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आदरणीय साहित्य प्रेमियो,

जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी क्रम में प्रस्तुत है :

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-167

विषय : "विषय मुक्त"

आयोजन अवधि- 12 अक्टूबर 2024, दिन शनिवार से 13 अक्टूबर 2024, दिन रविवार की समाप्ति तक अर्थात कुल दो दिन.


ध्यान रहे : बात बेशक छोटी हो लेकिन 'घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य- समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए. आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी मौलिक एवं अप्रकाशित रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.

उदाहरण स्वरुप पद्य-साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --

तुकांत कविता, अतुकांत आधुनिक कविता, हास्य कविता, गीत-नवगीत, ग़ज़ल, नज़्म, हाइकू, सॉनेट, व्यंग्य काव्य, मुक्तक, शास्त्रीय-छंद जैसे दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि.

अति आवश्यक सूचना :-

रचनाओं की संख्या पर कोई बन्धन नहीं है. किन्तु, एक से अधिक रचनाएँ प्रस्तुत करनी हों तो पद्य-साहित्य की अलग अलग विधाओं अथवा अलग अलग छंदों में रचनाएँ प्रस्तुत हों.
रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना अच्छी तरह से देवनागरी के फॉण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें.
रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं.
प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें.
नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर संकलन आने के बाद संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.

आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता अपेक्षित है.

इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.

रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना, एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो - 12 अक्टूबर 2024, दिन शनिवार लगते ही खोल दिया जायेगा।

यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.

महा-उत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"OBO लाइव महा उत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" के पिछ्ले अंकों को पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक करें

मंच संचालक

ई. गणेश जी बाग़ी 
(संस्थापक सह मुख्य प्रबंधक)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम परिवार

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स्वागतम

शुभ प्रभात, आदरणीय!

नवरात्रः दोहे

मातृ-शक्ति ही पूज्य है, शारदीय नवरात्र ।
नौ स्वरूप हैं देवि के, कर तैयार प्रपत्र।।

शैल पुत्री अभी प्रथम, देवि भुजायें चार ।
आवास हिमालय रहा, प्रकट हुई गंगधार ।।

दूसरा ब्रह्मचारिणी, हाथ कमण्डल जान ।
संयम की माँ प्राण है, शक्ति-पात पहचान ।।

तृतीय स्वरूप दिव्य है, चंद्रघंटा जहान ।
प्रदाता देवि वीरता, करती ऊर्जा दान ।।

चतुर्थ स्वरूप शक्ति का, कूष्माण्डा तू जान ।
प्रेम - स्नेह साक्षात है, अष्ट - भुजा पहचान ।।

पंचम स्वरूप आपका, स्कंदमाता प्रसन्न ।
देवि रूप वात्सल्य का, आरूढ़ सिंह प्रछन्न ।।

षष्ठम माँ कात्यायनी, दिव्य - रूप अत्यंत ।
आक्रामक उसकी मुद्रा, करती अरि का अंत ।।

काल-रात्रि है सप्तमी, प्रगट भयानक रूप ।
नाश पाप का माँ करे, रक्षा करती भूप ।।

सुन्दरतम माँ अष्टमी, महागौरी स्वरूप ।
अवतार देवि पार्वती, आशीर्वाद अनूप ।।

सिद्धिदात्री दिवस नवम, कमल-पुष्प आरूढ़ ।
श्वेत - वर्ण सिंह वाहिनी, पूज नारियल ढूढ़ ।।

उद्यत सभी स्वरूप माँ, रक्षा हेतु समाज ।
शिव सदैव स्थित देवि हैं, कल्याणार्थ स्वराज।।

मौलिक एवम् अप्रकाशित

आदरणीय नमस्कार । दोहे छंद हेतु बधाई किंतु कई स्थान पर देवी को देवि लिखा गया है व कहीं कहीं पँचकल मात्रिक से विषम चरण की शुरूआत हो रही है व कहीं कहीं लय बाधा प्रतीत हो रही है। बाकी गुणीजनों के सलाह की प्रतीक्षा रहेगी।

भाई, दिनेश कुमार विश्वकर्मा, "दोहे छंद हेतु बधाई किंतु कई स्थान पर देवी को देवि लिखा गया है व कही- कहीं पँचकल मात्रिक से विषम चरण की शुरुआत हो रही है व कहीं लयबाधा प्रतीत हो रही है।"

राम की शक्ति-पूजा ( सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ) से उद्धरण देखिएः

"सम्बरो देवि , निज तेज, वहीं वानर
यह, नहीं हुआ श्रृंगार-युग्म-गत महावीर
अर्चना राम की मूर्तिमान अक्षय शरीर"

