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क्षणिका :विगत कल

क्षणिका :विगत कल

दिखते नहीं
पर होते हैं
अंतस भावों की
अभियक्ति के
क्षरण होते पल
कुछ अनबोले
घावों के
तम में उदित होते
द्रवित
विगत कल


सुशील सरना

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 467

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Comment by Sheikh Shahzad Usmani on July 18, 2018 at 11:37pm

लघुता में तीक्ष्णता। बहुत ही विचारोत्तेजक क्षणिका सृजन के लिए हार्दिक बधाई और मार्गदर्शन हेतु हार्दिक आभार मुहतरम जनाब सुशील सरना  साहिब।

Comment by narendrasinh chauhan on July 18, 2018 at 5:04pm

बहुत खूब 

Comment by Samar kabeer on July 18, 2018 at 12:14pm

जनाब सुशील सरना जी आदाब,बहुत उम्दा क्षणिका हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by TEJ VEER SINGH on July 18, 2018 at 11:34am

हार्दिक बधाई आदरणीय सुशील सरना जी।बेहतरीन क्षणिका।

Comment by बसंत कुमार शर्मा on July 18, 2018 at 10:30am

बहुत खूब 

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