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उल्फत या कि नफ़रत। (अतुकांत कविता)

सुना था मसले,
दो तरफा हुआ करते हैं,
पर हैरानगी का आलम तब हुआ कि,
जब वे अकेले ही ख़फा हो, बैठ गए।
हमने भी यह सोच कर,
ज़िक्र न छेड़ा कि,
ख़ामोशी कई मर्तबा,
लौटा ही लाती है, मुहब्बते-इज़हार,
पर अफसोस कि,
पासा ही पलट गया,
अपना तो मजमा लग गया,
और वे जो उल्फ़तों के किस्से गढ़ा करते थे,
नफ़रतों की मीनारें खड़ी करते चले गए।

मौलिक व् अप्रकाशित।

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Comment

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Comment by Usha on December 6, 2019 at 10:01am

आदरणीय समर कबीर साहब, इतनी कमज़ोर हुई मेरी रचना फिर भी आप बधाई देकर मेरा प्रोत्साहन बढ़ा रहे हैं। आपका हृदय से आभार।

(मेरे ख़याल से अभी आपको बहुत अध्यन करना है,मंच पर आई अतुकांत कविताओं का अध्यन करें ।)
- जी सर बिल्कुल, आपकी बात मान्य है।

('सुना था मसले'
इस पंक्ति में सहीह शब्द है 'मसअले')
- जी सर, भविष्य में ख़्याल रहेगा।

("पर हैरानी की बात तब हुई कि वो ख़फ़ा हो बैठे")
- अति सुन्दर।
- सर, मेरा भाव नहीं आ पाया लगता है। कहना चाहती कि खफ़ा होना किसी और को था, हो कोई और गया।

(इन पंक्तियों में 'महब्बते इज़हार' शब्द भर्ती के हैं,)
- सर, (भर्ती के हैं) नहीं समझी। मेरा भाव ये था कि कई बार चुप हो जाने से बात बढ़ती नहीं और प्रेम भाव बिना किसी गाँठ के पुनः जागृत हो जाता है।

('अपना तो मजमा लग गया')
- सर, मेरा भाव था कि तमाशा उसका बन गया जिसका कोई कुसूर ही नहीं था।

सर, आपके सभी सुझाव मान्य हैं। भविष्य में अवश्य और प्रयास की आवश्यकता है जो मैं अवश्य करुँगी, हार नहीं मानूँगी चूँकि आप जैसे गुरु का सानिध्य प्राप्त हो गया है। स्वयं को भाग्यशाली समझती हूँ। आपका हृदय से आभार। सादर।

Comment by Usha on December 6, 2019 at 9:41am

आदरणीय महेंद्र साहब, समर कबीर साहब का हर सुझाव मेरे लिए मान्य है। मैं प्रयासरत हूँ कि अच्छा कर सकूँ। इस मंच से ही सीख रही हूँ। यूँ तो मैं अंग्रेज़ी साहित्य की छात्रा व् प्राध्यापिका हूँ किन्तु हिन्दी में लिखने का प्रयास सुखद लगता है। इस मंच की कृतियों से ही सीख खुद को सीखा रही हूँ साथ ही आप सभी के सुझावों से भी। भविष्य में यकीनन अच्छा करने का प्रयास करुँगी। इतनी खामियों के बावज़ूद सकारात्मक टिप्पणी के लिए हृदय से आपका आभार। सादर।

Comment by Mahendra Kumar on December 4, 2019 at 6:17pm

आदरणीया उषा जी, अतुकान्त का अच्छा प्रयास है। कृपया आदरणीय समर कबीर सर की बातों का संज्ञान लें। हार्दिक बधाई। सादर।

Comment by Samar kabeer on November 28, 2019 at 11:03am

मुहतरमा ऊषा जी आदाब,अच्छी अतुकांत कविता लिखी आपने,बधाई स्वीकार करें ।

मेरे ख़याल से अभी आपको बहुत अध्यन करना है,मंच पर आई अतुकांत कविताओं का अध्यन करें ।

'सुना था मसले'

इस पंक्ति में सहीह शब्द है 'मसअले'

'पर हैरानगी का आलम तब हुआ कि'

इस पंक्ति में 'हैरानगी' कोई शब्द ही नहीं है ,और दूसरी बात ये कि शिल्प भी कमज़ोर है,

'जब वे अकेले ही ख़फा हो, बैठ गए'

अरे भाई जब कोई ख़फ़ा होता है तो किसी को साथ लेकर थोड़े ही ख़फ़ा होता है,इस पूरी पंक्ति को यूँ होना था:-

"पर हैरानी की बात तब हुई कि वो ख़फ़ा हो बैठे"

'हमने भी यह सोच कर,
ज़िक्र न छेड़ा कि,
ख़ामोशी कई मर्तबा,
लौटा ही लाती है, मुहब्बते-इज़हार'

इन पंक्तियों में 'महब्बते इज़हार' शब्द भर्ती के हैं,

'अपना तो मजमा लग गया'

इस पंक्ति में 'मजमा' शब्द का क्या अर्थ लिया है आपने?

Comment by Usha on November 27, 2019 at 6:52pm
आदरणीय प्रदीप सर, ह्रदय से आपका आभार। सादर ।
Comment by Usha on November 27, 2019 at 6:51pm
आदरणीय डॉ गीता चौधरी जी, ह्रदय से आपका आभार । सादर ।
Comment by प्रदीप देवीशरण भट्ट on November 27, 2019 at 6:39pm

बेहतरीन ख्याल, बधाई उषा जी

Comment by Dr. Geeta Chaudhary on November 27, 2019 at 10:22am

आदरणीय उषा जी, सुंदर कविता के लिए बहुत बधाई आपको।

Comment by Usha on November 27, 2019 at 8:18am

आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' सर, आपको मेरी कविता पसंद आयी। प्रसन्नता हुई। आपका हृदय से आभार। सादर।

Comment by Usha on November 27, 2019 at 8:17am

आदरणीय विजय शंकर सर , (उल्फत, नफ़रत, और किसी किसी की अपनी अपनी फितरत) इन शब्दों ने मुझे और नए भावों को मह्सूस करने का मौका दे दिया। प्रोत्साहित करने के लिए आपका धन्यवाद। आभार। सादर।

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