For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

रिश्तों में गर रार करोगे (तरही गजल)

22 22 22 22

रिश्तों में जब रार करोगे
कुनबा अपना ख्वार करोगे ||

पैर तुम्हारा बच पायेगा?
राहें गर पुर खार करोगे ||

जाति धर्म पर वोट दिया तो
मत अपना बेकार करोगे ||

हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई
सब इक, कब स्वीकार करोगे? ||

लोकतंत्र के तुम प्रहरी हो
भ्रष्ट तंत्र पर वार करोगे? ||

राजनीति बूढों से बोली
*हमसे कितना प्यार करोगे?* ||

धन के साथ बँटेगा दिल भी
जो ऊंची दीवार करोगे ||

चीर हरण फिर कोई करेगा
मर्यादा जो तार करोगे ||

'नाथ' कुँए में भांग पड़ी है
कैसे बेड़ा पार करोगे ||

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 768

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by नाथ सोनांचली on February 27, 2017 at 3:41pm
आदरणीय महेंद्र जी सादर आभार
Comment by नाथ सोनांचली on February 27, 2017 at 3:41pm
आदरणीय बृजेश कुमार ब्रज जी सादर आभार।
Comment by नाथ सोनांचली on February 27, 2017 at 3:41pm
आदरणीय महेंद्र जी सादर आभार
Comment by नाथ सोनांचली on February 27, 2017 at 3:40pm
आदरणीय महेंद्र जी सादर आभार
Comment by नाथ सोनांचली on February 27, 2017 at 3:40pm
आदरणीय महेंद्र जी सादर आभार
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on February 26, 2017 at 10:01am
बेहतरीन आदरणीय बहुत ही शानदार ग़ज़ल हुई ..बधाई
Comment by Mahendra Kumar on February 25, 2017 at 8:07pm
आदरणीय सुरेन्द्र जी, लाजवाब ग़ज़ल लिखी है आपने। दिल से बधाई स्वीकार कीजिए। सादर।
Comment by नाथ सोनांचली on February 24, 2017 at 6:01am
आदरणीय गुरप्रीत जी सादर आभार
Comment by नाथ सोनांचली on February 24, 2017 at 6:00am
मेरे लिखे अशआर आपको पसंद आये, इसके लिए मोहम्मद आरिफ जी बहुत बहुत आभार,
Comment by नाथ सोनांचली on February 24, 2017 at 5:59am
आदरणीय जयनित मेहता जी हौसला अफजाई के लिए सादर आभार।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

आंचलिक साहित्य

यहाँ पर आंचलिक साहित्य की रचनाओं को लिखा जा सकता है |See More
25 minutes ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"हर सिम्त वो है फैला हुआ याद आ गया ज़ाहिद को मयकदे में ख़ुदा याद आ गया इस जगमगाती शह्र की हर शाम है…"
54 minutes ago
Vikas replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"विकास जोशी 'वाहिद' तन्हाइयों में रंग-ए-हिना याद आ गया आना था याद क्या मुझे क्या याद आ…"
1 hour ago
Tasdiq Ahmed Khan replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"ग़ज़ल जो दे गया है मुझको दग़ा याद आ गयाशब होते ही वो जान ए अदा याद आ गया कैसे क़रार आए दिल ए…"
2 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"221 2121 1221 212 बर्बाद ज़िंदगी का मज़ा हमसे पूछिए दुश्मन से दोस्ती का मज़ा हमसे पूछिए १ पाते…"
2 hours ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेंद्र जी, ग़ज़ल की बधाई स्वीकार कीजिए"
4 hours ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"खुशबू सी उसकी लाई हवा याद आ गया, बन के वो शख़्स बाद-ए-सबा याद आ गया। वो शोख़ सी निगाहें औ'…"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"हमको नगर में गाँव खुला याद आ गयामानो स्वयं का भूला पता याद आ गया।१।*तम से घिरे थे लोग दिवस ढल गया…"
6 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"221    2121    1221    212    किस को बताऊँ दोस्त  मैं…"
6 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"सुनते हैं उसको मेरा पता याद आ गया क्या फिर से कोई काम नया याद आ गया जो कुछ भी मेरे साथ हुआ याद ही…"
13 hours ago
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।प्रस्तुत…See More
13 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"सूरज के बिम्ब को लेकर क्या ही सुलझी हुई गजल प्रस्तुत हुई है, आदरणीय मिथिलेश भाईजी. वाह वाह वाह…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service