For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-57

परम आत्मीय स्वजन,

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" के 57 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह मेरे पसंदीदा शायर हज़रत दाग़ देहलवी की ग़ज़ल से लिया गया है|

 

"मुझ को वो मेरे नाम से पहचान तो गया"

221 2121 1221 212

मफ़ऊलु फाइलातु मुफ़ाईलु फाइलुन

(बह्र: मुजारे मुसम्मन् अखरब मक्फूफ महजूफ)
रदीफ़ :- तो गया 
काफिया :- आन (ईमान, सामान. दीवान, पहचान आदि )

 

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 27 मार्च दिन शुक्रवार लगते ही हो जाएगी और दिनांक 28 मार्च दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 27 मार्च दिन शुक्रवार  लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन
बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.comपर जाकर प्रथम बार sign upकर लें.
जिस ग़ज़ल से यह मिसरा लिया गया है उसे बहुत ही खूबसूरत आवाज़ से नवाज़ा है शुमोना राय बिस्वास ने
 


मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 14229

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

//

हैरान मौलवी भी है इस बात पर बहुत

क्यों गाँव रोजादार है रमजान तो गया//

यह शेर मुझे बहुत ही नजदीक लगा, अच्छी ग़ज़ल हुई है जिसपर दाद दे रहा हूँ कुबूल करें आदरणीय खुर्शीद साहब.

तरही मुशायरे के अनुरूप न रहने के कारण यह पोस्ट प्रबंधन स्तर से हटाई जा रही है.

एडमिन 

२०१५०३२८०७ 

आदरणीय जोशी जी आपकी रचना इस आयोजन के नियमों को संतुष्ट नहीं करती

आ० जोशी जी ,आपकी रचना तरही ग़ज़ल के मानकों पर खरी नहीं है ,रचना में  भाव की कमी तो नहीं है  बस इसे बह्र पर कसना था |आप सबकी ग़ज़ल पढ़िए आपको खुद समझ आ जाएगा |बहरहाल सहभागिता के लिए बधाई 

आदरणीय सौमित्र मोहन जोशी जी आपने आयोजन में शिरकत की उसके लिए आप बधाई के पात्र है... आपकी पहली रचना से गुजर रहा हूँ जो भाव स्तर पर तो संतुष्ट करती है किन्तु आयोजन के नियमों और ग़ज़ल विधा के अनुरूप नहीं है. फिर भी यह  प्रयास आश्वस्त करता है. आपके लिए एक सुझाव भी है और आपसे निवेदन भी  है कि इस मंच पर ग़ज़ल की कक्षा और ग़ज़ल की बातें के अंतर्गत बहुत अच्छी जानकारी ग़ज़ल के बाबत उपलब्ध है उसे अवश्य ही पढ़ जाइएगा. सादर 

एक कोशिश

 

अब खेल इस जहाँ के सभी जान तो गया

पर पेट की ही आग में ईमान तो गया

 

ठहरी है ज़िंदगी में अमावस की रात यूँ

इस स्याहपन में भोर का अरमान तो गया

 

बदली हुई सी इस मेरी सूरत के बाद भी

‘मुझको वो मेरे नाम से पहचान तो गया’

 

इक चाँद की फिराक में फिरता था वो चकोर

इस आशिकी के फेर में नादान तो गया

 

परछाइयों के साथ पे इतरा रहा था मैं

सूरज ढला तो साथ का यह भान तो गया  

वाह  वाह  ब्रिजेश जी ,आपकी कोई पहली ग़ज़ल पढ़ रही हूँ सभी अशआर  खूबसूरत बने हैं 

ठहरी है ज़िंदगी में अमावस की रात यूँ

इस स्याहपन में भोर का अरमान तो गया--बहुत  शानदार  शेर 

गिरह का शेर भी उम्दा 

परछाइयों के साथ पे इतरा रहा था मैं

सूरज ढला तो साथ का यह भान तो गया  ----सानी में दो बार  तो  का इस्तेमाल कुछ ठीक नहीं लग  रहा 

सूरज ढला जो  साथ का वो  भान तो गया --करके देखिये 

आपको बहुत बहुत बधाई 

 

आदरणीया राजेश कुमारी जी!

आपका हार्दिक आभार!

आपका सुझाव उचित है! इस त्रुटि की तरफ मेरा ध्यान नहीं गया! एक बार पुनः आभार! 

आदरणीय बृजेश जी आपकी पहली ग़ज़ल से गुजर रहा हूँ. पाँचों अशआर बेहतरीन हुए है .... सुन्दर मतला, शानदार गिरह और ये कमाल के अशआर-

ठहरी है ज़िंदगी में अमावस की रात यूँ

इस स्याहपन में भोर का अरमान तो गया..... वाह वाह 

 

परछाइयों के साथ पे इतरा रहा था मैं

सूरज ढला तो साथ का यह भान तो गया  ... आ. राजेश दीदी की इस्लाह पर विचार अवश्य कीजियेगा ... शेर बेहतरीन हो जायेगा 

 

इक चाँद की फिराक में फिरता था वो चकोर

इस आशिकी के फेर में नादान तो गया............ वाह वाह 

दिल से दाद हाज़िर है 

आदरणीय आपका हार्दिक आभार!

आप लोगों की संगत में बहुत कुछ सीखने को मिलता है!

इक चाँद की फिराक में फिरता था वो चकोर

इस आशिकी के फेर में नादान तो गया

 

परछाइयों के साथ पे इतरा रहा था मैं

सूरज ढला तो साथ का यह भान तो गया  

आदरणीय ब्रिजेश जी पहली ही ग़ज़ल इतनी उम्दा हुई है कि 'यह पहला प्रयास है ' पर संदेह पैदा करती है |इस उम्दा ग़ज़ल पर ढेरों दाद कबूल फरमावें |सादर |

आदरणीय खुर्शीद सर ये पहला प्रयास है भी नहीं. आदरणीय बृजेश जी मंच पर काफी समय से सक्रीय है और अरुज के अच्छे जानकार. उन्होंने एक कोशिश लिखी है.

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आ. भाई जैफ जी, अभिवादन। गजल का प्रयास अच्छा है। हार्दिक बधाई। भाई अमीरुद्दीन जी की सलाह पर गौर करें।"
7 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, स्नेह के लिए आभार।"
9 minutes ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
2 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय यूफोनिक अमित जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
4 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी जी आदाब  अच्छी ग़ज़ल हुई बधाई स्वीकार करें।"
5 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, ग़ज़ल अभी और मश्क़ और समय चाहती है। "
10 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"जनाब ज़ैफ़ साहिब आदाब ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है बधाई स्वीकार करें।  घोर कलयुग में यही बस देखना…"
10 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"बहुत ख़ूब। "
11 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय लक्ष्मण जी बहुत शुक्रिया आपका  सादर"
12 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय अमीर जी  बहुत शुक्रिया आपका हौसला अफ़ज़ाई के लिए आपके सुझाव बेहतर हैं सुधार कर लिया है,…"
12 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय अमित जी बहुत बहुत शुक्रिया आपका इतनी बारीक़ी से समझने बताने और ख़ूबसू रत इस्लाह के लिए,ग़ज़ल…"
12 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service