For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तरही ग़ज़ल - "ये वो क़िस्मत का लिखा है जो मिटा भी न सकूँ ‘ ( गिरिराज भंडारी )

2122/1122   1122  1122   22 /112

जीभ ख़ुद की है तो दांतों से दबा भी न सकूँ

कैसे खामोश रहे इस को सिखा भी न सकूँ 

 

उनका वादा है कि ख़्वाबों में मिलेंगे मुझसे

मुंतज़िर चश्म को अफसोस सुला भी न सकूँ

 

तश्नगी देख मेरी आज समन्दर ने कहा

कितना बदबख़्त हूँ मैं प्यास बुझा भी न सकूँ


मेरे रस्ते में जो रखना तो यूँ पत्थर रखना

कोशिशें लाख करूँ यार हिला भी न सकूँ 

 

यहाँ तो सिर्फ अँधेरों के तरफदार बचे

छिपा रक्खा है, चराग़ों को , जला भी न सकूँ

 

आपके झूठ रहे पर्दे में ये हसरत थी  

पर हूँ मज़बूर कि आईना छिपा भी न सकूँ

 

ज़ह’न ए नाबीना लिये आये हैं महफिल में उन्हें

सख्त मुश्किल है कि आईना  दिखा भी न सकूँ'

 

ख़ुदी पर जिसका यक़ीं हो नहीं वो कहता है

"ये वो क़िस्मत का लिखा है जो मिटा भी न सकूँ ‘’

 **********************************************

 मौलिक एवँ  अप्रकाशित

 

Views: 1137

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 28, 2017 at 10:27am

आदरणीय समर भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार । मतले के विषय मे सोचता हूँ क्या किया जाये , आभार आपका ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 28, 2017 at 10:26am

आदरनीय मो. आरिफ भाई , हौसला अफज़ाई का शुक्रिया ।

Comment by SALIM RAZA REWA on September 28, 2017 at 8:48am
आदरणीय गिरिराज जी,
ख़ूबसूरत ग़ज़ल के लिए बधाई,
Comment by Niraj Kumar on September 27, 2017 at 9:04pm

आदरणीय गिरिराज जी,

उम्दा ग़ज़ल हुई है. दाद के साथ मुबारकबाद.

'और चुप रहने किसी तौर मना भी न सकूँ' इसमें एक 'को' कम है. अगर ठीक हो सके तो शेर बेहतर होगा.

'आपका झूठ रहे पर्दा में..' या 'पर्दे में'

ज़ह’न ए नाबीना लिये आये हैं महफिल में उन्हें

आइना साज हूँ , आईना दिखा भी न सकूँ

बेहतरीन शेर है. इसके सानी के लिए एक नाशायराना सूझ ये है : 'सख्त मुश्किल है कि आईना  दिखा भी न सकूँ'

इससे वाक्य विन्यास सहज हो सकता है. वैसे भी आइना साज का काम बनाने का होता है दिखाने का नहीं.

गिरह जबरदस्त है.

सादर 

Comment by रामबली गुप्ता on September 27, 2017 at 8:33pm
बहुत खूब आदरणीय गिरिराज भाई जी सुंदर गजल के लिए बधाई स्वीकारें।सादर
Comment by Mahendra Kumar on September 27, 2017 at 8:10pm

आ. गिरिराज सर, तरही मिसरे पर अच्छी ग़ज़ल हुई है. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.

Comment by नाथ सोनांचली on September 27, 2017 at 4:42pm
वाह वाह बहुत ही बढ़िया ग़ज़ल।
शेर दर शेर दाद के साथ मुबारकबाद आदरणीय गिरिराज भंडारी भाई जी
Comment by Nilesh Shevgaonkar on September 27, 2017 at 4:40pm

आदरणीय गिरिराज जी,
 ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा हुआ है शेर दर शेर बधाई कुबूल करें

Comment by Ravi Shukla on September 27, 2017 at 12:53pm
आदरणीय गिरिराज भाई जी तरही ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा हुआ है शेर दर शेर दाद कुबूल करें आपकी तरह मैं भी मुशायरे में हाजिर नहीं हो पाया जल्दी ही अपनी ग़ज़ल भी मंच पर रखूंगा एक बार फिर से बधाई
Comment by Samar kabeer on September 27, 2017 at 12:26pm
जनाब गिरिराज भंडारी जी आदाब,तरही ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
मतले के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है,सानी मिसरे में कथ्य स्पष्ट नहीं हो रहा है,देखियेगा ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक स्वागत आपका और आपकी इस प्रेरक रचना का आदरणीय सुशील सरना जी। बहुत दिनों बाद आप गोष्ठी में…"
3 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"शुक्रिया आदरणीय तेजवीर सिंह जी। रचना पर कोई टिप्पणी नहीं की। मार्गदर्शन प्रदान कीजिएगा न।"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
4 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"सीख ...... "पापा ! फिर क्या हुआ" ।  सुशील ने रात को सोने से पहले पापा  की…"
5 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आभार आदरणीय तेजवीर जी।"
5 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आपका हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी।बेहतर शीर्षक के बारे में मैं भी सोचता हूं। हां,पुर्जा लिखते हैं।"
5 hours ago
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह जी।"
6 hours ago
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक आभार आदरणीय शेख़ शहज़ाद साहब जी।"
6 hours ago
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक बधाई आदरणीय शेख़ शहज़ाद साहब जी।"
6 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आदाब। चेताती हुई बढ़िया रचना। हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब। लगता है कि इस बार तात्कालिक…"
7 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
" लापरवाही ' आपने कैसी रिपोर्ट निकाली है?डॉक्टर बहुत नाराज हैं।'  ' क्या…"
11 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आदाब। उम्दा विषय, कथानक व कथ्य पर उम्दा रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय तेजवीर सिंह साहिब। बस आरंभ…"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service