आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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जनता की भलाई की योजनाएं को जनता तक आने में बरसों लग जाते हैं और तब तक जनता उन बरसों पुराने कष्टों को या तो भूल जाती है या फिर और नए कष्ट आ जाते हैं ,ये ही चलता आया है , हार्दिक बधाई प्रेषित है आपको इस विचारोत्तेजक रचना पर आदरणीय सादर
आ० डॉ विजय शंकर जी, बहुत सुन्दर लघुकथा रची है जो विषय को न केवल बखूबी परिभाषित भी कर रही है बल्कि इसके पढ़ते हुए सब कुछ आँखों के सामने घटित होता हुआ भी प्रतीत होता हैI विश्वास करें मंज़रकशी को जिस प्रकार गज़ल में एक सुन्दरता माना गया है बिलकुल उसी तरह लघुकथा में भी दृश्य-चित्रण रचना में प्राण फूँक देता हैI इस कारण यह रचना और भी पसंद आई जिस हेतु मेरी (एक्स्ट्रा) हार्दिक बधाई प्रस्तुत हैI
मोहतरम विजय शंकर साहिब , प्रदत्त विषय को परिभाषित करती सुन्दर लघु कथा के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं
आदरणीय विजय जी. बहुत सुन्दर समसामयिक कथा कही है. आक्रोश का जिस तरह से आपने लेपण किया है वो चातुर्य भरा है. कर्मचारियों को मैनेजर बना कर शांत करने का ये अचूक नुस्खा है. सादर.
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