आदरणीय साथिओ,
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आपकी लघु कथा शीर्षक को सार्थक कर रही है । बहुत बधाई आपको आदरणीय गोपाल सर ।
आभार अन्नपूर्णा जी .
आ० आभार प्रकट करता हूँ .
अच्छी लघुकथा है आ. डॉ. गोपाल नारायन सर. कथानक पर अपने-अपने मत हो सकते हैं. किसी को विश्वसनीय लग सकता है किसी को अविश्वसनीय. "सफेद कपड़ों में लिपटे कुछ व्यक्ति" अथवा "सफेदपोशों" की जगह किसी अन्य शब्द (अथवा शब्द युग्म) के प्रयोग से इसकी विश्वसनीयता को बढ़ाया जा सकता है. मेरी तरफ़ से हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.
आ० महेंद्र जी . फरिश्तों की जितनी कथाये मेरी नजरों से गुजरी खासकर नवाबी समय के आख्यानों में उन्हें सफेदपोश ही दर्शाया गया है . दूसरी बात फ़रिश्ता शब्द ही देवदूत का पर्याय है वे मानव तो निश्चित रूप से नहीं हैं . इसे खालिस कहानी के रूप में लेंगे तो अच्छा रहेगा . सादर
आदरणीया कहानी आस्था और अनास्था के बीच की कड़ी है आप इसेचाहे जिस रूप में ले . सादर .
आ० समर कबीर साहिब ,कोई कुछ कहे पर आपका कथन तो सर्वोपरि है . सादर .
बेहतरीन प्रस्तुतिकरण व् शानदार लघु कथा ..मेरा तो ये मानना है कि भगवान् को हमने देखा नहीं फिर भी उस पर विशवास करते हैं तो ऐसी शक्तियों पर विशवास क्यूँ नहीं करते इनका भी अस्तित्व हो सकता है और सुना भी है भले ही ये दिखाई नहीं देते हों .न जाने ये दुनिया कितने चमत्कारों से भरी पड़ी है |मुझे तो ये लघु कथा बहुत ही ज्यादा पसंद आई जिसके लिए दिल से ढेरो बधाईयाँ आद० गोपाल भाई जी |
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