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रब से ....

वो लम्हा
कितना हसीं था
जब तुमने
हाथ उठा कर
मुझे
रब से माँगा था

मेरा
हर ख़्वाब
महक गया था
जब मैंने
अपनी आरज़ू को
तुम्हारी दुआओं में
महफ़ूज़ देखा था

मेरी बयाज़ें
जिनमें
हर लफ़्ज़
मेरी
तन्हाईयों से
सरगोशियों की दास्तान था
उन्हीं सरगोशियों की आग़ोश में
बेसुध सोया
मेरी उल्फ़त का
इक
अनदेखा अरमान था

सच
उस लम्हा
तुम मुझे
मेरी तारीकियों में
शुआअ से लगे
जब तुमने
हाथ उठा कर
मुझे
रब से माँगा था

बयाज़ें =डायरी या कविता की कॉपी जो हस्तलिखित हो , शुआअ=किरण

सुशील सरना

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Sushil Sarna on March 26, 2018 at 4:45pm

आदरणीय विजय निकोर साहिब, सादर प्रणाम। ... आपकी स्नेहाशीष का ये बंदा दिल से आभार है। नेट प्रॉब्लम से आभार व्यक्त करने में हुए विलम्ब के लिए क्षमा चाहूंगा।

Comment by Sushil Sarna on March 26, 2018 at 4:45pm

आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह जी सृजन के भावों को आत्मीय मान देने का दिल से आभार। नेट प्रॉब्लम से आभार व्यक्त करने में हुए विलम्ब के लिए क्षमा चाहूंगा।

Comment by Sushil Sarna on March 26, 2018 at 4:44pm

आदरणीय समर कबीर साहिब, आदाब आपकी प्रेरक प्रतिक्रिया मुझे सदा नए सृजन के लिए प्रोत्साहित करती है। आपका तहे दिल से शुक्रिया। नेट प्रॉब्लम से आभार व्यक्त करने में हुए विलम्ब के लिए क्षमा चाहूंगा।

Comment by Sushil Sarna on March 26, 2018 at 4:44pm

आदरणीय तस्दीक अहमद ख़ान साहिब आदाब , सृजन को आत्मीय मान से सुशोभित करने का दिल से आभार। नेट प्रॉब्लम से आभार व्यक्त करने में हुए विलम्ब के लिए क्षमा चाहूंगा।

Comment by नाथ सोनांचली on March 22, 2018 at 3:32pm

आद0 सुशील सरना जी सादर अभिवादन। पुनः आपकी कलम से एक बढिया अतुकांत मिली पढ़ने को। बधाई इस अतुकांत रचना पर सादर

Comment by Samar kabeer on March 21, 2018 at 11:01pm

जनाब सुशील सरना जी आदाब,बहुत रवां दवां कविता हुई है,बहुत सुंदर इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on March 21, 2018 at 9:02pm

जनाब सुशील सरना साहिब ,बहुत ही जज़्बाती और आकर्षित करने वाली कविता हुई है ,मुबारक बाद क़ुबूल फरमाएं।

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