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तरही गजल : फूल जंगल में खिले किन के लिये

2122 2122 212

कार्ड काफी था न लॉगिन के लिए
वो हमे भी ले गए पिन के लिए

चाँद पर जाकर शहद वो खा रहे
आप अब भी रो रहे जिन के लिए

शेर को आता है बस करना शिकार
फूल जंगल में खिले किन के लिए

गुठलियों के दाम भी वो ले गया
उसने शीरीं आम जब गिन के लिये

आ गई अब ब्रेड में बीमारियाँ
जी रहे थे क्या इसी दिन के लिए

आये थे जापान से कल लौट कर
फिर उड़े वो रूस बर्लिन के लिए

पास पप्पू एक दिन हो जाएगा
है दुआ इस गैर मुमकिन के लिए

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by शिज्जु "शकूर" on May 9, 2017 at 4:30pm

आ. रवि भैया बेहतरीन ग़ज़ल हुई है, इस्लाह के बाद रंग निखर गया है

Comment by Sushil Sarna on May 9, 2017 at 4:19pm

कार्ड काफी था न लॉगिन के लिए
वो हमे भी ले गए पिन के लिए

चाँद पर जाकर शहद वो खा रहे
आप अब भी रो रहे जिन के लिए

वाह आदरणीय वाह ... आधुनिकता के परिवेश में अद्भुत अशआर की इस दिलकश ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई। हर शेर कल्पना की पराकाष्ठा से सुसज्जित है। हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय रवि शुक्ला जी।

Comment by Ravi Shukla on May 9, 2017 at 3:15pm

आदरणीय समर साहब और गिरिराज भाई जी पटल पर भी सुधार कर दिया है विलंब के लिये क्षमा चाहते है आदरणीय नीलेश जी, नीरज जी और बसंत जी गजल आपको पंसद आई बहुत बहुत धन्‍यवाद आपको हौसला आफजाई के लिये । सादर

Comment by बसंत कुमार शर्मा on May 7, 2017 at 6:53pm

वाह क्या कहने 

Comment by Neeraj Neer on May 6, 2017 at 7:59am

चाँद पर जाकर शहद वो खा रहीं
आप अब भी रो रहे जिन के लिए ....... अहा बस मजा आ गया .... 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 23, 2017 at 9:53am

आदरनीय रवि भाई , बहुत अच्छी गज़ल कही है , हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार करें । आ. समर भाई जी की बात सही है ... इस पटल मे भी सुधार आवश्यक है ...  एक दोषपूर्ण मिसरा हमारे पटल मे क्यूँ रहे .... अतः मुझे भी पटल मे सुधार आवाश्यक लगता है ।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 20, 2017 at 4:28pm

वाह वा..आ रवि जी ....
समर सर की इस्लाह के बाद ग़ज़ल और भी   रँग में आ गयी है 
बधाई 

Comment by Samar kabeer on April 20, 2017 at 2:57pm
पटल पर भी सुधार कीजिये न ?
Comment by Ravi Shukla on April 20, 2017 at 1:04pm

आदरणीय समर साहब आदब गजल पर आपकी आमद का बहुत बहुत शुक्रिया साथ ही इस कीमती इस्‍लाह के लिये दिल से शुक्रिया  इससे यकीनन अशआर में और भी रौनक आगई मआनी और भी साफ हो गये । मूल प्रति में सुधार कर लिया है । इसी तरह स्‍नेह बनाए रखियेगा । सादर

Comment by Ravi Shukla on April 20, 2017 at 1:02pm

आदरणीय सुरेन्‍द्र जी गजल आपको पसंद आई उसके लिये आपका बहुत बहुत आभार

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