For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - क्या कज़ा को हयात कहता है ? ( गिरिराज भंडारी )

2122  1212  22 /112

क़ैद को क्यों नजात कहता है

क्या कज़ा को हयात कहता है ?

 

तीन को अब जो सात कहता है

बस वही ठीक बात कहता है

 

क्यूँ न तस्लीम  उसको कर लूँ मैं

वो मिरे दिल की बात कहता है

 

कैसे कह दूँ कि वास्ता ही नहीं

रोज़ वो शुभ प्रभात कहता है

 

ऐतराज उसको है शहर पे बहुत

हाथ अक्सर जो हात कहता है

 

उसकी बीनाई भी है शक से परे   

जो सदा दिन को रात कहता है

 

जीत जब भी मिली, वो क़ाबिल था

मात को फर्जी मात कहता है

 

ज़ेह’न बदला नहीं मिरा अब तक

दर्द, अब भी निशात कहता है 

*****************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

Views: 945

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Mahendra Kumar on May 15, 2017 at 12:41pm

आदरणीय गिरिराज सर, आपकी ग़ज़ल में एक अलग ही रंग होता है. इस खूबसूरत ग़ज़ल के सभी शेर बढ़िया लगे. हार्दिक बधाई प्रेषित है. सादर.

Comment by narendrasinh chauhan on May 10, 2017 at 6:18pm

लाजवाब रचना 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 9, 2017 at 10:49pm
आदरणीय गिरिराज भाई साब इस उत्कृष्ट ग़ज़ल पर धरा सारी शुभकामनाएं सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 9, 2017 at 9:14pm

आदरनीय बृजेश भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 9, 2017 at 9:14pm

आ, बसंत भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका हृदय से आभार ।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on May 9, 2017 at 5:48pm
वाह क्या कहने आदरणीय बहुत ही शानदार शे'र दर शे'र मुबारकबाद..
Comment by बसंत कुमार शर्मा on May 9, 2017 at 10:16am

जीत जब भी मिली, वो काबिल था,

मात को फर्जी मात कहता है, वाह बहुत शानदार 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 9, 2017 at 9:36am

आदरनीय नीलेश भाई , गज़ल पर उपस्थिति और सराहना के लिये आभार । ...आ. मै .. मेरे ही लिखता था ... किन्ही सज्जन की देखा सीखी मै भी शुरू कर दिया ... अब बन्द ...।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 9, 2017 at 9:34am

आदरणीय सुरेन्द्र नाथ भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका हृदय से आभारी हूँ ।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 9, 2017 at 9:33am

आ. गिरिराज जी,

अच्छी ग़ज़ल के लिये    बधाई ...
मेरे को मिरे न लिखा करें ...ये किसी भी भाषा का शब्द नहीं है ..... शब्द गिरा के पढ़ा जाना एक बातइ लेकिन लिखते समय गिराना मुझे ठीक नहीं लगता ..
सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service