बंधु, पँचकल से दोहे की शुरुआत नहीं होती, आपका किसने मार्ग-दर्शन किया, आश्चर्य-चकित हूँ। "राम चरित मानस" के बाल-काण्ड का दोहा संख्या (71) देखिएः
प्रिया सोचु परिहरहु सब सुमिरहु श्री भगवान ।
पारबतीहि बिरयउ जेहिं सोइ करिहि कल्यान ।।

हाँ , आमतौर पर दोहे का प्रारम्भ जगण (121) से नहीं होता किन्तु देवताओं की स्तुति में यह मान्य है।

लयबाधा आपकी व्यक्तिगत प्रतीति है, और वैसे भी, बंधु, आप कोई दृष्टान्त देते तो अपेक्षाकृत विचारणीय होता !

आदरणीय सादर नमस्कार । मानस के दोहा संख्या 71 में प्रथम चरण प्रिया त्रिकल है वहीं पारबतिहि में षटकल है। वह पारबतीहि नहीं है । जबकि दोहा संख्या 77 में पारबती पहिं जाइ तुम्ह.... में पारबती षटकल है। मानस के अधिकांश दोहों में विषम चरणान्त 212 पर समाप्त नहीं होते किंतु वर्तमान में यह नियम है जबकि कबीर जी के दोहों में ऐसा मिल जाएगा। यथा..1)  बड़ा हुआ सो क्या हुआ (212)   2) बुरा जो देखन मैं चला  या रहीम जी का दोहा...रहिमन धागा प्रेम का इत्यादि । बाकी मैं भी साधक हूँ । मुझे भी आपसे सीखने मिलेगा।

आदरणीय चेतन प्रकाश जी सादर, अच्छा प्रयास है आपका दोहों पर. बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें. भाई दिनेश कुमार विश्वकर्मा जी के कहे से मैं सहमत हूँ. सादर 

आदरणीय बंधु, ASHOK KUMAR RAKTALE,  प्रस्तुति हेतू बधाई के  लिए आपका आभारी हूँ, श्री ! किन्तु आपका 

शंका- समाधान भी मेरी भाई  दिनेश कुमार विश्वकर्मा दिए प्रत्युत्तर से हो जाता है। सादर 

देवी के नौ रूपों का वर्णन करती दोहावली के लिए बधाई स्वीकारें आदरणीय..सादर

नारी

बेटी का ब्याह
गरीब पिता के लिए
होता है जीवन भर का स्वप्न

देखा कई बार इसके लिए
खेत बिकते
खलिहान बिकते
देखा.... कई बार
ख़ुद के अरमान बिकते

क्योंकि...
पुत्री के रूप में जन्म लेती है, लक्ष्मी
कुंती का रहस्य
द्रोपदी का प्रतिशोध
सीता की पतिव्रता
सती का हठ
शबरी की प्रतीक्षा
मीरा का समर्पण
जिनकी साधना में देखा कई बार भगवान बिकते...
देखा कई बार.......

बेटियाँ जैसे साँस की डोर
जीवन के तम में आशा की भोर
रसोई की रौनक
हँसता आँगन
कुटुंब की अस्मिता
इसलिए तो
बिदाई में अनन्त अश्रुओं के बूंद से भी
ऋण चुकाया नहीं जाता...

जाने क्यूँ ?
इस युग में सहज है, पर देखा नहीं जाता
आधुनिकता के नाम पर
नारी का सम्मान बिकते...


देखा कई बार
खेत बिकते, खलिहान बिकते
देखा कई बार
ख़ुद के अरमान बिकते...


***********************

मौलिक व अप्रकाशित

आदरणीय दिनेश कुमार विश्वकर्मा जी सादर, सुन्दर अभिव्यक्ति. निर्धन पिता के लिए बेटी का ब्याह किसी चुनौती से कम नहीं होता है. हर पिता अपने बेटी को ऐसे घर ब्याहना चाहता है जहाँ वह सुखी रहे. इसके लिए उसे अपने भरण-पोषण के साधनों को गिरवी रखना या बेचना भी पड़ जाता है. बहुत बधाई.सादर 

सादर अभिवादन स्वीकार करें आदरणीय Raktale जी। आपके बहुमूल्य प्रतिक्रिया हेतु आभार आपका ।

आ.बंधु दिनेश कुमार विश्वकर्मा, मुक्त छंद कविता मात्र सीधा- साधा सामाजिक व्यवस्था पर आक्रमण नहीं है। भाव का  उद्वेलन है, बंधु !

" जिनकी साधना में देखा कई बार भगवान  बिकते"

किस- किस की साधना में " भगवान बिका" ! कुंती के रहस्य में" क्योंकर, बिका तो किसने खरीदा? " द्रोपदी का प्रतिशोध "

कहाँ भगवान बिका ?

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