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दे सोच कर सज़ाएं गुनहगार हम नहीं - सलीम रज़ा रीवा

221   2121   1221   212 
दे सोच कर सज़ाएं गुनहगार हम नहीं
ये तू भी जानता है ख़तावार हम नहीं
-
जिस पर किया भरोसा वही दे गया  दगा
लेकिन किसी भी शख़्स से बे-ज़ार हम नहीं
-
दिल तो दिया था जान भी तुझपे निसार की
फिर क्यूँ  तेरी नज़र में तेरा प्यार हम नहीं    
-
जिनकी खुशी के वास्ते सब कुछ लुटा दिया
उफ़ वो ही कह रहे हैं वफादार हम नहीं
-
हैरत है दिल के पास थे जिनके सदा 'रज़ा'
अब तो उन्ही के प्यार के हक़दार हम नहीं
____________________
मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by vijay nikore on March 12, 2018 at 2:03pm

//जिनकी खुशी के वास्ते सब कुछ लुटा दिया
उफ़ वो ही कह रहे हैं वफादार हम नहीं।//

इसे पढ़ कर दिल झूम उठा। वाह। बधाई।

Comment by SALIM RAZA REWA on March 9, 2018 at 10:43am
बहुत बहुत शुक्रिया जनाब,
Comment by Samar kabeer on March 9, 2018 at 10:42am

बढ़िया ।

Comment by SALIM RAZA REWA on March 9, 2018 at 8:39am
आली जनाब समर साहब,
आपकी ग़ज़ल पर शिर्कत और आपकी महब्बत के लिए शुक्रिया,
मिसरा यूँ कर दिया जाएगा...देखिएगा
" फिर क्यों तेरे दिवानों में दिलदार हम नहीं "
Comment by Samar kabeer on March 8, 2018 at 11:59pm

जनाब सलीम रज़ा साहिब आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

तीसरे शैर का सानी मिसरे में सिर्फ़ एक शब्द आपका है, उसूलन जब किसी मिसरे या शैर में तवारुद हो जाता है तो बाद में कहने वाला शाइर अख़लाक़न अपना मिसरा हटा लेता है, आप भी दूसरा मिसरा कह लें,जो आपके लिए बहुत आसान है ।

Comment by SALIM RAZA REWA on March 8, 2018 at 9:49pm
आदरणीय नीलेश जी,
बहुत दिनो बाद आपको पाकर बेहद खुशी हो रही है,
ग़ज़ल पर आपकी शिरक़त और हौसला अफज़ाई के लिए दिली शुक्रिया,
आपने नक्श लायलपुरी के मिसरे के बारे में ज़िक़र किया,
मेरी खुशक़िस्मती है कि मैं उनके मिसरे के क़रीब पहुंच पाया....
अपनी महब्बत बनाए रखे..
Comment by SALIM RAZA REWA on March 8, 2018 at 9:46pm
जनाब बड़े भाई आरिफ साहब,
आपकी महब्बत के बिना मेरा लिखना मुकम्मल नहीं होता यूँ ही अपनी दुआएँ बनाए रहें,
आपका तहे दिल से शुक्रिया
Comment by SALIM RAZA REWA on March 8, 2018 at 9:43pm
आली जनाब तस्दीक अहमद साहिब,
ग़ज़ल पर आपकी शिरक़त और हौसला अफज़ाई के लिए दिली शुक्रिया...
यूँ ही अपनी महब्बत, और नज़रे करम मुसलसल क़ाइम रखें.
Comment by SALIM RAZA REWA on March 8, 2018 at 9:42pm
आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' साहिब,
ग़ज़ल पर आपकी शिरक़त और हौसला अफज़ाई के लिए दिली शुक्रिया..
Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 8, 2018 at 9:14pm

अच्छी ग़ज़ल के लिये बधाई..
एक   मिसरा नक्श लायलपुरी के मिसरे के बहुत करीब है... 
माना तेरी नजर में तेरा प्यार हम नहीं...
सादर 

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