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ग़ज़ल- बूँद भर जल के लिए लिपटा हूँ काँटों की कली से।

2122 2122 2122 2122


इस कदर बेबस हूँ मैं, लाचार हूँ इस ज़िन्दगी से
दोस्तों, मर भी नहीं सकता अभी, अपनी खुशी से।

क्या कहूँ, अपने लिए कुछ, दूसरों के वास्ते कुछ
कायदे तुमने लिखे है सोच बेहद दोगली से।

वक्त उन माँ-बाप को भी दे जरा, तेरे लिए
जो उभर पाये नहीं ताउम्र अपनी मुफ़लिसी से।

इश्क़ के सहरा में 'राहुल' प्यास से बदहाल यूँ हूँ
बूँद भर जल के लिए लिपटा हूँ काँटों की कली से।

मौलिक व अप्रकाशित ।

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Comment by Rahul Dangi Panchal on November 27, 2018 at 9:35pm

इस स्नेह के लिए बहुत बहुत आभार जनाब कबीर साहब 

धन्यवाद भाई धामी जी,  आपने भूल से अनिल लिख दिया शायद मेरा नाम

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 26, 2018 at 7:19pm

आ. भाई अनिल जी, हार्दिक बधाई ।

Comment by Samar kabeer on November 26, 2018 at 12:33am

नेरी दुआ है कि आपकी परेशानी जल्द दूर हो जाये ।

Comment by Rahul Dangi Panchal on November 25, 2018 at 11:11pm

जनाब समर कबीर साहब आपका आभारी हूँ ग़ज़ल पर मार्ग दर्शन हेतु,  

इन दिनों लगभग लेखन से सन्यास ही लिया हुआ था जीवन में कुछ ऐसी ही परिस्थितियों का वर्चस्व है फिलहाल,  बस यूं समझ लिजिए की वक्त इम्तिहान ले रहा है। बस आप बडों का आशीर्वाद ना रहे तो हर इम्तिहान से गुजरने का रास्ता मिलता रहेगा । 

भाई राज़ नवादवी जी बहुत बहुत  धन्यवाद 

Comment by राज़ नवादवी on November 25, 2018 at 8:52pm

जनाब राहुल डांगी  जी, आदाब. इस ख़ूबसूरत पेशकश पे दाद के साथ मुबारकबाद. सादर. 

Comment by Samar kabeer on November 25, 2018 at 5:28pm

जनाब राहुल डांगी जी आदाब,बहुत समय बाद ओबीओ पर आपकी ग़ज़ल से रूबरू हुआ हूँ,कहाँ रहे भाई ।

ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।

इश्क़ के सहरा में 'राहुल' प्यास से बदहाल यूँ हूँ'

इस मिसरे में ऐब-ए-तनाफ़ुर है,इसे यूँ कर सकते हैं :;

'प्यास के सहरा में 'राहुल' इश्क़ से बदहाल यूँ हूँ'

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