तेरे इंतज़ार में ...
गज़ब करता रहा
तेर हर वादे पे
यकीं करता रहा
हर लम्हा
तेरी मोहब्बत में
कई कई सदियाँ
जीता रहा
और हर बार
सौ सौ बार
मरता रहा
पर अफ़सोस
तू
मुझे न जी सकी
मैं
तुझे न जी सका
पी लिया
सब कुछ मगर
इक अश्क न पी सका
मेरी ख़ामोशी को तूने
मेरी नींद का
बहाना समझा
तू
ग़फ़लत में रही
और
मैं
अजल का हो गया
तिश्नागर आँखों के
अश्क सूख गए
इंतज़ार की
आदत से मज़बूर पलक
खुली रह गयी
वक्ते रुखसत तूने
इक बार भी न देखा
नज़र भर के मुझे
गो
मैं मर कर भी
तेरे इंतज़ार में
जीता ही रहा
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय समर कबीर साहिब, आदाब सृजन आपकी मधुर प्रशंसा का आभारी है। इंगित नुक्ते की त्रुटि को मैं अभी संशोधित कर पुनः प्रेषित कर रहा हूँ। इस स्नेह का दिल से आभार।
आदरणीया कल्पना भट्ट जी सृजन को अपनी स्नेहिल प्रतिक्रिया से प्रशंसित करने का दिल से आभार।
आदरणीय महेंद्र कुमार जी सृजन के भावों पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का दिल से आभार।
आदरणीय मो.आरिफ साहिब, आदाब , सृजन के भावों को सहमति देती आपकी प्रशंसात्मक प्रतिक्रिया से सृजन जीवंत हुआ। आपके स्नेह का शुक्रिया।
आदरणीय सुशिल सरना जी बेहद सुंदर और भावपूर्ण कविता लिखी है आपने | हार्दिक बधाई |
बेहद भावपूर्ण कविता लिखी है आपने आ. सुशील सरना जी. अच्छी लगी. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.
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