For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - वक़्त कुछ ऐसा मेरे साथ गुज़ारा उसने

बह्र : 2122-1122-1122-112/22

फिर मुहब्बत से लिया नाम तुम्हारा उसने
वार मुझ पर है किया कितना करारा उसने

मेरी कश्ती को समन्दर में उतारा उसने
और फिर कर दिया तूफ़ाँ को इशारा उसने

डूबते वक़्त दी आवाज़ बहुत मैंने मगर
बैठ कर दूर से देखा था नज़ारा उसने

आप कहते थे इसे बख़्श दो, देखो ख़ुद ही
मुझ में ख़ंजर ये उतारा है दुबारा उसने

ग़ैर भी कोई गुज़ारे न किसी ग़ैर के साथ 

वक़्त कुछ ऐसा मेरे साथ गुज़ारा उसने

मेरी तस्वीर पे तस्वीर बना कर ख़ुद की
अक्स अपना मेरे अन्दर से उभारा उसने

दाँव पर ख़ुद को लगा बैठा मुहब्बत में वो
अब तलक जो भी था जीता हुआ हारा उसने

आप के कहने पे बख़्शा था उसे, लो देखो
मुझ में ख़ंजर ये उतारा है दुबारा उसने

जला कर राख़ मैं कर दूँगा क़सम से ख़ुद को 

मेरे अन्दर से जो अब मुझको पुकारा उसने

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 1041

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Mahendra Kumar on September 26, 2017 at 8:28pm

सादर आदाब आ. समर सर. ग़ज़ल में शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई के लिए आपका बहुत-बहुत आभार. आपसे निवेदन है कि आ. निलेश सर की टिप्पणी मेरे प्रयुत्तर को एक बार आप भी देख लीजिएगा. एक और आग्रह है कि चौथे शेर में मैं कुछ ऐसा कहना चाहता था कि "तुमने मुझे समझाया था न कि उसको उसकी भूल (अपराध) के लिए लिए माफ़ कर दो, देख लिया नतीजा. आज उसने मुझ पर दोबारा वार किया है." किन्तु मुआफ़ शब्द की वजह से कह नहीं पाया जिसका प्रयोग या तो इस बह्र के अन्त में हो सकता था या अलिफ़-वस्ल के द्वारा. यदि इस शेर का उला मिसरा किसी तरह इस बात को कह पाए तो मुझे बेहद ख़ुशी होगी. आपके सुझाव की प्रतीक्षा रहेगी. यह निवेदन आ. निलेश सर से भी है. बहुत-बहुत धन्यवाद. सादर आभार.

Comment by Mahendra Kumar on September 26, 2017 at 8:18pm

आ. निलेश सर, ग़ज़ल की इतनी अच्छी इस्लाह के लिए आपका हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ. 

1. इस मिसरे में तो आपने जान ही डाल दी : दाँव पर ख़ुद को लगा बैठा मुहब्बत में वो

2. इस त्रुटि की ओर ध्यान दिलाने के लिए आपका बहुत-बहुत आभार : मुझ में

3. क्या अब मिसरा ठीक है : फूँक डालूँगा किसी रोज़ कहीं पर ख़ुद को

4. कृपया इस मिसरे : वार मुझ पर है किया कितना करारा उसने; और इस शेर : डूबते वक़्त दी आवाज़ बहुत मैंने मगर, बैठ कर दूर से देखा था नज़ारा उसने; पर थोड़ी और रौशनी डालने का कष्ट करें जिससे मैं यह आश्वस्त हो सकूँ मैं जो समझ रहा हूँ वह सही समझ रहा हूँ या नहीं ताकि भविष्य में इन त्रुटियों से बचा जा सके. यह निवेदन आपके साथ-साथ आ. समर सर से भी है. 

कृपया ऐसे ही स्नेह बनाए रखें. आपका बहुत-बहुत धन्यवाद. सादर आभार.

Comment by Mahendra Kumar on September 26, 2017 at 8:16pm

आ. अफरोज़ जी, ऐसा पहली बार हुआ है जब मैं बह्र लिखना भूल गया. इसकी बह्र ओबीओ लाइव तरही मुशायरे के 87वें अंक वाली (रमल मुसम्मन् मख्बून मक्तुअ / 2122-1122-1122-112/22) ही है. ग़ज़ल में संशोधन के वक़्त मैं इस ग़ज़ल के साथ लिख दूँगा. त्रुटि की ओर ध्यान दिलाने और ग़ज़ल में उपस्थित हो कर उसका मान बढ़ाने के लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया. सादर.

