आदरणीय साहित्य-प्रेमियो,
सादर अभिवादन.
ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव, अंक- 47 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है.
आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ –
20 मार्च 2015 से 21 मार्च 2015,
दिन शुक्रवार से दिन शनिवार
इस बार के आयोजन के लिए जिस छन्द का चयन किया गया है, वह है – ताटंक छन्द
ताटंक छन्द तथा कुकुभ छन्द में जो महीन अन्तर है. उस पर ध्यान रहे तो छन्द-प्रयास और अधिक रोचक होगा. भान होगा कि पिछले आयोजन में हमसब ने कुकुभ छन्द के आलोक में जो रचनाकर्म किया था या प्रतिक्रिया छ्न्द रचे थे, उनमें से कई ताटंक छन्द थे !
ताटंक छ्न्द के आधारभूत नियमों को जानने के लिए यहाँ क्लिक करें
एक बार में अधिक-से-अधिक तीन ताटंक छन्द प्रस्तुत किये जा सकते है.
ऐसा न होने की दशा में प्रतिभागियों की प्रविष्टियाँ ओबीओ प्रबंधन द्वारा हटा दी जायेंगीं.
आयोजन सम्बन्धी नोट :
फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 20 मार्च 2015 से 21 मार्च 2015 यानि दो दिनों के लिए रचना और टिप्पणियों के लिए खुला रहेगा.
[प्रयुक्त चित्र अंतरजाल (Internet) के सौजन्य से प्राप्त हुआ है]
केवल मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएँ ही स्वीकार की जायेंगीं.
विशेष :
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अति आवश्यक सूचना :
छंदोत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ
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मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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"मदिर वायु भी नर्तन करती लगती है मधुशाला सी"आ० गोपाल नारायण जी, क्या बात कही है? मुंबई को इससे सुंदर और सटीक काव्यंजलि हो ही नही सकती
आ० शर्मा जी
आपके स्नेह ने मुग्ध कर दिया. सादर.
आदरणीय गोपाल भाईजी
आपके छंद ने चित्र को सजीव कर दिया। इस सुंदर प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई
आ० अखिलेश जी
बहुत बहुत धन्यवाद . सादर.
आदरणीय डॉ. गोपाल नारायण श्रीवास्तव साहब सादर प्रणाम, प्रदत्त चित्र पर रचे तीनों ही छंद मन में चित्र को जीवंत कर रहे हैं. तीनो छंद अपनी-अपनी बात को बहुत अच्छे से कह पा रहे हैं. बहुत-बहुत बधाई. सादर.
आ० रक्ताले जी
आपका धन्यवाद . सादर.
आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव सर मंत्रमुग्ध करती रचना पर हार्दिक बधाई निवेदित है. बस बहता गया छंद प्रवाह में . नमन
आ० मिथिलेश जी
आपका स्नेह सर आँखों पर . सादर .
आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव सर, आपकी यह रचना भी बहुत सुन्दर है
है मरीन ड्राइव का मनहर दृश्य बड़ा प्यारा-प्यारा
शांत यहाँ पर दिखता श्यामल सागर का पानी खारा
हैं इमारतें तटवर्ती अति उच्च शिखर की माला सी
मदिर वायु भी नर्तन करती लगती है मधुशाला सी........गज़ब की कल्पनाशीलता , हार्दिक बधाई ! सादर
आ० हरी प्रकाश जी
आपका हार्दिक आभार . सादर .
आ० दिनेश जी
आपको बहुत बहुत धन्यवाद . सादर .
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