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आ० श्रधा जी की बात से सहमत हूँ, रचना कालखंड दोष से ग्रसित है I प्रतिभागिता हेतु साधुवाद स्वीकारें आ० लड़ीवाला जी
शराबबंदी का बढ़िया विषय उठाया है आपने इस रचना के माध्यम से , बधाई आपको
कथानक का चुनाव और शब्दों का प्रवाह बहुत खूब हुआ है। बधाई !
काश कोई ऐसा संकल्प उठा लेता |बहुत बहुत्बधाई अच्छी संदेशप्रद कथा केलिय आदरणीय | सादर नमस्ते |
सुन्दर सन्देश है आ.लक्ष्मण रामानुज लडीवाला जी,शराब बंद का संकल्प अगर सभी ले ले तो ये समस्या सुलझ जाएगी |
हार्दिक बधाई आदरणीय लक्ष्मण जी!आपका प्रयास तो निःसंदेह सराहनीय है!संकल्प भी है!मगर यह लघुकथा के दायरे में है कि नहीं ,यह तो गुणी लोग और विशेषज्ञ ही निर्धारित कर सकते हैं!
आदरणीय लक्ष्मण रामनुज लड़ीवाला जी, कथा कुछ सपाट सी बनी है (क्षमा सहित) कथा पढ़ते समय मैं इसमें इनवाॅलव नहीं हो पाया। कालखंड के बारे में सुधिजन कह ही चुके हैं। सादर
निर्णय
ईश्वर ने पृथ्वी के निर्माण के लिए पंचद्रव्यों के अलावा बहुत से गुण-अवगुण, भावों, क्रियाओं के रंग-बिरंगे डिब्बे भर कर रखे थे. उनके दिमाग में पृथ्वी कैसे बनेगी, कैसी होगी विचार उमड़ते रहते लेकिन ऐसे रचना करूँ या वैसे रचना करूँ के फेर में पृथ्वी कोरे कागज सी ही बनी रही. अपने मानसिक झंझावातों में उलझे हुए एकदिन उन्होंने तूफानी समुद्र रच दिया. अचानक उन ने पाया कि उस तूफानी समुद्र ने उनके दो डब्बों को खींच लिया है.
ईश्वर ने देखा कि संकल्प का डब्बा बड़ा है वह कुछ देर मदद का इंतजार कर सकता है. उन्होंने छोटे डब्बे में भरे विकल्प को बचाने की कोशिश की. उसे लहरों से निकाल समुद्र तट पर छोड़ा और फिर संकल्प की ओर हाथ बढ़ाये. वह संकल्प तक पहुंचे तो उन्होंने पाया कि विकल्प लहरों के आगोश में आ फिर डूब रहा है. संकल्प अभी भी संभला हुआ था. वह फिर विकल्प की ओर बढ़ गए.
ऐसा ही पुनः हुआ. पुनः-पुनः हुआ. अब तक संकल्प का डिब्बा भी कमजोर पड़ डूबने लगा था. ईश्वर ने विकल्प की ओर ध्यान देना छोड़ कर संकल्प की ओर कदम बढ़ा दिया. उन्होंने जैसे ही संकल्प को बचाने के लिए कस कर पकड़ा तो विकल्प से भरे डिब्बे को लहरों ने खुद ही किनारे छोड़ दिया.
समुद्र की लहरों से संघर्ष करते, संकल्प को कस कर पकड़े हुए ईश्वर ने उसी क्षण निर्णय कर लिया कि जिस भी मानव को रचने में वे संकल्प के डिब्बे से रंग लेंगे अंततः उसकी जिंदगी इन्द्रधनुषी रंगों से सज जाएगी और जल्दी ही पृथ्वी भी इन्द्रधनुषी रंगों से सज गई.
मौलिक एवं अप्रकाशित
वाह वाह श्रध्दा जी, विकल्प और संकल्प में अंतर को क्या ही बाकमाल ढंग से चित्रित किया है I हार्दिक बधाई स्वीकारें I
लघुकथा अच्छी हुई है तो सर इसके लिए आप और नया लेखन के अनुभवी सदस्य मेरी हार्दिक बधाई स्वीकारें सर.
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