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जूते की जुबानी (हास्य व्यंग्य)

मैं बेबस लाचार पड़ा, अपनी बात बताता हूँ |
मैं जूता सुन यार तुझे, किस्से आज सुनाता हूँ ||

शोभा नही हमारे बिन, राजा या रँक फकीर की |
हम चरणों के दास हुए, माया यहीं तकदीर की।

हमें पहन इंसान यहाँ, काँटों पर भी चलते हैं |
राह भले हो पथरीली, कदम नहीं ये रुकते हैं ||

इंसाँ तुच्छ समझता है, गिनता हमको रद्दी भर |
भूल गया इतिहास सभी, हम बैठे थे गद्दी पर ||

चौदह वर्षों तक हम भी, अवध देश की शान रहे |
शीश झुकाते श्रद्धा से, देते सब सम्मान रहे ||

मंदिर हो या हो मस्ज़िद, गिरजाघर या गुरुद्वारा |
अंदर जाना इनमे क्यूँ, वर्जित है यार हमारा ||

पूजा खण्डित होती क्यूँ, साथ हमे ले जाने से |
क्यूँ हम अपमानित होते, जैसे हो बेगाने से ||

पैर पिता के जूते में, बेटा का आ जाता है |
बाप बराबर बेटा तब, दुनियाँ में कहलाता है ||

सभी सालियाँ शादी में, जूते खूब चुराती हैं |
फिर पैसों का आग्रह कर, दूल्हे को समझाती हैं ||

अभी समय पास तुम्हारे, यह समझ नहीं पाता तूँ |
नंगे पाँव पड़ा फिर भी, क्यों भाग नही जाता तूँ ||

दूल्हा जूते चोरी को, केवल रस्म समझता है |
जीवन भर नासमझी की, भारी कीमत भरता है ||

अगर रहे हम पैरों में, सबका मान बढ़ाते हैं |
गर पड़ जाएं गले किसी, शर्मसार कर जाते हैं ||

करो हमारी भी इज्जत, नहीं उछालो नेता पर |
हम पैरो में ही जँचते, राजा रँक अभिनेता पर ||

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by नाथ सोनांचली on January 15, 2017 at 11:33am
शेख शहजाद उस्मानी साहब, रचना पर अमूल्य समय देकर हौसला अफजाई के लिए ह्रदय की गहराईयो से आभार आपका, सादर
Comment by नाथ सोनांचली on January 15, 2017 at 11:32am
आदरणीय विजय शंकर जी आपने रचना पढ़ कर हौसला अफजाई किया,, उसके लिए ह्रदय तल से आपका आभार
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on January 15, 2017 at 11:14am
गंभीर विषय पर हास्य व्यंग्य के पुट लिए कटाक्ष पूर्ण संदेश वाहक शिक्षाप्रद सृजन के लिए सादर हार्दिक बधाई आपको आदरणीय सुरेंद्र नाथ कुशक्षत्रप जी ।
Comment by Dr. Vijai Shanker on January 13, 2017 at 10:34am
अच्छा है , बधाई , आदरनीय सुरेंद्र नाथ कुशक्षत्रप जी , सादर।
Comment by नाथ सोनांचली on January 11, 2017 at 9:42pm
आदरणीय सुशील सरना जी मेरे लिखे को मान देने और हौसलाअफजाई करने के लिए हृदय तल से आभार।
Comment by नाथ सोनांचली on January 11, 2017 at 9:41pm
आदरणीय सुशील सरना जी मेरे लिखे को मान देने और हौसलाअफजाई करने के लिए हृदय तल से आभार।
Comment by Sushil Sarna on January 11, 2017 at 7:15pm

वाह आदरणीय जूते को केंद्रित कर सुंदर व्यंगात्मक एवम सार्थक प्रस्तुति बन पड़ी है। इस सृजन के लिए हार्दिक बधाई सर। 

Comment by नाथ सोनांचली on January 11, 2017 at 7:13pm
आद0 मोहम्मद आरिफ जी स्वागत है, आपकी उत्साहवर्धन से हौसला बढ़ा है, आभार आपका
Comment by नाथ सोनांचली on January 11, 2017 at 7:12pm
आद0 समर कबीर साहब, आपके स्नेहिल प्रेम और प्रशंशा का मई ऋणी हूँ, आभार आपका। आपके बताये गए सुझाव पर ध्यान देते हुए परिवर्तन करूँगा
Comment by नाथ सोनांचली on January 11, 2017 at 7:11pm
आद0 मिथिलेश जी, आपसे प्रशंशा पाकर नयी ऊर्जा का संचार हुवा, आभार आपका हौसला आफजाई के लिए

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