जीवन की सूनी राहों में,
मधु बरसाने जैसा हो.
अबकी बार तुम्हारा आना
सचमुच आने जैसा हो.
धूप कुनकुनी खिले माघ में,
भीगा-भीगा हो सावन.
बादल गरजें जिसकी छत पर,
बारिश हो उसके आँगन.
हो सबकी हर भोर सुनहरी,
संध्या मधुर सुहानी.
देखें मीठे सपने, जिनमें,
सब कुछ पाने जैसा हो.
सत्ता के हर गलियारे में,
रहे झूँठ पर पाबन्दी.
सच का हो विस्तार निरंतर,
चाल न हो पाये मंदी.
सिंहासन तक जो भी जाये,
दिल की गलियों से गुजरे
भले एक हो उसका वादा,
मगर निभाने जैसा हो
नेह-नीर से मन की बगिया,
रहे हमेशा हरी-भरी.
दूर तलक भी नजर न आये,
नफरत भागे डरी-डरी.
खुशियों से झोली भरने को,
हर मानव का कर्म यहाँ.
अन्धकार से भरी गली में,
सूर्य उगाने जैसा हो.
"मौलिक और अप्रकाशित"
Comment
आदरणीया KALPANA BHATT ('रौनक़') जी दिल से शुक्रिया आपका
आदरणीय बसंत जी नमस्कार!
हिन्दी के सुन्दर शब्दों से रची बहुत ही अनुपम रचना...
हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।।
शानदार गीत के लिए बधाई.........
सुंदर गीत लिखा है आपने आदर्निया बसंत कुमार जी, बधाई स्वीकारें|
आदरणीय समर कबीर जी दिल से शुक्रिया आपका
जनाब बसंत कुमार शर्मा जी आदाब,बहुत सुंदर गीत लिखा आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
आभार आदरणीया नीलम उपाध्याय जी आपका
आभार आदरणीय Ajay Kumar Sharma जी आपका
आदरणीय बसंत कुमार जी, नमस्कार । बहुत ही बढ़िया रचना । प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई ।
वाह बहुत सुन्दर रचना.
बधाई स्वीकार करें....
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