For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-106 (विषय: प्रतीक्षा)

आदरणीय साथियो,

सादर नमन।
.
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-106 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है। इस बार का विषय 'प्रतीक्षा', तो आइए इस विषय के किसी भी पहलू को कलमबंद करके एक प्रभावोत्पादक लघुकथा रचकर इस गोष्ठी को सफल बनाएँ।  
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-106
विषय: 'प्रतीक्षा' 
अवधि : 30-01-2024 से 31-01-2024 
.
अति आवश्यक सूचना:-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी केवल एक लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं।
2. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फॉण्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, 10-15 शब्द की टिप्पणी को 3-4 पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है। 
4. एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पाए इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता अपेक्षित है। देखा गया कि कई साथी अपनी रचना पोस्ट करने के बाद गायब हो जाते हैं, या केवल अपनी रचना के आस पास ही मंडराते रहते हैंI कुछेक साथी दूसरों की रचना पर टिप्पणी करना तो दूर वे अपनी रचना पर आई टिप्पणियों तक की पावती देने तक से गुरेज़ करते हैंI ऐसा रवैया कतई ठीक नहींI यह रचनाकार के साथ-साथ टिप्पणीकर्ता का भी अपमान हैI
5. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा गलत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताये हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
6. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि लिखने/लगाने की आवश्यकता नहीं है।
7. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
8. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें। 
.    
यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सकें है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.
.
.
मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)

Views: 449

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

स्वागतम

वो आ  गए

--------------

"बहुत भाग्यवान हो तुम। अभी आई और अभी सब के प्रेम, अर्चना, ममत्व और प्रार्थनाओं की अधिकारिणी हो गई"।

"अरे! हम दोनों हैं तो एक का ही स्वरूप; दोनों में एक ही का वास है; दोनों में उसी के दर्शन हैं। फिर मन क्यों छोटा कर रही हो। लोग चाहे तुम्हें देखें या मुझे, नाम तो वो एक ही लेते हैं और उसी का ध्यान करते हैं"।

"वो सब ठीक है। पर फिर भी मेरे मन में एक बात है, तुम बुरा न मानो तो कह दूँ"।

"कहो ना"।

"दशकों तक धूप, बारिश, गर्मी, सर्दी सब मैंने सहा। सिर्फ़ इसी प्रतीक्षा में कि इसका सुफल मिलेगा। तुम्हें पता है! मेरे पास वस्त्र भी गिने-चुने होते थे। यहाँ तक कि मुझे रहना भी तंबू में पड़ा। और तुम देखो, आते ही महल मिल गए। तुम्हें देख कर हर्ष मिश्रित ईर्ष्या हो रही है मुझे"।

"हा हा हा। ये भी खूब कही। किन्तु यदि प्रतीक्षा ही मानदंड है तो मेरी प्रतीक्षा तुमसे बहुत लंबी है"।

"वो कैसे"।

"ढाई अरब साल तक एक पत्थर बनकर मैंने अपने ऊपर बोझ सहा। फिर छैनी-हथोड़े के असंख्य प्रहार। फिर मन में धुकधुकी लगी रही कि क्या मुझे ही चुना जाएगा। लंबी प्रक्रिया। फिर कहीं जाकर ये सौभाग्य मिला"।

"क्या सचमुच"।

"हाँ री, जैसे अहिल्या ने राह देखी, जैसे शबरी ने देखी; वैसे ही मैंने भी राह देखी है राम की। सदियों सदियों से। पर मुझे विश्वास था, वो आएंगें। और वो आ  गए। और देखना, वो तुम्हें भी नहीं बिसारेंगें। वो सब की प्रतीक्षा का फल देते हैं"।

#मौलिक एवं अप्रकाशित

आदाब। आप आ गये बेहतरीन समसामयिक विचारोत्तेजक रचना के साथ। गोष्ठी का बढ़िया आग़ाज़ करने हेतु हार्दिक मुबारक़बाद जनाब अजय गुप्ता 'अजेय' साहिब।  तथ्यों और कथ्य/कथ्यों पर तो‌ वरिष्ठजन ही कुछ कह सकेंगे। मैंने भी ऐसे विषयांतर्गत ही एक प्रयास किया है।

हार्दिक बधाई आदरणीय अजय जी। आज की लघुकथा गोष्ठी के आगाज की पुनः हार्दिक बधाई ।लघुकथा की विषय वस्तु नवीनतम और वर्तमान परिवेश से जुड़ी हुई है। लेकिन अंतिम पंक्ति थोड़ा विरोधाभास पैदा कर रही है। शबरी और अहिल्या की प्रतीक्षा साक्षात राम के लिये थी और उनके स्वंय के उद्धार के लिये थी। जबकि लघुकथा के शेष भाग में वार्तालाप राम जी की दो मूर्तियों के मध्य हो रहा प्रतीत होता है। उनको किस की प्रतीक्षा थी। यह अस्पष्ट है।फिर भी रोचकता बरकरार है। आपकी लेखन शैली उच्च कोटि की है। कुल मिलाकर आप इस रचना हेतु बधाई के पात्र हैं।

