For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-79

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 79 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह जनाब मोहम्मद अहमद रम्ज़ साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|

 
ऐसा लगता है कि क़िस्सा मुख़्तसर होने को है "

फाइलातुन     फाइलातुन       फाइलातुन       फाइलुन

2122   2122   2122     212

(बह्र: रमल मुसमन महजूफ)
रदीफ़ :- होने को है 
काफिया :- अर (असर, मुख़्तसर, गुहर, सहर आदि)
 

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 27 जनवरी दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 28 जनवरी दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 27 जनवरी दिन शुक्रवार  लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन
बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.comपर जाकर प्रथम बार sign upकर लें.


मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 14109

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

वाह साहिब बधाई स्वीकार करें

आदरणीय अशफ़ाक अली जी, आपने बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है. शेर दर शेर दाद हाज़िर है-

ये ख़ुशी का जश्न शायद रात भर होने को है
कोयलों की कूक से लगता सहर होने को है.................... मतला बढ़िया है. मैं उल और सानी में राब्ता को लेकर असमंजस में हूँ. 

वो भी अब तिरछी नज़र से देखते हैं आजकल
मुझको लगता है मोहब्बत का असर होने को है................. बहुत बढ़िया 

रो रहा था कोई छुपकर फिर मुझे ऐसा लगा
मेरा दामन आंसुओं से तर-बतर होने को है............ वाह वाह बहुत खूब 

चार दिन की चांदनी है फिर अंधेरी रात में
धीरे-धीरे ज़िन्दगी अपनी बसर होने को है................. बढ़िया 

उसकी सांसों पर टिकी है ज़िन्दगी की आस फिर
ऐसा लगता है कि क़िस्सा मुख़्तसर होने को है...........................बढ़िया गिरह 

ज़िन्दगी गुजरी थी अपनी जिस जगह अपनों के साथ
रफ्ता रफ्ता वो हवेली भी खंडर होने को है...................... खंडर के प्रयोग को लेकर असमंजस में हूँ.

कल भी गुज़री थी इधर से जानलेवा दोस्तो
आज फिर वो ही क़यामत का ग़ुज़र होने को है................. क़यामत का/की ... मार्गदर्शन निवेदित है.

लग गई कल आंख बिस्तर पर तो ये आया ख्याल
जिंदगी का आख़री अपना सफर होने को है.......................... बढ़िया 

दर्द-ए-दिल बढ़ने लगा है याद से 'गुलशन' तेरी
अब तो लगता है दुआओं का असर होने को है..................... मक्ता भी बढ़िया है.

इस ग़ज़ल पर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल फरमाएं सादर 

इस ग़ज़ल पर मैं अपनी टिप्पणी अपने मंच के लिये दे रहा हूँ ।
'ये ख़ुशी का जश्न शायद रात भर होने को है
कोयलों की कूक से लगता सहर होने को है'

मतले के दोनों मिसरे अलग अलग हैं,उनमें रब्त नहीं,दूसरी बात ये कि कोयलें रात में नहीं कूकती ।

'रो रहा था कोई छिप कर फिर मुझे ऐसा लगा
मेरा दामन आंसुओं से तर बतर होने को है'
मुह्मिल शैर हे,वो तो रो चूका,अब आपका दामन क़ब तर होगा ?

कल भी गुज़री थी इधर से जानलेवा दोस्तों
आज फिर वो ही क़यामत का गुज़र होने को है
मफ़हूम के लिहाज से और तार्किकता के हिसाब से शैर कमज़ोर है, इसे यूँ कहना था :-
"कल जो गुज़री थी क़यामत जान लेवा दोस्तो
आज फिर हमने सुना उसका गुज़र होने को है"

'लग गई कल आँख बिस्तर पर तो ये आया ख़याल
ज़िन्दगी का आख़री अपना सफ़र होने को है'
ऊला में ऐब-ए-तनाफ़ुर,"कल",शब्द भर्ती का है ।

आदरणीय समर कबीर जी, आपकी इस्लाह से मंच सदैव लाभान्वित होता है. हार्दिक आभार आपका. सादर 

धन्यवाद जी ।

आदरणीय अशफाक भाई , बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने , गिरह भी खूब लगायी है , बधाइयाँ स्वीकार करें ।

