For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

*रक्तसिक्त हाथ* (लघुकथा)

हवालाती कैदी के रूप में तीसरा दिन। किसी से मुलाक़ात के लिए उसे भी पुकारा गया। मुलाकात कक्ष में पहुँचते ही सींखचों के पार एक मुस्कुराता चेहरा नज़र आया।
काजू कतली का डिब्बा आगे बढ़ाते हुए जिसने कहा, ''रजिस्ट्री हो गई साहब! मुँह मीठा करवाने आया हूँ।"

कुछ ही समय पहले जो बिलकुल अंजान था, वही चेहरा अहर्निशं अब उसकी आंखों और दिमाग़ में तैरता रहता है।
सत्यवीर भान का चेहरा। आज दूसरी बार इस चेहरे पर भयानक मुस्कुराहट देख पा रहा था। जिसे देखकर उसे स्मरण हो आया।

सत्यवीर उसके दफ्तर के बाहर था। चपरासी ने एक घण्टा रोके रखा। फिर मिलने जाने दिया।
"जय हिंद साहब!"
उसने कागज को पढ़ते हुए तिरछी आँख से देखा और मौन अभिवादन पेश किया।
दफ्तर में दो अन्य व्यक्ति, उसके सामने ही कुर्सियों पर बैठे थे।
बिना उसकी अनुमति की प्रतीक्षा किए, सत्यवीर याचना करने लगा,
"साहब! एक छोटे-से मकान का बयाना दिया था। रजिस्टरी करवाने गये तो उन्होंने कमेटी से एन ओ सी लाने की बात कही। कह रहे हैं इसके बिना रजिस्ट्री नहीं होगी।"

वह निर्विकार भाव से कागज को पढ़ता रहा।
"साहब! मैं ढाई महीने से आपके दफ्तर में आ-जा रहा हूँ। कागज़ों में कुछ कमी है तो बताओ। यहाँ के बाबू मुझे हर नए दिन का करार दे रहे हैं।"

तभी हाथ में कुछ फाइलें सँभाले एक बाबू ने प्रवेश किया। अभिवादन कर फाइलें मेज पर रख कर वह भी उसके सामने कुर्सी पर बैठ गया।

सत्यवीर फिर गिड़गिड़ाया, "साहब!"

वह रूखी-सी आवाज में बोला, "इसका क्या मैटर है?"

बाबू ने कहा, " डेवलोपमेन्ट चार्जेज लेकर एन ओ सी देने का मामला है। आपके सामने फाइल आई थी। क्वेरी लगाई थी आपने।"

सामने बैठे व्यक्तियों की ओर देखते हुए बोला ," छः छः महीने लगा देते हैं क्वेरी का जवाब देने में सब डिवीजन वाले।"
फिर बेपरवाही से सत्यवीर को संबोधित किया, " चिट्ठी डालकर बुला लेंगे जब काम हो जाएगा।"

अगली बार सत्यवीर जब उसके दफ्तर में आया तो वह और बाबू दो ही जन बैठे थे। सत्यवीर के हाथ में एक लिफाफा था। चुपके-से उसे थमाते हुए वह बोला, " साहब! मैं मोटी अकल कुछ समझ ही न पाया पहले। मुझे माफ़ करते हुए आज तो मेहरबानी कर दें साहब!"
लिफ़ाफ़े को नीचे किया। जिसे अंदर से टटोलते ही उसके चेहरे पर मुस्कान फ़ैल गयी। बाबू की ओर इशारा किया। जो सत्यवीर को फीस जमा करवाने ले गया।
एन ओ सी मिलते ही सत्यवीर भी मुस्कुराते हुए बाहर निकला। बाहर की तरफ मुस्कुराते हुए अँगूठा उठा कर दिखाया।
तभी अचानक तीन व्यक्ति आए और दफ्तर में झट-से घुसे व साहब को बाहर ले आए।
उसे हाथों को साफ़ पानी से धोने के लिए कहा गया। हाथ पानी से धोए जा रहे थे मगर लग रहा था कि वे खून में सने हैं और खून मिला लाल पानी उनसे तरड़ रहा है।

सत्यवीर के चेहरे पर जो मुस्कान उस समय थी वह उतनी ही भयानक थी जितनी कि आज।

मौलिक अप्रकाशित

Views: 959

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on January 2, 2019 at 6:35pm

शीर्षक उम्दा और बेहतरीन।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on January 2, 2019 at 6:34pm

आदाब। चिर-परिचित और समाचारों/फ़िल्मों में बताये जा चुके प्रसंग पर आपकी अपनी बेहतरीन प्रवाहमय शैली और शिल्प में प्रभावशाली रचना। हार्दिक बधाई आदरणीय सतविंदर कुमार राणा साहिब। संदेश सतर्क, चौकन्ना और न्याय के लिए पुलिस की मदद लेना और 'जैसे को तैसा ' का है। मुस्कराहट का बढ़िया उपयोग किया गया है भावाव्यक्ति हेतु।

Comment by नाथ सोनांचली on January 2, 2019 at 3:22pm

आद0 सतविंद्र जी सादर अभिवादन। बढ़िया लघुकथा लिखी आपने, बधाई स्वीकार कीजिये

Comment by Samar kabeer on January 2, 2019 at 3:05pm

जनाब सतविन्द्र कुमार राणा जी आदाब,अच्छी लघुकथा लिखी आपने,लेकिन तवालत ज़ियादा हो गई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"दोहे******करता युद्ध विनाश है, सदा छीन सुख चैनजहाँ शांति नित प्रेम से, कटते हैं दिन-रैन।१।*तोपों…"
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"सादर अभिवादन, आदरणीय।"
6 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"स्वागतम्"
11 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"अनुज बृजेश , आपका चुनाव अच्छा है , वैसे चुनने का अधिकार  तुम्हारा ही है , फिर भी आपके चुनाव से…"
yesterday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"एक अँधेरा लाख सितारे एक निराशा लाख सहारे....इंदीवर साहब का लिखा हुआ ये गीत मेरा पसंदीदा है...और…"
yesterday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"//मलाई हमेशा दूध से ऊपर एक अलग तह बन के रहती है// मगर.. मलाई अपने आप कभी दूध से अलग नहीं होती, जैसे…"
yesterday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"आदरणीय जज़्बातों से लबरेज़ अच्छी ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद पेश करता हूँ। मतले पर अच्छी चर्चा हो रही…"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 179 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"बिरह में किस को बताएं उदास हैं कितने किसे जगा के सुनाएं उदास हैं कितने सादर "
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . अपनत्व
"सादर नमन सर "
yesterday
Mayank Kumar Dwivedi updated their profile
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"धन्यवाद आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब.दूध और मलाई दिखने को साथ दीखते हैं लेकिन मलाई हमेशा दूध से ऊपर एक…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service