आदरणीय तेजवीर जी, रचना पर अपने बहुमूल्य विचार रखने के लिए और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार। मैं आपकी बात से सहमत हूँ कि रचना का पटाक्षेप संतुलित नहीं है। उस पर कार्य जारी है और शीघ्र ही उसमें परिवर्तन करूँगा। पुनः आभार आपका

आदरणीय शेख उस्मानी जी, रचना तक आने और अपना स्नेह देने के लिए बहुत आभार।

 टैंट वाले राम लला की मूर्तीऔर प्राण प्रतिष्ठा वाली मूर्ती के के बीच संवाद की कल्पना प्रभावशाली लगी। धर्म और दर्शन के आगे कुछ सामाजिक सरोकार का विस्तार और देकर अंत अधिक प्रभावशाली किया जा सकता  था।बहरहाल एक अच्छी रचना से आयोजन का फीता काटने के लिए आपको हार्दिक बधाई 

भूखे (लघुकथा) :


बड़े अस्पताल के बाह्य रोगियों की भीड़-भाड़ में बंदर भी अपनी भोज्य सामग्री की जुगाड़ में थे। तभी एक वरिष्ठ बंदरिया एक झोले की चीर-फाड़ कर बचे-खुचे भोजन के लिए प्लास्टिक के टिफिन ऐसे खोलने लगा जैसे कि प्रशिक्षित या अनुभवी हो। लोग यह दृश्य देखकर मज़े ले रहे थे। बाल-बंदर अस्पताल की बिल्डिंग के छज्जे से अपनी मां की गतिविधियों को ग़ौर से देख रहे थे।
"मम्मी छोड़ दो वह सब। लोग हंस रहे है! तुम्हारा वीडियो बना रहे हैं!" बंदरिया का एक बच्चा बोला।
"हंसने दो! हम उन पर हंसते हैं और हंसेंगे... इतना सारा भोजन यूं ही फैंकते हैं... बरबाद करते हैं। हम ही तो इस अन्न की क़ीमत समझते हैं!"
"मम्मी, आ जाओ वापस... हम जूठन नहीं खायेंगे अब! देखो उन लोगों के बच्चे पैकेटों में नई -नई चीज़ें खा रहे हैं। हमें भी पैकेट ही चाहिए!" दूसरे नन्हे बंदर ने कहा।
भूखी बंदरिया भीड़ से डरकर जूठन बच्चों तक नहीं पहुंचा सकी, तो खुद ही किसी तरह पेट पूजा करने लगी।
दर्शकों की भीड़ में एक महिला अपने पेट पर हाथ धरे अपने साथ के भूखे मरीज़ और बच्चों को निहारते रह गई।


(मौलिक व अप्रकाशित)

कृपया /ऐसे खोलने लगा/ को /ऐसे खोलने लगी/ पढ़ियेगा।

लघुकथा गोष्ठी में सहभागिता हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी। लघुकथा आपके नाम के अनुरूप नहीं है। पाठक आपसे और अधिक उच्च स्तरीय लेखन की अपेक्षा रखता है। आप एक सशक्त लघुकथाकार हैं। आपकी लेखनी ने बहुत सारी अनूठी रचनायें दी हैं। उम्मीद है आप मेरी टिप्पणी को अन्यथा नहीं लेंगे।

आदाब। आपकी बेबाक स्पष्ट प्रतिक्रियाओं और समीक्षात्मक टिप्पणियों ने हमेशा मुझे मार्गदर्शन दिया है और प्रोत्साहित किया है। हार्दिक धन्यवाद आदरणीय तेजवीर सिंह जी। और अधिक परिश्रम करने की कोशिश करता रहूंगा।

आदरणीय शेख उस्मानी जी, आपकी लेखनी लघुकथा के अनंत पहलुओं को सम्मुख लाती रही है। और उनमें विभिन्न भाव और जागरूकता के विषय आपने उठाए हैं। इसमें भी आपने अच्छा संदेश प्रस्तुत किया है कि संसाधनों के समुचित और समान वितरण कि प्रतीक्षा जाने कब समाप्त होगी। फिर भी मैं तेजवीर भाई कि बात से सहमत हूँ कि आप निःसंदेह इसे और सशक्त कर सकते हैं।

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपने क्या ही खूब दोहे लिखे हैं। आपने दोहों में प्रेम, भावनाओं और मानवीय…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शेर-दर-शेर दाद ओ मुबारकबाद क़ुबूल करें ..... पसरने न दो…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेन्द्र जी समाज की वर्तमान स्थिति पर गहरा कटाक्ष करती बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने है, आज समाज…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
Wednesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
Tuesday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
Tuesday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लघुकथा पर आपकी उपस्थित और गहराई से  समीक्षा के लिए हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश जी"
Sep 30
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आपका हार्दिक आभार आदरणीया प्रतिभा जी। "
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लेकिन उस खामोशी से उसकी पुरानी पहचान थी। एक व्याकुल ख़ामोशी सीढ़ियों से उतर गई।// आहत होने के आदी…"
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"प्रदत्त विषय को सार्थक और सटीक ढंग से शाब्दिक करती लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय…"
Sep 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदाब। प्रदत्त विषय पर सटीक, गागर में सागर और एक लम्बे कालखंड को बख़ूबी समेटती…"
Sep 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service