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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-45 (विषय: चेतना)

आदरणीय साथिओ,

सादर नमन।
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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-45 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है, प्रस्तुत है:
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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-45
"विषय: "चेतना" 
अवधि : 30-12-2018  से 31-12-2018 
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अति आवश्यक सूचना :-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी केवल एक हिंदी लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं।
2. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फॉण्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, १०-१५ शब्द की टिप्पणी को ३-४ पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है। 
4. एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है। गत कई आयोजनों में देखा गया कि कई साथी अपनी रचना पोस्ट करने के बाद गायब हो जाते हैं, या केवल अपनी रचना के आस पास ही मंडराते रहते हैंI कुछेक साथी दूसरों की रचना पर टिप्पणी करना तो दूर वे अपनी रचना पर आई टिप्पणियों तक की पावती देने तक से गुरेज़ करते हैंI ऐसा रवैया कतई ठीक नहींI यह रचनाकार के साथ साथ टिप्पणीकर्ता का भी अपमान हैI
5. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा गलत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताये हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
6. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि लिखने /लगाने की आवश्यकता नहीं है।
7. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
8. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें। 
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मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)
ओपनबुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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आदरणीया बबिता जी!हकीकतन कह लें इसे,सादर।

वाह। विषयांतर्गत एक उम्दा नवीन प्रयोग। दवाओं आदि के 'नाम' भी 'व्यंग्य-शैली' तहत लिए गए हैं बेहतर कटाक्ष हेतु। हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब।

आभारी हूँ आदरणीय उस्मानीजी। ऐसी लघुकथा के बारे में पहले भी विचार उभरा था,पर आदरणीय योगराज जी के द्वारा मुक़र्रर विषय नें उमड़ते-घुमड़ते विचारों को और सुदृढ़ कर दिया और यह लघुकथा उभर आई,सादर।

बहुत बढ़िया विषय चुना है आपने आ मनन कुमार सिंह जी, एक सन्देश भी दे रही है आपकी रचना. बहुत बहुत बधाई इस बढ़िया रचना के लिए

   

चेतना
बिलू का छोटू अभी दो साल का भी नहीं हुआ, घर वाले आज फिर बिलू पर दूसरे बच्चे के लिए दबा बना कर सुनीता को जता रहे थे,मगर सुनीता इस लिए पहले ही विरोध कर चुकी थी।
“देख तेरे पास इक बच्चा है, अगर कल इसे कुछ हो गया तो क्या करोगी……” साँसूँ माँ कहने लगी।
“मगर सुनीता मानने को तैयार नहीं हो रही थी। उस को छोटू के जन्म समय होने वाली तकलीफ बारे याद कर बहुत डर लगने लगता है। और ये बात भी ये मुझे क्यूँ?मेरा खुद का फैसला क्यूँ नहीं? अगर ये जिंदगी मेरी फिर इस पर अधिकार भी मेरा क्यूँ नहीं?"
उस के मन में आया,” अगर मैं ही न रही तो मैं क्या करूँगी घर परिवार को।“
मगर मैं तो पढी लिखी हूँ , मुझे समझ आ गई कि मैंने बच्चा करना है कि नहीं। तो मुझे इस को अमल में भी लाना होगा।"
ये मेरा अधिकार है और सुनीता अँधेरे में अंदर जाने की बजाए सभी के बीच में से उठ कर बाहर बरामदे में रौशनी में आ गई।

"मौलिक व अप्रकाशित" 

स्वनिर्णय लेने का हक ,नारी की अंतर्चेतना को जाग्रत करती बेहतरीन रचना।बधाई,आदरणीय मोहन सरजी।

आदरणीय मोहन बेगोवाल जी, प्रदत्त विषय पर बहुत ही उम्दा लघुकथा कही है आपने. मेरी तरफ़ से ढेर सारी बधाई स्वीकार कीजिए. आपकी लघुकथा को थोड़ा सा सम्पादित किया है, शायद आपको पसन्द आये. सादर.

चेतना 

छोटू अभी दो साल का भी नहीं हुआ था कि घर वाले आज फिर सुनीता पर दूसरे बच्चे के लिए दबाव बना रहे थे।

“देख तेरे पास इक बच्चा है, अगर कल इसे कुछ हो गया तो क्या करेगी?” साँसू माँ कहने लगीं।
पर सुनीता तैयार नहीं थी। उसे छोटू के जन्म के समय होने वाली तकलीफ़ के बारे में सोच कर अभी भी बहुत डर लगता था। 'हर चीज़ पर दूसरे ही क्यूँ? मेरा ख़ुद का फैसला क्यूँ नहीं? अगर ये ज़िन्दगी मेरी है तो फिर इस पर मेरा अधिकार क्यूँ नहीं?' उस के मन में आया, 'अगर मैं ही न रही तो मैं क्या करूँगी इस घर परिवार का?'
"ये मेरा अधिकार है।" सुनीता ने अपनी सास से कहा और अँधेरे में अंदर जाने की बजाए सभी के बीच से उठ कर बाहर बरामदे की रौशनी में आ गई।

दोस्त बहुत मेहरबानी जी

बहुत बढ़िया संपादन। हार्दिक आभार और बधाई आदरणीय महेंद्र कुमार साहिब। /सांसू/ = /सासू/

अनुमोदन और त्रुटी इंगित करने हेतु आपका बहुत-बहुत आभार आदरणीय शेख़ शहज़ाद उस्मानी जी. सादर.

आदाब। विषयांतर्गत बहुत ही अहम मुद्दे पर बढ़िया रचना। हार्दिक बधाई आदरणीय मोहन बेगोवाल साहिब। आपके सहयोग के लिए आदरणीय महेंद्र कुमार साहिब ने बढ़िया संपादन किया है। हार्दिक आभार।

 सुन्दर रचना बधाई। 

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