For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-132

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 132वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह जनाब जोश मलिहाबादी साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|

"आदमी पैदा हुआ है काम करने के लिए "

 2122     2122      2122       212

 फ़ाइलातुन   फ़ाइलातुन  फ़ाइलातुन   फ़ाइलुन

 बह्र:  रमल मुसम्मन महज़ूफ़

रदीफ़ :-  के लिए
काफिया :- अरने( करने, भरने, उबरने, सँवरने, धरने, झरने, बिखरने, मरने, भरने, उभरने आदि)

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 25 जून दिन शुक्रवार  को हो जाएगी और दिनांक 26 जून दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

 

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 25 जून दिन शुक्रवार  लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन
बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.comपर जाकर प्रथम बार sign upकर लें.


मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 9117

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

इश्क़ ही काफ़ी नहीं है अब सनम के वास्ते ।
कुछ तो दौलत चाहिए दिल में उतरने के लिए ।।........वाह ! वाह ! खूब.

वाह ! बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई है आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें. सादर.

आदरणीय भाई नवीन जी आदाब।

  1. ग़ज़ल का बहुत अच्छा प्रयास हुआ है। बधाई स्वीकार करें। गिरह भी अच्छी लगाई आपने, उनके वादों पर भरोसा वाले शेर के लिए अलग से दाद क़ुबूल करें जी।

आदरणीय नवीन जी, अच्छी ग़ज़ल की बधाई स्वीकार करें।

भाई  Naveen Mani Tripath जी
सादर अभिवादन
तरही मिसरे पर उम्दः ग़ज़ल कही है आपने। बधाईयाँ स्वीकार करें.

आद.नवीन मणि जी बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है मेरी मुबारकबाद कुबूल करें।तीसरे शेर में तकाबुले रदीफ़ निकाल लीजिए।बाकी समर भाई जी कह चुके।

जनाब नवीन मनी त्रिपाठी जी बहुत अच्छी ग़ज़ल कही आपने बहुत-बहुत बधाई, सर की बातों को संज्ञान में लें

आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी  बहुत बेहतरीन ग़ज़ल हुई है बधाई स्वीकार करें 

साथ ही में उस्ताद समीर साहिब जी की बात का संज्ञान कीजियेगा

2122 2122 2122 212


ज़िन्दगानी ने दिए मौके सँवरने के लिए
एक भी ग़लती है काफ़ी फिर बिखरने के लिए।1


डूबना मुमकिन नहीं ग़म के समंदर में कभी
कोशिशें जारी हैं अपनी भी उबरने के लिए।2

याद करती है ये दुन्या काम से ही आपको
"आदमी पैदा हुआ है काम करने के लिए"।3


दिल हमारा भर गया है दर्द से अब दोस्तो
है जगह दिल में नहीं ग़म के उतरने के लिए।4

आजकल चेहरा तुम्हारा क्यों है मुरझाया हुआ
इश्क़ करना है ज़रूरी अब निखरने के लिए।5


दिल नहीं सुनता हमारी अपने दिल की ये करे
बैठ जाता है हमेशा एक धरने के लिए।6

इक नदी के प्यार को इस तरह से समझा गया
पत्थरों से वो निकल आती है झरने के लिए।7


ये सियासत है बुरी पर्वा किसी की क्यों करे
छोड़ देती है ये जनता को ही मरने के लिए।8


बात करते थे हवा से सोंच थी ऊँची बहुत
ये वबा भेजी गई क्या सब के डरने के लिए।9

शाम ये पैग़ाम लाई है तुम्हारे वास्ते
डूबता है शम्स देखो फिर उभरने के लिए।10


इस ग़ज़ल की है रसाई दिल तलक़ मेरे "रिया"
आज दिल करता है मेरा आह भरने के लिए।11


"मैलिक व अप्रकाशित"

आ. रिचा जी, तरही मिसरे पर खूबसूरत गजल हुई है । हार्दिक बधाई । दुनिया को दुन्या, परवाह को पर्वा के रूप में प्रयोग पर शंसय है । गुणी जनों की प्रतीक्षा है । 

आदरणीय लक्ष्मण जी, नमस्कार

बहुत शुक्रिया आपका।

सुधार किए हैं ग़ज़ल में देखियेगा,

तरह का प्रयोग तो ठीक है 21 लिया है।

सादर

पुनः 7 वें शेर में तरह का प्रयोग भी देखियेगा । सादर ..

मुहतरमा ऋचा यादव जी आदाब,तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।

'एक भी ग़लती है काफ़ी फिर बिखरने के लिए'

इस मिसरे में 'ग़लती' शब्द का वज़्न 112 (ग़-ल-ती) है,देखियेगा ।

'याद करती है ये दुन्या काम से ही आपको'

इस मिसरे में 'दुन्या' को "दुनिया" कर लें ।

'दिल नहीं सुनता हमारी अपने दिल की ये करे'

इस मिसरे में दिल का भी दिल होता है क्या-:)))इस मिसरे को यूँ कह सकती हैं:-

'दिल नहीं सुनता हमारी अपनी मर्ज़ी की करे' 

'बैठ जाता है हमेशा एक धरने के लिए'

इस मिसरे में 'एक' शब्द भर्ती का है,ग़ौर करें ।


'ये सियासत है बुरी पर्वा किसी की क्यों करे'

इस मिसरे में 'पर्वा' को "परवा" कर लें ।

'बात करते थे हवा से सोंच थी ऊँची बहुत
ये वबा भेजी गई क्या सब के डरने के लिए'

इस शैर के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है ।

'इस ग़ज़ल की है रसाई दिल तलक़ मेरे "रिया" '

इस मिसरे में 'तलक़' को "तलक" कर लें ।

बाक़ी शुभ शुभ ।

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब जब मलाई लिख दिया गया है यानी किसी प्रोसेस से अलगाव तो हुआ ही है न..दूध…"
4 hours ago
Ashok Kumar Raktale commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post पहलगाम ही क्यों कहें - दोहे
"आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी सादर, पहलगाम की जघन्य आतंकी घटना पर आपने अच्छे दोहे रचे हैं. उस पर बहुत…"
19 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post दोहा चतुर्दशी (महाकुंभ)
"आदरणीय सुरेश कल्याण जी, महाकुंभ विषयक दोहों की सार्थक प्रस्तुति के लिए हार्दिक धन्यवाद. एक बात…"
21 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post दोहा सप्तक
"वाह वाह वाह !  आदरणीय सुरेश कल्याण जी,  स्वामी दयानंद सरस्वती जैसे महान व्यक्तित्व को…"
21 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"जय हो..  हार्दिक धन्यवाद आदरणीय "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post पहलगाम ही क्यों कहें - दोहे
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी,  जिन परिस्थितियों में पहलगाम में आतंकी घटनाओं को अंजाम दिया गया, वह…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी left a comment for Shabla Arora
"आपका स्वागत है , आदरणीया Shabla jee"
yesterday
Shabla Arora updated their profile
Monday
Shabla Arora is now a member of Open Books Online
Monday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . अपनत्व
"आदरणीय सौरभ जी  आपकी नेक सलाह का शुक्रिया । आपके वक्तव्य से फिर यही निचोड़ निकला कि सरना दोषी ।…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"शुभातिशुभ..  अगले आयोजन की प्रतीक्षा में.. "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"वाह, साधु-साधु ऐसी मुखर परिचर्चा वर्षों बाद किसी आयोजन में संभव हो पायी है, आदरणीय. ऐसी परिचर्चाएँ…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service