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नारी का मन
न जाने कोई
जाने गर तो
न पहचाने कोई
एक पहेली बनती नारी
हास परिहास की शिकार है नारी
नव रसों में डूबी हुई
अनोखी पर सशक्त है नारी
कौन जाने कब हुआ जन्म
श्रुष्टि रचयिता में सहभागी है नारी
हर रिश्ते में बाँधा है इसको
माँ, बहन, चाची औ मासी
पूर्ण होता संसार है इससे
अर्धनारीश्वर का रूप धरा शिव ने
नारी का सम्मान बढ़ाया
युग बदला
बदली है नारी
परम्परा से आधुनिकता की राह पर
आज देखो चल पड़ी है नारी
कदम कदम पर अपमानित होती
कभी घर कभी भरी सभा में
नारी के मान को न जाने
नारी सम्मान को न पहचाने
नारी अबला नारी सबला
चाहे तो ये बजादे तबला
लास्य की जरुरत है नारी
खजुराओ की मूर्त है नारी
पहेली नही सहेली है नारी
हर युग में थी हर युग में रहेगी नारी।

मौलिक एवं अप्रकाशित्त

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Comment by विनय कुमार on August 8, 2018 at 7:50pm
अच्छी कविता हुई है, हार्दिक बधाई आदरणीया कल्पना भट्ट जी
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 8, 2018 at 2:34pm

धन्यवाद आदरणीय विजय निकोरे सर|

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 8, 2018 at 2:33pm

नमस्ते आदरणीय समर भाई , सादर धन्यवाद आपका| 

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 8, 2018 at 2:33pm

हार्दिक आभार आदरणीय मोहम्मद आरिफ साहब| 

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 8, 2018 at 2:32pm

हार्दिक आभार आदरणीया बबिता जी|

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on May 9, 2018 at 9:13pm

मुहतरमा कल्पना साहिबा, नारी की गरिमा पर सुंदर कविता हुई है ,मुबारक बाद क़ुबूल फरमायें।

Comment by vijay nikore on May 9, 2018 at 8:48pm

नारी मन पर कविता अच्छी लिखी है। हार्दिक बधाई।

Comment by Samar kabeer on May 9, 2018 at 2:55pm

बहना कल्पना भट्ट जी आदाब,बहुत उम्दा कविता हुई,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 9, 2018 at 12:04pm

आ. कल्पना बहन अच्छी कविता हुई है । हार्दिक बधाई ।

Comment by Mohammed Arif on May 9, 2018 at 8:01am

आदरणीया कल्पना भट्ट जी आदाब,

                                     नारी की गरिमा-गौरव को रेखांकित करती एक साधारण-सी कविता के लिए हार्दीक बधाई । कुछ वर्तनीगत अशुद्धियाँ हैं ।

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