आदरणीय समर भाई जी की बातों का खयाल कीजियेगा ।

एक बात और कि , आँख लगने के बाद ख़याल नही ख्वाब आते हैं ।

बहुत बढ़िया आदरणीय ,  बहुत खूब कही  पर आ० समर कबीर साहिब की टीप हमारे लिए भी  एक सबक  है , सादर

मुहतरम जनाब अशफ़ाक़   साहिब,  अच्छी ग़ज़ल हुई है , शेर दर शेर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएँ 

बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है मोहतरम दाद कुबूलें कई बातों में वरिष्ट शायर मार्गदर्शन कर ही चुके दुबारा कहना न चाहूँगी 

गिरह भी शानदार है 

आली जनाब अशफ़ाकजी, शे'र-दर-शे'र मुबारकबाद क़ुबूल करें ।
बह्र 2122 2122 2122 212

फ़रवरी में इक सियासत का समर होने को है |
इस तमाशे की मियाँ सबको खबर होने को है ||

अब बटेंगे नोट घर घर और मदिरा थोक में
रात हर इक जाम से वोटों की तर होने को है ||

चल रही है हर गली वादों की तिकड़म बाजियाँ
जानते हो, बाद में वादा सिफ़र होने को है ||

बैंक बिजली पोस्ट आफिस नल सड़क या अस्पताल
भाषणों में गाँव भी मेरा नगर होने को है ||

घोषणा में मुफ्त की सौगात इतनी दिख रही
यूॅ लगे आराम से सबकी गुज़र होने को है ||

वोट देंगे लोग बस अपनी सहूलत देखकर
जात मजहब का जियादा अब असर होने को है ||

जोड़ती है हाथ जाकर ये सियासत दर ब दर
क्योंकि इक इक वोट की खातिर ग़दर होने को है ||

दल बदल आरोप प्रत्यारोप धोखा जोड़ तोड़
ये तमाशा फिर सियासत में मुखर होने को है ||

झूठ की बुनियाद पर यह तंत्र चलता देख कर
*ऐसा लगता है कि क़िस्सा मुख़्तसर होने को है* ||

चंद सिक्कों में बिकेंगे 'नाथ' कितनो के जमीर
स्वार्थ में ये आदमी अब जानवर होने को है ||

(मौलिक व अप्रकाशित)

आदरणीय सुरेन्द्र जी, बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने. शेर-दर-शेर पुनः उपस्थित होता हूँ. सादर 

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"अच्छी ग़ज़ल हुई है आदरणीय महेन्द्र जी। थोड़ा समय देकर  सभी शेरों को और संवारा जा सकता है। "
4 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। यह गजल इस बार के मिसरे पर नहीं है। आपकी तरह पहले दिन मैंने भी अपकी ही तरह…"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल कुछ शेर अच्छे हुए हैं लेकिन अधिकांश अभी समय चाहते हैं। हार्दिक…"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई महेंद्र जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल से मंच का शुभारम्भ करने के लिए हार्दिक बधाई।"
4 hours ago
Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

आंचलिक साहित्य

यहाँ पर आंचलिक साहित्य की रचनाओं को लिखा जा सकता है |See More
5 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"हर सिम्त वो है फैला हुआ याद आ गया ज़ाहिद को मयकदे में ख़ुदा याद आ गया इस जगमगाती शह्र की हर शाम है…"
5 hours ago
Vikas replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"विकास जोशी 'वाहिद' तन्हाइयों में रंग-ए-हिना याद आ गया आना था याद क्या मुझे क्या याद आ…"
5 hours ago
Tasdiq Ahmed Khan replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"ग़ज़ल जो दे गया है मुझको दग़ा याद आ गयाशब होते ही वो जान ए अदा याद आ गया कैसे क़रार आए दिल ए…"
7 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"221 2121 1221 212 बर्बाद ज़िंदगी का मज़ा हमसे पूछिए दुश्मन से दोस्ती का मज़ा हमसे पूछिए १ पाते…"
7 hours ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेंद्र जी, ग़ज़ल की बधाई स्वीकार कीजिए"
9 hours ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"खुशबू सी उसकी लाई हवा याद आ गया, बन के वो शख़्स बाद-ए-सबा याद आ गया। वो शोख़ सी निगाहें औ'…"
9 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"हमको नगर में गाँव खुला याद आ गयामानो स्वयं का भूला पता याद आ गया।१।*तम से घिरे थे लोग दिवस ढल गया…"
11 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service