दोहा सप्तक. . . जीत -हार
माना जीवन को नहीं, अच्छी लगती हार ।
संग जीत के हार पर, जीवन का शृंगार ।।
हार सदा ही जीत का, करती मार्ग प्रशस्त ।
डरा हार से जो हुआ, उसका सूरज अस्त ।।
जीत हार के सूत में, उलझा जीवन गीत ।
दूर -दूर तक जिंदगी, ढूँढे सच्चा मीत ।।
कभी हार है जिंदगी, कभी जिंदगी जीत ।
जीवन भर होता ध्वनित, इसमें गूँथा गीत ।।
मतलब होता हार का, फिर से एक प्रयास ।
हर कोशिश में जीत की, मुखरित होती आस ।।
निष्ठा पूर्वक जो करें , अविरल अथक प्रयास ।
मिले हार को फिर वहाँ, आजीवन बनवास ।।
जीत हार दो तीर है, जीवन का आधार ।
दो तीरों पर है बसा, सुख - दुख का संसार ।।
सुशील सरना / 16-1-25
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