अगर झूठ को बोलिए, ठोक पीट सौ बार
सच से बढ़कर मानता, उसको भी संसार।१।
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रहा झूठ से कौन है, वंचित कहो अबोध
भले न बोला हो गया, होकर कभी सबोध।२।
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होता मुख पर झूठ के, नहीं तनिक भी नूर
जीवन पाता अल्प ही, पर जीता भरपूर।३।
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जीवन में बोला नहीं, कभी एक भी झूठ
हरा पेड़ तो छोड़िए, मिला न कोई ठूँठ।४।
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होता सच में जो नहीं, वही झूठ का काम
भले न बोला पर लिखा, धर्मराज के नाम।५।
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भोला देता ताव है, करके ऊँची मूँछ
धूर्त चले रण में सदा, पकड़ झूठ की पूँछ।६।
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कहो न भूले झूठ को, सधे भले ही स्वार्थ
सच को चाहे रोक दो, करने को परमार्थ।७।
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कड़वा लगता सत्य है, जितना रस से बोल
लेकिन झूठ मिठास ही, रखे स्वयं में घोल।८।
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ऊँचा ध्वज ले नित चले, राजनीति में झूठ
हाँ-हाँ पर वह खुश रहे, ना पर जाता रूठ।९।
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कभी न मीठे झूठ को, मन में देना गेह
अति मीठे से तन चढ़े, सदा रोग मधुमेह।१०।
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मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
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