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यही रचना में कहने का प्रयत्न किया है आदरणीया कांता जी, उचित कर्मविहीन कर्म तो भीख ही है| आपका हृदय से आभार, आपने रचना के मर्म को जानकर अपनी टिप्पणी से मेरी हौसला अफज़ाई की| सादर,
रचना को पसंद करने और उस पर अपनी स्नेहिल टिप्पणी हेतु आपका हृदयतल से आभारी हूँ आदरणीय सतविन्द्र कुमार जी
समसामयिक विषय चुनकर प्रदत्त विषय में बड़ी ही कुशलता से ढाल कर एक उत्कृष्ट रचना का निर्माण किया है आपने हार्दिक बधाई आदरणीय चंद्रेश जी
रचना को पसंद करने और उस पर अपनी टिप्पणी द्वारा मेरे मनोबल को उच्च करने हेतु आपका हृदयतल से आभारी हूँ आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी
वाह वाह प्रतीकों के माध्यम से क्या करारा व्यंग कसा है आपने लघु कथा में बहुत शानदार प्रस्तुति ..हार्दिक बधाई स्वीकारें आ० चन्द्रेश जी
लघुकथा के इस प्रयास को पसंद करने और उस पर अपनी टिप्पणी द्वारा मेरे मनोबल को उच्च करने हेतु आपका हृदयतल से आभारी हूँ आदरणीया राजेश कुमारी जी
लघुकथा का यह प्रयास आपको ठीक लगा और इसके मर्म तक जाकर अपनी टिप्पणी द्वारा मेरे उत्साहवर्धन हेतु आपका सादर आभार, आदरणीय वीर मेहता भाई जी|
"साथी"
कार्यालय की व्यस्तता के कारण मैं संवेद के पिता की अंत्येष्टि में नहीं पहुँच सका अतः शाम को लौटते समय संवेदना जताने मैं उसके घर पहुंचा I घर अन्धकार में डूबा था I मैंने दरवाजे पर दस्तक दी I कुछ पल के इन्तजार के बाद दरवाजा खुला I सामने इमरजेंसी-लाईट लिए भावशून्य संवेद की माँ खडी थी.
मैंने घबराकर पूंछा –‘ माँ जी आप ---?
‘आओ बेटा --- अभी-अभी लाइट गयी है I जीवन की तरह घर में भी अँधेरा है i’
मै उनके साथ ड्राईंग रूम तक गया I इमरजेंसी –लाईट में मैंने संवेद के पिता की टेबल-साइज फोटो देखी, जिस पर चढ़े फूल कुछ मुरझा से गए थे I अंकल के बारे में कुछ पूंछना चाहता था पर हिम्मत नहीं पडी I
‘माँ जी आप अकेली हैं क्या ---? मेरा मतलब बाकी सब लोग कहाँ गए ? संवेद, भाभी और बच्चे,m कोई नहीं दिख रहा I ‘- मेरे मुख से संवेदना में इतना ही निकला I
‘वह घाट से लौटा तो बहुत अपसेट था I इसलिए उसने ‘वेव’ में सिनेमा देखने का प्लान बना लिया I अब सब लोग वही से खाना खाकर लौटेंगे I’- माँ की आखों से अविरल आंसू बह रहे थे I मुझे आश्चर्य हुआ I संवेद पर कुछ क्रोध भी आया I ऐसे मौके पर भी यह हृदयहीनता !
‘माँ जी मुझे अंकल के लिए दुख है I मैं समझ सकता हूँ कि जीवन-साथी का बिछड़ना कितना असहनीय है पर ---?’
‘पर क्या बेटे, जो छोड़कर चले गये वह जीवन-साथी कैसे हुए ? साथी तो मेरे ये आंसू हैं जो जन्म से मेरे साथ हैं और अंत तक मेरे साथ रहेंगे I मैंने हमेशा इन्हें अपना आत्मीय माना है मेरे लिये ये सिर्फ पानी की बूँद मात्र नहीं अपितु मेरा जीवन-संबल हैं I इस साथी के रहते मुझे कोई फ़िक्र नहीं I मैने आंसू बहाना और पीना दोनों सीख लिया है और संवेद को भी यह बात अच्छी तरह समझा दी है I अब किसी को मेरी चिंता करने की आवश्यकता नही है I ‘
(मौलिक व अप्रकाशित )
आदरणीय गोपाल सर, इतनी मार्मिक लघु कथा , किन्तु सत्य ही है " जो छोड़कर चले गए वे साथी कैसे हुये " इतनी बड़ी बात मन को समझने के लिए बहुत हिम्मत चाहिए । समझते तो सभी है देर सबेर । अच्छी कथा हेतु बधाई स्वीकारें ।
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