For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-119

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 119वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह जनाब  अहमद फराज़ साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|

"इस आशिक़ी में जान से जाना बहुत हुआ "

221    2121     1221          212

 

मफ़ऊलु       फाईलातु       मफ़ाईलु       फ़ाइलुन

(बह्र:  मुजारे मुसम्मन् अखरब मक्फूफ महजूफ  )

रदीफ़ :- बहुत हुआ ।
काफिया :- आना( जाना, मिलना, बढ़ाना, बहाना  आदि)

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 22 मई दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 23 मई दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

 

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 22 मई दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन
बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.comपर जाकर प्रथम बार sign upकर लें.


मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 10907

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

आदरणीय नीलेश जी बहुत अच्छी ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार करें 

इक अजनबी से दिल का लगाना बहुत हुआ
ऐ इश्क, बस अब तेरा सताना बहुत हुआ !!

ले लूँ खुदा का नाम क्यों ना बंदगी कर लूँ
उस वेवफा का नाम दोहराना बहुत हुआ !!

बस भी करूँ कि हो चुकी हैं सुर्ख ये आँखें
अश्कों को अपने यूँ ही बहाना बहुत हुआ !

अब छिड़ गयी है बात, तो कर देते हैं वयां
जख्मों को अपने सब से छुपाना बहुत हुआ !!

हमने भी रखा था कदम दहलीज़-ए-इश्क पर
किस्सा ये सालों साल पुराना बहुत हुआ !!

माना कि वो चेहरा तेरा मेहताब लगता था
हर शब, तेरा बदरी में छिप जाना बहुत हुआ !!

सोचा ना था कि इश्क का अंजाम ये होगा
उस रोज उसका छोड़कर जाना बहुत हुआ !!

इक रूह थी जो कैद, मेरे जिस्म के भीतर
उसको रिहा हुए तो जमाना बहुत हुआ !!

मत देखिये चख कर इसे, मीठा ज़हर है ये
इस आशिकी में जान से जाना बहुत हुआ !!

मौलिक व अप्रकाशित

मुहतरमा रक्षिता सिंह जी आदाब, तरही मिसरे पर ग़ज़ल की कोशिश अच्छी है,

'ऐ इश्क, बस अब तेरा सताना बहुत हुआ' 

ये मिसरा बह्र में नहीं है,यूँ कर सकती हैं:-

'ऐ इश्क़ अब ये तेरा सताना बहुत हुआ'

ले लूँ खुदा का नाम क्यों ना बंदगी कर लूँ'
उस वेवफा का नाम दोहराना बहुत हुआ'

ये शैर बह्र में नहीं है,देखियेगा ।

'बस भी करूँ कि हो चुकी हैं सुर्ख ये आँखें'

इस मिसरे को यूँ कहना उचित होगा:-

'बस भी करो कि हो चुकीं आँखे भी सुर्ख़ अब'

ग़ज़ल आपकी अभी बहुत समय चाहती है,मुशाइर: में सहभागिता के लिए धन्यवाद

आ. रक्षिता जी, मंच पर उपस्थिति के लिए हार्दिक बधाई । शेष गजल की कमियों के विषय में भाई समर जी कह चुके हैं । उनकी बातों का संज्ञान लें ।

सुंदर गज़ल।

मुहतरमा रक्षिता सिंह जी एक अच्छी ग़ज़ल हुई बहर पर ध्यान दें बाकी समर सर ने जो बताया है उस पर गौर फरमाएं।

मुहतरमा रक्षिता जी, अच्छी ग़ज़ल की बधाई कुबूल करें l 

आदरणीया रक्षिता जी अच्छी ग़ज़ल कही है समर भाई के मार्गदर्शन के अनुसार थोड़ा सा समय और दें ग़ज़ल को बेहतरीन हो जाएगी मेरी मुबारकबाद स्वीकारें

हर शाम कर के वादा, न आना बहुत हुआ।

हर शब दिल ए फ़िराक़, दुखाना बहुत हुआ, 

दर दर भटक चुके हैं, कहीं तुम मिले नहीं, 

तुम को तलाश करते, ज़माना बहुत हुआ। 

अब थक चली निगाहें, तेरे इंतज़ार में, 

आजा कि अब तो रूठ के, जाना बहुत हुआ।

कुछ हिचकियों की बात है, थोड़ा क़रार बस, 

इस नामुराद दिल का, फ़साना बहुत हुआ।

माना कि हर अदा पे तेरी, जाँ निसार है,   

पर बेख़ुदी में ख़ुद को, मिटाना बहुत हुआ।  

रिश्तों में गर भरोसा न हो, तोड़ना भला, 

अब ऐसे तल्ख़ रिश्ते, निबाह्ना बहुत हुआ। 

फिर अब न देंगे दिल, किसी सूरत, किसी को हम, 

इस आ़शिक़ी में जान से, जाना बहुत हुआ। 

अब आ रहे हैं मिलने को, देखो रक़ीब भी, 

जब हो गया कि, मिलना- मिलाना बहुत हुआ।

रोया करेगा हम को, ज़माना 'अमीर' अब,

सब कह रहे हैं, हंँसना- हंँसाना बहुत हुआ।

"मौलिक व अप्रकाशित" 

आदरणीय अमीरुद्दीन ख़ान ' अमीर ' जी बहुत लाजवाब ग़ज़ल हुई बधाई स्वीकार करें।

मुहतरमा रचना भाटिया जी आदाब। ग़ज़ल पर आपकी हाज़िरी और हौसला अफ़ज़ाई के लिये तहे-दिल से शुक्रिया।

जनाब अमीरुद्दीन 'अमीर' साहिब आदाब,तरही मिसरे पर बहुत उम्द: और मुरस्सा ग़ज़ल कही आपने,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"आदरणीय जज़्बातों से लबरेज़ अच्छी ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद पेश करता हूँ। मतले पर अच्छी चर्चा हो रही…"
7 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"//मलाई हमेशा दूध से ऊपर एक अलग तह बन के रहती है// मगर.. मलाई अपने आप कभी दूध से अलग नहीं होती, जैसे…"
7 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 179 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
11 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"बिरह में किस को बताएं उदास हैं कितने किसे जगा के सुनाएं उदास हैं कितने सादर "
11 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . अपनत्व
"सादर नमन सर "
11 hours ago
Mayank Kumar Dwivedi updated their profile
13 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"धन्यवाद आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब.दूध और मलाई दिखने को साथ दीखते हैं लेकिन मलाई हमेशा दूध से ऊपर एक…"
17 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"धन्यवाद आ. लक्षमण धामी जी "
17 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय, बृजेश कुमार 'ब्रज' जी, ग़ज़ल पर आपकी आमद और ज़र्रा नवाज़ी का तह-ए-दिल से…"
18 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"आदरणीय निलेश शेवगाँवकर जी आदाब, एक साँस में पढ़ने लायक़ उम्दा ग़ज़ल हुई है, मुबारकबाद। सभी…"
19 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"आपने जो सुधार किया है, वह उचित है, भाई बृजेश जी।  किसे जगा के सुनाएं उदास हैं कितनेख़मोश रात…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . अपनत्व
"इतने वर्षों में आपने ओबीओ पर यही सीखा-समझा है, आदरणीय, 'मंच आपका, निर्णय आपके'…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service