For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

221 2121 1221 212

एक ग़ज़ल पूरी हुई 14 शेर के साथ ।

मुझको भी उसके पास बुलाया न जाएगा ।
मुमकिन है दौरे इश्क़ बढाया न जाएगा ।।

चेहरे से वो नकाब भी हटती नही है अब।
किसने कहा गुलाब छुपाया न जाएगा ।।

दिल मे ठहर गया है मेरे इस तरह से वो।

उसका वजूद दिल से मिटाया न जाएगा ।।

यूँ ही तमाम उम्र निभाता रहा हूँ मैं ।
अब साथ जिंदगी का निभाया न जाएगा ।।

बन ठन के मेरे दर पे वो आने लगे हैं खूब ।
मुझसे मेरा उसूल बचाया न जाएगा ।।

यूँ चाहता रहा हूँ उसे बेपनाह मैं।
फिर भी यकीन उसको दिलाया न जाएगा ।।

अब थक चुका हूँ मौत मिरे आस पास है ।
मुझसे मेरा नसीब मिटाया न जाएगा ।।

हाला कि खत में बात न करने की बात थी ।
ज़ज़्बात पर वो जुल्म भी ढाया न जाएगा ।।

रोयेगी तेरी रूह मुहब्बत में एक दिन ।
तुझसे मेरा कफ़न भी हटाया न जाएगा ।।

ऐलान कर रहे जो मिरे जश्ने मौत का ।
सबको खबर है जश्न मनाया न जाएगा ।।

पूछो न हम से हाल जुदाई के बाद का ।
कोई भी दिलका जख्म दिखाया न जाएगा।।

कैसे भुला दूँ तुझको बता तू ही हमनशीं ।
मुझ से तो तेरा ख़त भी जलाया न जाएगा ।।

मैं हुस्न का हूँ एक जमाने से मुन्तजिर ।
शायद मुझे वो चाँद दिखाया न जाएगा ।।

- नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक

नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित

Views: 470

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Naveen Mani Tripathi on December 27, 2017 at 1:14pm

आ0 कबीर सर सादर आभार के साथ नमन । आपकी इस्लाह सर मत्थे पर । अभी ठीक करता हूँ ।

Comment by Samar kabeer on December 26, 2017 at 9:30pm

मतला और हुस्न-ए-मतला में ताल मेल नहीं है,अगर आप संतुष्ट हैं तो कोई बात नहीं ।

'कैसे भुला दूँ तुमको बता तू ही हमनशीं'

'तुमको' के साथ 'बता' और 'तू', ये शुतरगुर्बा नहीं तो फिर क्या है भाई?

इस मिसरे में 'तुमको' की जगह "तुझको" कर लेंगे तो ऐब निकल जाएगा ।

Comment by Naveen Mani Tripathi on December 26, 2017 at 6:50pm

आ कबीर सर सादर नमन । मुझको भी उसके पास बुलाया न जाएगा इसी वजह से इश्क़ के दौर पर पाबंदी लगेगी   । यही कहना चाहता हूँ । दूसरी पंक्ति पहली वाली पंक्ति की बात को सम्बद्ध कर रही है । 

ऐसा कोई गुनाह नहीं होने पायेगा जिससे इस चमन से आपका साया चला जाये। 

 यहां भी पहली पंक्ति से दूसरी पंक्ति सम्बद्ध नजर आती है । थोड़ा सा रब्त के सम्बंध में और स्पष्ट करने की क्रिपा करें। 

  1.     सुतुर गुरबा वाला शेर भी सर जी थोड़ा सा स्पष्ट कर दीजिए ।
Comment by नाथ सोनांचली on December 26, 2017 at 8:47am

आद0 नवीन जी सादर अभिवादन। बेहतरीन ग़ज़ल का प्रयास। हार्दिक बधाई स्वीकारें। आली जनाब समर साहब के बातों का संज्ञान लीजियेगा। सादर

Comment by Samar kabeer on December 24, 2017 at 9:30pm

जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

मतला और हुस्न-ए- के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है ।

पहले शैर के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है ।

'कैसे भुलादूँ तुमको बता तू ही हमनशीं'

इस मिसरे में शुतरगुर्बा दोष है ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service