संचालित कर दया करूणा, स्वार्थ पूर्ति का भाव नहीं
खुद को समर्पित तुझको कर दूँ,
इच्छाऐं मेरी खास नहीं ॥
डोली सजा तेरे दर पर आई, उगने वाली कोइ घास नहीं
हाथ उठाने की गलती ना करना,
नहीं सहुंगी वार कोई ॥
तेरे इशारों पर इत-उत डोलूँ, तूँ कोई सरकार नहीं
क्रोध करो मैं थर्र थर्र कांपू,
डरने वाली मैं नार नहीं ॥
तुम जालाओं शमां की महफिल, होके नशे में धुत कहीं
ढूँढ बहाने झूठ भी बोलो
इतना तुम पर ऐतबार नहीं ॥
भरोसा करूँ मैं खुद से ज्यादा, धोखा ना देना मुझको कभी
छोड़ ने तुझको देर करूँ ना
दिल्लगी मुझको पसंद नहीं ॥
पढ़ी लिखी मैं शिक्षित नारी, अबला, अनपढ़ ना गँवार नहीं
प्रेम करों तो प्यार मिलेगा
नहीं सहूँगी अत्याचार कोई ॥
दफ्तर संग मैं घर भी संभालू, आराम का ना नाम कहीं
ऊपर सें तेरे नखरे सहती
मुझमें शक्ति का अंबार नहीं ॥
क़दम मिला मैं साथ चलूँ तेरे, मानती तेरी हर बात कहीं
हँसी खु़शी तेरे संग, जिंदंगी बिता दूँ
प्रेम का मेरे कोई पार नहीं ॥
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
जनाब फूल सिंह जी आदाब,अच्छी रचना हुई,बधाई स्वीकार करें ।
आ. भाई फूलसिंह जी, अच्छी रचना हुई है । हार्दिक बधाई ।
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