साथियों,
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बहुत खूब भाई मोहम्मद नायाब जी. उम्दा ग़ज़ल हुई है, सभी अशआर अच्छे है हालांकि हव्वे वाला शेअर भर्ती का लग रहा है। गिरह भी बहुत पसंद आई। शेअर-दर-शेअर मेरी मुबारकबाद स्वीकार करें।
//फैसला ये दिया गया है मुझे।।//
फैसला तो सुनाया जाता है न? क्या इस मिसरे में "हुक्म ऐसा दिया गया है मुझे" करना बेहतर न होगा?
जनाब मोहम्मद नायाब साहब उम्दा कलाम के लिए दाद कबूल कीजिये|
नायाब भाई मुबारकबाद पेश करता हूँ |
आदरणीय नायाब साहब, लाजवाब गजल कहने के लिए बधाइयाँ।
मैं तो इंसान हूँ सभी के लिए ।
देवता क्यों कहा गया है मुझे ।।...इस अशआर पर खास तौर से बधाइयाँ
जनाब मोहम्मद नायब जी, आपकी ग़ज़ल बहुत प्रभावित की, गिरह लगाने का हुनर अच्छा लगा, बहुत बहुत बधाई।
अच्छी ग़ज़ल कही है आपने आदरणीय मोहम्मद नायाब जी| हार्दिक बधाई|
आदरणीय नायब साहब, बहुत अच्छे अशआर हुए हैं. हार्दिक बधाई.
मैं तो इंसान हूँ सभी के लिए ।
देवता क्यों कहा गया है मुझे ।। बहुत ही लाजवाब शे'र ।
शे'र दर शे'र दाद के साथ दिली मुबारकबाद भाई नायाब जी ।
( १ )
दीप जैसा बना गया है मुझे
तम से लड़ना सिखा गया है मुझे।१।
कुछ भी हो पर न सच का साथ तजूँ
पथ वो ऐसा दिखा गया है मुझे।२।
दोष मेरे वो अपने सर लेकर
सब की नजरों उठा गया है मुझे।३।
बात उस की दुखों से तार गयी
गंगा जल ज्यों पिला गया है मुझे।४।
सब्र तौफ़ीक दे के जब से गया
"सब्र करना तो आ गया है मुझे"।५।
जिसकी रगरग में बस रहा था कभी
झट से पल में भुला गया है मुझे।६।
जिसको पूछा न था सुखों में कभी
वो ही दुख में निभा गया है मुझे।७।
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण भाई, शायद अपने अपना सर्वश्रेष्ठ आने वाले दिनों के लिए रख लिया।
बहरहाल इस ग़ज़ल के लिए बधाई।
आ. भाई अजय जी, सादर आभार।
पहले और आख़री बेहतरीन अशआर के साथ शानदार ग़ज़ल हेतु सादर हार्दिक बधाई आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' साहिब।
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