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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-78 (विषय: 'विजय)

आदरणीय साथियो,

सादर नमन।
.
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-78 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है,
:  
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-78
"विषय: 'विजय'  
अवधि : 29-09-2021  से 30-09-2021 
.
अति आवश्यक सूचना:-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी केवल एक लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं।
2. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फॉण्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, १०-१५ शब्द की टिप्पणी को ३-४ पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है। 
4. एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है। गत कई आयोजनों में देखा गया कि कई साथी अपनी रचना पोस्ट करने के बाद गायब हो जाते हैं, या केवल अपनी रचना के आस पास ही मंडराते रहते हैंI कुछेक साथी दूसरों की रचना पर टिप्पणी करना तो दूर वे अपनी रचना पर आई टिप्पणियों तक की पावती देने तक से गुरेज़ करते हैंI ऐसा रवैया कतई ठीक नहींI यह रचनाकार के साथ साथ टिप्पणीकर्ता का भी अपमान हैI
5. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा गलत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताये हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
6. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि लिखने /लगाने की आवश्यकता नहीं है।
7. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
8. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें। 
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मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)
ओपनबुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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आदाब। रचना पोस्ट करने से पहले सम्पादन कार्य कर लेनी थी आदरणीय चेतन प्रकाश जी। वाक्य/संवाद/इंवर्टेड कौमाज़/स्पेसिंग/ पैराग्राफ संयोजन आदि देख लीजिएगा।

जनाब, आप लघुकथा पढ़ रहे हैं!  दो पात्र है, दोनों का ही वार्तालाप बिलकुल स्पष्ट है! स्पेसिंग, कोमा, फुल स्टाप कहाँ आपको अधूरे दिखाई पड़े, चिन्हित करने की कृपा करें! आश्चर्य की बात है, लघुकथा अपने भाव-बोध के लिए जानी जाती है, उस पर आप कुछ कह नहीं पाए, यह कैसी व्याख्या है? 

लघु कथा     ' विजय '
चेतन गुस्से से भरा, नाश्ते को बिना मुंह से लगाए, लंच बॉक्स छोड़कर ऑफिस के लिए निकल गया। वीणा के दिल पर जैसे कोई हथौड़ा मार गया हो। ऐसा वाकया अक्सर ही होता था, जब चेतन उसके करे काम में कोई- न-कोई नुस्क निकाल, अपना दंभ साकार कर लेता था। वीणा को चेतन के जीवन में आए मात्र छह महीने हुए थे, पर शायद ही कोई दिन ऐसा बीता हो जब वह किसी न किसी बात पर न चिल्लाया हो। वीणा से अब उसका उग्र स्वभाव बर्दाश्त के बाहर हो गया था। अभी तक वह यही सोचकर चुप रही कि शायद चेतन का व्यवहार बदल जाएगा, पर ऐसा कुछ न होने पर उसका धैर्य जवाब देने लगा। अंततः वीणा ने तय कर लिया कि अपनी मां को हर दिन की एक-एक बात बताएगी। वह चेतन को छोड़ने तक का मन बना चुकी थी।
    मकर संक्रान्ति का पावन पर्व था। वीणा ने देखा कि चेतन हाथ में कई रंगीन पतंगें  और चरखी लेकर सीधे छत पर चला गया और फिर वहीं से उसने वीणा को ऊपर आने के लिए पुकारा। वीणा कुढ़ी-भुनी, बड़बड़ाती हुई, बेमन से छत पर गई। चेतन ने चरखी उसको पकड़ाते  हुए लाल बिंदी वाली पतंग खुले आकाश में छोड़ दी। पतंग डोर से बंधी धीरे-धीरे ऊपर जा रही थी।  चेतन की पतंग अलग उड़ रही थी, उसे न किसी दूसरे को काटने की तमन्ना थी और न ही किसी दूसरे से प्रतिस्पर्धा। उसकी पतंग, मजबूत हाथों की उंगलियों की पकड़ में, झूमती लहराती अपने में मगन थी।
     वीणा कुछ देर तक चरखी लिए मन ही मन उलझी गुत्थी को सुलझाने का प्रयास करने लगी।  अंततः उसको समझ आ गया कि जिस रिश्ते के साथ वह चल पड़ी है, उसके साथ बंधे रहने में ही उसकी अपनी जीवन यात्रा सुरक्षित भी है और मर्यादित भी।  विशाल आकाश में तैरते पतंगों के मेले में वीणा ने अपनी लाल बिंदी वाली पतंग ढूंढ ली। वह खुश थी क्योंकि उसने अपनी उलझनों पर विजय पा ली थी।
मौलिक व अप्रकाशित

आ. निरुपमा जी, सादर अभिवादन । सुंदर कथा हुई है हार्दिक बधाई।

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