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हार ....

ज़ख्म की
हर टीस पर
उनके अक्स
उभर आते हैं
लम्हे
कुछ ज़हन में
अंगार बन जाते हैं
उन्स में बीती रातें
भला कौन भूल पाता है
ख़ुशनसीब होते हैं वो
जो
बाज़ी जीत के भी
हार जाते हैं

उन्स=मोहब्बत

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by बसंत कुमार शर्मा on July 14, 2018 at 8:48pm

बहुत खूब 

Comment by Neelam Upadhyaya on July 14, 2018 at 3:36pm

अच्छी रचना की प्रस्तुति के लये बधाई स्वीकार करें आदरणीय सुशील सरना जी।

Comment by TEJ VEER SINGH on July 14, 2018 at 12:18pm

हार्दिक बधाई आदरणीय सुशील सरना जी। बेहतरीन प्रस्तुति।

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