आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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बहुत सी सुंदर सन्देश देती रचना आदरनीय सुकुल जी .
बहुत ही अच्छे विषय का चयन किया है आपने आदरणीय त्रैलोक्य रंजन जी सर, गाय-भैंसों के साथ ऐसा व्यवहार होता ही है| इस संदेशप्रद रचना के सृजन हेतु सादर बधाई स्वीकार करें|
इस संदेशपरक लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय, सादर!
तौबा ( प्रायश्चित )
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आज अमर साहिब के रिटायरमेंट का दिन है ,ऑफिस के लोगों के अलावा कई उद्योग पतियों ,नेताओं ,अधिकारियों और मीडिया वालों को आमंत्रित किया गया है । उन्होंने यूँ तो अपनी पोस्ट का फायदा उठाते हुए रिश्वत के ज़रिये बहुत रुपया कमाया ,सारी ज़िंदगी ऐश से गुज़ारी ,करोड़ों का बैंक बैलेंस ,कई बंगले ,प्लॉट्स के मालिक बन गए ,मगर सब बेकार --ऊपर वाले ने उन्हें औलाद से महरूम कर दिया , सिर्फ बीवी ही सुख दुःख की साथी है। बुढ़ापे का सहारा और घर का चराग किस्मत में नहीं ।
जश्न शुरू हुआ ,कई लोगों ने अपने विचार रखे और सबके बाद अमर साहिब अपने ख़याल का इज़हार कर ही रहे थे कि अचानक मीडिया की तरफ से आवाज़ आई ---------अमर साहिब आपके पास बहुत प्रॉपर्टी और दौलत है लेकिन कोई आपका वारिस नहीं है , क्या आपने सोचा है इनको कौन संभालेगा ।
अमर साहिब डबडबाई आँखों से मुस्कराते हुए बोले ------मैंने लोगों का दिल दुखाकर ,लालच में आकर बहुत दौलत कमाई मगर भगवान् ने ऐसी सजा दी है कि मेरे कोई औलाद नहीं । इसलिए वसीयत के मुताबिक बाद मरने के सारी प्रॉपर्टी और दौलत वृद्ध आश्रम की हो जाएगी ,जहाँ मेरे जैसे बुज़ुर्ग जिनकी औलाद नहीं है या जिनको औलाद ने घर से निकाल दिया है वह सुकून से अपनी ज़िंदगी के आखरी दिन बिता सकें ।
तालियों की गड़गड़ाहट में अमर साहिब सोचने लगे कि शायद प्रायश्चित करने का यही सही वक़्त था ------
(मौलिक व अप्रकाशित )
प्रदत्त विषय को सार्थक करती प्रस्तुति हुई आद० तस्दीक जी, इंसान को समझना चाहिए की भगवान इसी जन्म में हिसाब बराबर कर देता है एक हाथ से देता है तो दुसरे हाथ से ले भी लेता है | बहुत अच्छी प्रस्तुति हार्दिक बधाई आपको
मोहतरमा राजेश कुमारी साहिबा , लघु कथा पसंद करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया , मेहरबानी
अच्छी लघुकथा हुई है आ० तस्दीक़ अहमद खान साहिब, प्रदत्त विषय के न्याय करती हुई इस अभिव्यक्ति पर दिली दाद हाज़िर है। मैं इस कथा पर कुछ बात अवश्य करना चाहूँगा।
१. कोई भी आदमी कितना भी भ्रष्ट क्यों न रहा हो, अपने बारे में यूँ किसी भारी इकट्ठ में ऐतराफ़ करने से गुरेज़ करेगा। अत: यह कथा का कमज़ोर पक्ष है।
२. इसकी बजाय यदि अमर बाबू कुछ इस तरह कहते कि "यक़ीनन न्याय कुर्सी पर बैठकर जाने अनजाने मुझसे अन्याय हो गया होगा, जिस कारण ऊपर वाले ने मुझे निसंतान रखा।" तो बात कुछ जम सकती है।
३. अपनी संपत्ति अगर वे उनके द्वारा सजायाफ्ता मुजरिमों की भलाई पर सर्फ करने की बात की जाती तो प्रायश्चित करने की ठोस वजह मिलती।
४. आपने इस कथा में संवाद भी विवरण में गड्ड-मड्ड कर दिए हैं। संवाद यदि अलग से और बाक़ायदा कॉमाज़ में रखे जाते तो रचना की सम्प्रेषणीयता बेहतर हो जाती।
मोहतरम जनाब योगराज साहिब , लघु कथा पसंद करने और हौसला अफ़ज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया । आपका कीमती मश्वरा सर आँखों पर , दर असल यह एक सच्ची घटना है जिसे कुछ काल्पनिक बना कर लघु कथा का रूप देने की कोशिश की है -----सादर
औलाद नहीं होना ऊपर वाले का दिया दंड है पर उससे भी बडा दंड वो भोगते हैं जो औलाद होने के बावजूद भी बेघर हो जाते हैं और वृधाश्रम में रहने को मजबूर होते हैं .. समय रहते अपने पापों को पहचान लेना और प्रायश्चित कर पाना भी उसी ऊपर वाले की ही कृपा है ..प्रदत्त विषय पर सुन्दर कथा का सृजन किया है आपने आदरणीय तस्दीक जी ...बधाई स्वीकार करें
मोहतरमा प्रतिभा साहिबा , लघु कथा पसंद करने और हौसला अफ़ज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया ।
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