Comment by नाथ सोनांचली on September 26, 2017 at 8:16pm
आद0 महेंद्र जी सादर अभिवादन, बहुत उम्दा ग़ज़ल पर मेरी बधाई स्वीकार करें। सादर
Comment by Mahendra Kumar on September 26, 2017 at 8:12pm

हौसला अफ़ज़ाई का बहुत-बहुत शुक्रिया आ. मोहम्मद आरिफ़. जी. हार्दिक आभार. सादर.

Comment by Niraj Kumar on September 26, 2017 at 7:12pm

आदरणीय महेंद्र जी,

उम्दा ग़ज़ल हुई है. दाद के साथ मुबारकबाद.

संकलन में आप की तरही ग़ज़ल देखी और सच पूछिए तो वो इस ग़ज़ल से भी अच्छी लगी. 

सादर 

Comment by Samar kabeer on September 26, 2017 at 5:45pm
जनाब महेन्द्र कुमार जी आदाब,ओबीओ के पुराने तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।
जनाब निलेश जी की इस्लाह से सहमत हूँ ।
Comment by Nilesh Shevgaonkar on September 26, 2017 at 11:25am

आ. महेंद्र जी,
बहुत  अच्छी ग़ज़ल हुई है ..कुछ बारीक़ बातें आपके संज्ञान में लाना चाहता हूँ 
मुझ पर किया है कितना करारा उसने.........
वार मुझ पर है किया कितना करारा उसने
डूबते वक़्त बहुत मैंने दी आवाज़ मगर ........डूबते वक़्त दी आवाज़ बहुत मैंने मगर 
बैठ कर दूर से ही देखा नज़ारा उसने........ ..बैठ कर दूर से देखा था नज़ारा उसने
मुझपे ख़ंजर .... मुझ में 
.
ग़ैर भी कोई गुज़ारे न किसी ग़ैर के साथ 
वक़्त कुछ ऐसा मेरे साथ गुज़ारा उसने.. हासिल ए ग़ज़ल शेर 
दाँव पर ख़ुद को लगाया जो मुहब्बत में तो....... दाँव पर ख़ुद को लगा बैठा मुहब्बत में वो 
फूँक डालूँगा किसी रोज़ जला कर ख़ुद को ..
दोनों एक ही बात है ..मिसरा फिर कहने का प्रयास कीजिये 
सादर 

Comment by Afroz 'sahr' on September 26, 2017 at 11:06am
आदरणीय महेंद्र कुमार जी अच्छी रचना पर बधाई आपको ।आपने मंच के नियमानुसार अर्कान नहीं लिखे हैं । बाकी गुणीजनों की राय आ ही जाएगी।सादर,,,
Comment by Mohammed Arif on September 26, 2017 at 10:44am
आदरणीय महेंद्र कुमार जी आदाब, बहुत ही मारक क्षमता वाली ग़ज़ल का तोहफ़ा दिया आपने । हर शे'र माक़ूल । शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल कीजिए । बाक़ी गुणीजनों के आने का इंतज़ार करेंं ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"दोहा सप्तक. . . . . मित्र जग में सच्चे मित्र की, नहीं रही पहचान ।कदम -कदम विश्वास का ,होता है…"
3 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर,…"
9 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"गीत••••• आया मौसम दोस्ती का ! वसंत ने आह्वान किया तो प्रकृति ने श्रृंगार…"
16 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आया मौसम दोस्ती का होती है ज्यों दिवाली पर  श्री राम जी के आने की खुशी में  घरों की…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"स्वागतम"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . धर्म
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपकी दोहावली अपने थीम के अनुरूप ही प्रस्तुत हुई है.  हार्दिक बधाई "
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . जीत - हार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपकी दोहावली के लिए हार्दिक धन्यवाद.   यह अवश्य है कि…"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपकी प्रस्तुति आज की एक अत्यंत विषम परिस्थिति को समक्ष ला रही है. प्रयास…"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . पतंग
"आवारा मदमस्त सी, नभ में उड़े पतंग ।बीच पतंगों के लगे, अद्भुत दम्भी जंग ।।  आदरणीय सुशील…"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on नाथ सोनांचली's blog post कविता (गीत) : नाथ सोनांचली
"दुःख और कातरता से विह्वल मनस की विवश दशा नम-शब्दों की रचना के होने कारण होती है. इसे सुन्दरता से…"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post मकर संक्रांति
"बढिया भावाभिव्यक्ति, आदरणीय. इस भाव को छांदसिक करें तो प्रस्तुति कहीं अधिक ग्राह्य हो जाएगी.…"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक- झूठ
"झूठ के विभिन्न आयामों को कथ्य में ढाल कर आपने एक सुंदर दोहावली प्रस्तुत की है, आदरणीय लक्ष्मण धामी…"
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service