आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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प्रस्तुति को समय देने केलिए हार्दिक धन्यवाद आदरणीय ओमप्रकाश जी
आ.सौरभ जी गजब का संवाद संप्रेषण .चोर चोर मौसेरे भाई आपके संवादों ने इसे जबरदस्त बना दिया. बधाई आपको इस रचना के लिए
आदरणीया नयना जी, आपको ये कोशिश जाने कैसे ’जबरदस्त’ लग गयी. कई सुधीजन इसे फिल्मी इश्टाइल टाइप का कह रहे हैं. फिर भी उत्साहवर्द्धन केलिए हार्दिक धन्यवाद.
आक्रोश पर बहुत ही बढ़िया कथा हुई है आदरणीय सर | बधाई स्वीकारें |
जी उत्साहवर्द्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद आदरणीया कल्पना जी.
राजनीति का डबल गेम बखूबी उभर कर आया है आपकी इस रचना में भाषा एकदम कथानाक के अनुरूप ..हार्दिक बधाई प्रेषित है आपको आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी ..सादर
अतिशय सदाशयता के लिए सादर धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा जी.
भाई महेंद्र कुमार जी, आपको लघुकथा पर कलम आजमाई करते देखना बहुत अच्छा लगाI आपने इस लघुकथा के माध्यम से जो संदेश देना चाह वह कुछ हद तक साफ़ है जिस हेतु हार्दिक अभिनन्दन स्वीकार करेंI कुछेक बातें इस लघुकथा के बारे में कहना चाहूंगा:
१. वार्तालाप/संवाद छोटे छोटे और चुस्त होने चाहिएँ, इस कथा के दोनों संवाद हनुमान जी की पूँछ जैसे लम्बे हैंI
२. लघुकथा के अंत में जो प्रहारक/मारक पंच लाइन होती है वह इस कथा में बेहद कमज़ोर रह गई हैI
वाह ! वाह ! क्या खूब लघुकथा पेश किया है आपने आदरणीय महेंद्र जी ,अच्छा लगा आपको पढ़ना . वो जबरदस्त हौसलों की मीनारे ,वे वादे -इरादे वक्त आने पर पास्ता में साँस बनाकर उदरपूर्ति के लिए गटक कर मोटी खाल में सिमट गए . लघुकथा तकनीक सम्बन्ध में सर जी का मार्गदर्शन मनन योग्य है . बाकी बधाई तो बनता ही है इस कटाक्षयुक्त लघुकथा के लिए . बधाई आपको .
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