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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-135

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 135वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा जनाब हसरत मोहानी साहब की गजल से लिया गया है|

"अब तुम से दिल की बात कहें क्या ज़बाँ से हम "

   221        2121       1221         212

मफ़ऊलु     फ़ाइलातु     मफ़ाईलु    फ़ाइलुन

बह्र:  मज़ारे  मुसम्मन अख़रब  मक्फूफ़ महज़ूफ़

रदीफ़ :-  से हम
काफिया :- आँ( ज़बाँ, कहाँ, धुआँ, कारवाँ, आसमां, इम्तिहाँ, जहाँ आदि)

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 24 सितंबर दिन शुक्रवार  को हो जाएगी और दिनांक 25 सितंबर  दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

 

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

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मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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Replies to This Discussion

जनाब दिनेश कुमार जी आदाब, तरही मिसरे पर ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।

'क्यों दिल को तोड़ आए हैं तेरे जहाँ से हम
हर पल गुज़र रहे हैं इसी इम्तिहाँ से हम'

मतले के दोनों मिसरों में 'हाँ' की क़ैद हो रही है,और ऊला का वाक्य विन्यास भी ठीक नहीं है ।

'जिससे मिलो अना में ही होता है रूबरू'

इस मिसरे को उचित लगे तो यूँ कहें:-

'जिससे मिलो अना से ही अकड़ा हुआ मिले'

'जब हर्फ़ जल रहा हो तो लिखना फ़िज़ूल है
जज़्बात से घिरे कभी लड़ते धुआँ से हम'

इस शैर में क़ाफ़िया और रदीफ़ से इंसाफ़ नहीं हुआ ।

प्रणाम स्वीकार करें। बहुत बहुत शुक्रियः आदरणीय कबीर जी।आपकी इस्लाह व मार्गदर्शन हेतु आभार।

नमस्कार, दिनेश कुमार विश्वकर्मा, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास किया  आपने किन्तु रदीफ  ग़लत  हो  जाने  से पूरी ग़ज़ल  दिशाहीन  हो गई है ! अत: दोष पूर्ण मतला बदल कर पुन: सुधीजनों के परामर्श को दृष्टिगत रखते  हुए  पोस्ट कीजिए  !

आदरनीय विश्वकर्मा जी गज़ल  की बधाई गुणिजनों से सहमत ...प्रयासरत रहें 

आ. भाई दिनेश जी सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई।

संशोधन में भी ग़लतियाँ हैं, लगता है आपने अपनी ग़ज़ल पर मेरी टिप्पणी नहीं देखी है,उसे देख लें । 

अटके खजूर में जो गिरे आसमां से हम
सहमे रहे हयात के हर इम्तिहाँ से हम

अब हासिल-ए-सफ़र की भी ख़्वाहिश नहीं रही
कुछ ऐसे ना-उमीद हुए कारवाँ से हम

माना कि हक़परस्ती का मतलब है सरकशी
मुकरे न एक बार भी अपने बयां से हम

दिख जाएंगे बशर्ते महब्बत की हो नज़र
रहते हैं अपने दिल की सदफ़ में निहाँ से हम

दुनिया में बोलती है हमारी सुख़नवरी
देते नहीं है ख़ुद का त'आरुफ़ ज़बाँ से हम

दौलत ये तख़्त-ओ-ताज मुबारक हों आपको
साथ अपने ले के जाएंगे नेकी जहाँ से हम

( मौलिक व अप्रकाशित )

आँखों से सारा सूरत-ए-अहवाल है अयाँ
"अब तुम से दिल की बात कहें क्या ज़बाँ से हम "

आदरणीय दिनेश कुमार जी अच्छी ग़ज़ल हुई बधाई स्वीकार करें।

शुक्रिया आ. रचना जी। 

आदरणीय दिनेश जी,नमस्कार

बहुत ख़ूब ग़ज़ल हुई है, बधाई स्वीकार कीजिए।

मतले में शायद खजूर पे* कहना उचित होगा।बाक़ी गुणीजन बता सकते हैं।

सादर।

आपने वो मुहावरा नहीं सुना "आसमान से गिरे खजूर में अटके"?

जी, इसी मुहावरे का इस्तेमाल करने की कोशिश थी। सादर

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"जी, सादर आभार।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक 143 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय."
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
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"सादर"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक 143 in the group चित्र से काव्य तक
"बात तो उचित है. आप संशोधित रचना यहीं, इसी आयोजन में पोस्ट कर दें, आदरणीय."
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक 143 in the group चित्र से काव्य तक
"अवश्य, आदरणीय."
Sunday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक 143 in the group चित्र से काव्य तक
"लक्ष्मण भाई पिछले आयोजन में यही भूल मुझसे हुई थी। तो इस संबंध में थोड़ी जानकारी जुटाई थी। वो भी OBO…"
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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक 143 in the group चित्र से काव्य तक
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अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक 143 in the group चित्र से काव्य तक
"रचना पर उपस्थिति तथा मूल्यवान सुझावों के लिए आपका अति आभार है सौरभ जी। आपका मार्गदर्शन तथा प्रशंसा…"
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"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी रचना पर उपस्तिथि और सराहना के लिये हार्दिक आभार। "
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