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है सच के नींद बड़ी मुश्किलों से आती है

बहर
 1212-1122-1212-22

मेरे खयाल में अब फासलों से आती है।।
तुम्हारी याद भी अब दूसरों से आती है।।

कदम रुके हैं मुहब्बत की राह में जबसे।
है सच के नींद बड़ी मुश्किलों से आती है।।

की जर्रा जर्रा कही टूट कर है बिखरा यूँ।
सदा ये आज मेरी महफिलों से आती है।।

मसल चुका हुँ सभी कुछ मैं जह्न के भीतर।
अभी भी तेरी कसक , हौसलों से आती है।।

गुजर रही है मुहब्बत की तिश्नगी दे कर।
जो सर्द सर्द हवा वादियों से आती है।।

कई जबान में उल्फ़त को जी के गुजरा हूँ ।
महक अभी भी पुराने खतों से आती है।।

तू मुझसे हो के जुदा, आज तक भी मेरा है।
खबर ये तेरी लिखी चिट्ठियों से आती है।।
आमोद बिन्दौरी /मौलिक अप्रकाशित

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Comment

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Comment by amod shrivastav (bindouri) on October 7, 2018 at 12:45pm

aa brajesh sir .. aabhar

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on September 18, 2018 at 8:51am

अच्छी ग़ज़ल कही है आदरणीय अमोद जी...

Comment by amod shrivastav (bindouri) on September 14, 2018 at 4:23pm

आ तेजवीर दादा सादर नमन ..प्रोत्साहन का बहुत बहुत आभार ,

आ समर दादा सादर नमन 

दादा रचना मार्गदर्शन के लिए दिल से आभार 

Comment by Samar kabeer on September 14, 2018 at 2:30pm

जनाब आमोद बिंदौरी जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है ,बधाई स्वीकार करें ।

अवाज़ आज मेरी महफिलों से आती है'

इस मिसरे में 'अवाज़' ग़लत शब्द है,इसकी वजह से मिसरा गड़बड़ हो रहा है,इसे यूँ कर सकते हैं:-

'सदा ये आज मेरी महफिलों से आती है'

मसल चुका हुँ सभी कुछ ज़ेहन के भीतर, पर '

इस मिसरे में 'ज़ेहन' शब्द ग़लत है,सहीह शब्द है "ज़ह्न" इस मिसरे को यूँ कर सकते हैं :-

'मसल चूका हूँ सभी कुछ मैं ज़ह्न के भीतर'

'तू मुझसे हो के जुदा, आज तक भी मेरे हो।
खबर तुम्हारी लिखी चिट्ठियों से आती है'

इस शैर में शुतरगुर्बा दोष है,इसे यूँ कर सकते हैं:-

'तू मुझसे होक जुदा आज भी तो मेरा है

ख़बर ये तेरी लिखी चिट्ठियों से आती है'

Comment by TEJ VEER SINGH on September 14, 2018 at 11:16am

हार्दिक बधाई आदरणीय आमोद श्रीवास्तव जी।बेहतरीन गज़ल।

कदम रुके हैं मुहब्बत की राह में जबसे।
है सच के नींद बड़ी मुश्किलों से आती है।।

कृपया ध्यान दे...

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