आदरणीय साथिओ,
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प्रिय सुनील भाई, लघुकथा में निहित संदेश बहुत बढ़ीया है। पर कुछ तकनीकी पक्ष कमजोर रह गया जैसे- छोटे-बड़े बैल । भाई छोटे-बड़े से क्या आशय है? यदि इशारा आकार की ओर है तो ठीक है परन्तु यदि उम्र की ओर है तो यह गलत है। छोटे बैल (उम्र में) को बछड़ा कहा जाता है। एक बात और यहां बैल शब्द उचित नहीं है। क्योंकि बैल बहुत उपयोगी पशु होता है उसे सड़क पर आवारा नहीं छोड़ा जाता बल्िक उससे कई प्रकार के काम लिए जाते हैं और उसके बाद वह बीफ के लिए इस्तेमाल होता है। यहां शब्द सांड होना चाहिए था। उसके बाद लघुकथा में / आपसी सहयोग से जितने हो सकते हैं उतने पशु खुद ही पकड़कर रात को शहर से कुछ दूर छोड़ देगें|/ का जिक्र आया है। भाई जी आवारा गायों और सांडों को पकड़कर ट्रक में बैठाना इतना आसान कार्य नहीं है जिसे दुकानदार आप अंजाम दे सकें। लघुकथा की अंतिम पंक्ित जब्री प्रतीत हो रही है। धर्म का घुटनों में सिर देकर रोना समझ में आता है पर / दिन के उजाले में उसका चेहरा काफी अश्वेत नजर आ रहा था|/ चेहरा अश्वेत नजर आना गले के नीचे नहीं उतर रहा। चंद गलत लोगों की वजह से 'धर्म' का चेहरा अश्वेत नहीं होता या नहीं होना चाहिए भाई । लघुकथा का अंत पहले से ही तय किया लगा और पूरा ताना-बाना उसके इर्द-गिर्द बुना गया जिससे सहजता की कमी लगी। सादर
अच्छा कथ्य सुनील भाई. सामयिक विषय पर आपनें कलम चलाई यही एक जागरूक लेखक की पहचान हुआ करती है। इस हेतु बधाई! शीर्षक थोड़ा कम जमा यदि हो सके तो इसे कुछ और करनें की कोशिश कीजियेगा। सादर
उम्दा कटाक्ष करती रचना।बधाई
आदरणीय सुनील जी, इस रचना में कटाक्ष है | इसके साथ एक सामाजिक सन्देश भी है | आ. रवि जी ने जो टिप्पणी लिखी है, उसका संज्ञान अवश्य लें |
आ. सुनील जी, सर्वप्रथम तो इस समसामयिक मुद्दे पर बढ़िया कटाक्षपूर्ण लघुकथा लिखने के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. अब कुछ बातें जो आपकी कथा के सन्दर्भ में कहना चाहूँगा :
1. आ. रवि सर की बातों से मैं भी सहमत हूँ.
2. //दिन के उजाले में उसका चेहरा काफी अश्वेत नजर आ रहा था|// यह पंक्ति मुझे केवल शीर्षक को जस्टिफाई करने के लिए लिखी गयी प्रतीत हो रही है.
3. क्या लघुकथा काल खंड दोष से पीड़ित है? (गुणीजनों का मत अपेक्षित है.)
4. यदि एक-दो संवाद होते तो लघुकथा का मज़ा और बढ़ जाता.
सादर.
आ. सुनील जी, दुकानदारों में 'कुरैशी भाई' का शामिल होना बिल्कुल सही है. कई बार हमें सच (जो कि आपकी लघुकथा के सन्दर्भ में घटना विशेष से सम्बन्धित है) को प्रतीकात्मक रूप से कहना होता है और कई बार एकदम सीधे-सीधे. आप एक सक्षम रचनाकार हैं इसलिए अफ़सोस की कोई आवश्यकता नहीं है. संकलन के बाद आपके पास वांछित सुधारों हेतु बहुत वक़्त रहेगा. आयोजन से दूर न होने के मोह को मैं समझ सकता हूँ. सादर.
भाई सुनील जी, विषय चयन और शब्दों के आप महारथी हैं और इस रचना में भी यही परिलक्षित हो रहा है, जिस हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें| इस तरह के विषयों पर कलम चलाना आज की ज़रूरत भी है| गुरुजनों और सुधीजनों की बातें संज्ञान में लें तो यह रचना बेहतरीन हो सकती है|
अच्छा विषय है सुनील भाई, पर कई बार एकाग्रता की कमी से हम जो कहना चाहते हैं कथा नहीं कह पाती . सबके साथ हो जाता है .अगले आयोजन में आप बेहतरीन कथा के साथ उपस्थित होंगे! पूर्ण विश्वास है.
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