है। बहुत बधाई इस उम्दा गजल के लिए।

वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह वाह

आदरणीय भाई शिज्जू जी अच्छी गजल हुई है हार्दिक बधाई स्वीकारें ।

वाह आ. शिज्जु "शकूर" सर, क्या शानदार ग़ज़ल पेश की है आपने. हर शेर लाजवाब है. दिल से ढेर सारी बधाई स्वीकार कीजिए. " जब हक़बयानी मेरी न आई पसंद तो / नीयत पे सौ सवाल उठाकर चले गए" इस शेर के लिए अलग से दाद हाज़िर है. सादर.

आये जरूर दिल को जला कर चले गए ।

जो घाव था नासूर बना कर चले गए ।

ग़मगीन भला किसके लिये है यहाँ कोई ,

एक रस्म था जो फूल चढ़ा कर चले गए ।

वो खुदकुशी को भी सियासत बना दिया ,

आतिश बुझाने आये लगा कर चले गए ।

काश ! बदलने का हुनर सीख लेते हम ,

अपना सा क्यूँ न मुझ को बना कर चले गए ।

मापतपुरी बह्र में कभी आते नहीं तुम ,

दिल में जो भी आये सुना कर चले गए ।

    ( मौलिक एवम अप्रकाशित )

आदरणीय सतीश मापतपुरी जी आदाब, बिलकुल नये अंदाज़ की ग़ज़ल । शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल करें ।

मुहतरिम जनाब आरिफ साहिब , आदाब ,हौसलाअफजाई के लिए शुक्रिया ।

वाह वाह आदरणीय सतीश जी साड़ी की साड़ी ग़ज़ल बहुत उम्दा हुई है,, बहुत खूब 

धन्यवाद आदरणीय गुरप्रीत जी 

मुहतरम जनाब सतीश साहिब,ग़ज़ल की अच्छी कोशिश ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमायें
शेर1 सानी--नासूर जो था घाव बना कर चले गए
शेर 2 -ग़मगीन कोई है यहां किस के लिए भला
इक रस्म थी जो फूल चढ़ा कर चले गए
शेर 3--हैरत है खुद कशी को सियासत बना दिया
आये बुझाने आग लगा कर चले गए
शेर 4 उला--आता हमें भी काश बदलने का कुछ हुनर
शेर 5--आते नहीं हो बह्र में मापतपुरी कभी
जो दिल में आ गया वो सुना कर चले गए
इन मिसरों से मिलान करने पर आपको बह्र का अंदाज़ा हो जाएगा ।

उदाहरण सहित बहुत बढ़िया समझाया आपने. धन्यवाद.

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