२२१/२१२१/१२२१/२१२
दिल से निकल के बात निगाहों में आ गयी
जैसे हसीना यार की बाहों में आ गयी।१।
धड़कन को मेरी आपने रुसवा किया हुजूर
कैसे हँसी, न पूछो कराहों में आ गयी।२।
रुतबा है आपका कि सितम रहमतों से हैं
हमने दुआ भी की तो वो आहों में आ गयी।३।
कैसा कठिन सफर था मेरा सोचिये जरा
हो कर परेशाँ धूप भी छाहों में आ गयी।४।
सौदा जो सिर्फ देह का परवान चढ़ गया
सच्ची थी आशिकी वो गुनाहों में आ गयी।५।
नभ से गिरे तो.. वाली कहावत का सार ये
कैसे कहूँ कि आज पनाहों में आ गयी।६।
ये सब है वक्त और हवाओं की साजिशें
यूँ ही कली न टूट के राहों में आ गयी।७।
लायी है उसको यार गरज खींच कर यहाँ
ये मत समझ कनीज सलाहों में आ गयी।८।
*****
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
आ. भाई दिगम्बर जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए धन्यवाद।
आ. भाई बृजेश जी, गजल की प्रशंसा के लिए आभार।
आ. भाई आमोद जी, हार्दिक धन्यवाद।
आ. भाई बसंत जी, गजल की प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद।
आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।
इंगित शेर के विषय में मैं भी शंसय में था । मार्गदर्शन के लिए आभार।
बहुत खूबसूरत गज़ल हुयी है आदरणीय ...
दिली दाद मेरी ...
वाह बहुतखूब ग़ज़ल कही है आदरणीय..बधाई
आ मुशाफिर भाई साहब सदर नमस्कार
गजल के लिए दिली दाद। .नमन
आदरणीय लक्ष्मण धामी को सादर नमस्कार, लाजबाब ग़ज़ल हुई है , आनंद आ गया ,
बहुत बहुत बधाई आपको
जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
'हो कर परेशाँ धूप भी छाहों में आ गयी'
इस मिसरे में क़ाफ़िया सहीह नहीं है,देखियेगा ।
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