For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अरुणोदय के अभिनन्दन में
खगकुल गाते गीत सुहाने |
शैल शिखर हो रहे सुशोभित
चुनरी ओढ़ी लाल, धरा ने ||

हुआ तेज जब अरुणोदय का
निशा सशंकित लगी भागने
हँसता पूरब देख चंद्र को
पल्लव सभी लगे मुस्काने ||

पंकज आतुर खिलने को अब
देख कुमुदिनी तब मुरझाई |
अलिदल दौड़ पड़े फूलो पर
कीट पंख में हलचल आई ||

मलय समीर की मन्द बयार
मदहोश कर रही अधरों को |
रवि की नव किरणों को पाकर,
शीतलता मिलती नजरो को ||

स्वागत करती है वसुंधरा
नव बेला का बाहें पसार |
दिनकर भी प्रमुदित मिलन हेतु
स्वर्ण रश्मियों पर हो सवार ||

मनुज उठो, देखो नव विहान
संचार करो फिर यौवन का|
काल चक्र के साथ चलो तुम
क्यों व्यर्थ करें पल जीवन का ||

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 2765

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by नाथ सोनांचली on January 18, 2017 at 11:17am
आदरणीय मिथेलश जी यह रचना को मैंने आचार्य महावीर प्रसाद जी द्वारा लिखित निबन्ध से लिया है।
महाकवि माघ का प्रभात वर्णन
महावीर प्रसाद द्विवेदी

(आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी जी ने प्रस्तुत निबंध के द्वारा संस्कृत के प्रसिद्ध कवि माघ के जीवंत प्रकृति चित्रण की एक झलक प्रस्तुत करते हुए उनके प्रभात-वर्णन सम्बन्धी हृदयस्पर्शी स्थलों को अत्यन्त कुशलता से हमारे समक्ष रखा है।)

इस निबन्ध को स्कूली जीवन में पढ़ा था, पर भूल वस नाम गलत बोल गया। महाकवि बाण की बजाय महाकवि माघ का प्रभात वर्णन से प्रेरित रचना है मेरी। भूल के लिए क्षमा।
Comment by नाथ सोनांचली on January 18, 2017 at 4:50am
आदरणीय मिथिलेश जी अवश्य साझा करूँगा, आधुनिक पूत से मेरा आशय आज के कवियो की तरह किसी शिल्प को न लेने से था, क्योकि अभी शिल्प में कच्चा हूँ, पर अनवरत सीख रहा हूँ, परिणाम भी आपके सामने है, और उम्मीद भी की जल्द कुछ इससे बेहतर करूँगा। सादार

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 18, 2017 at 4:43am

आदरणीय सुरेन्द्र जी, आपने महाकवि बाण के प्रभात वर्णन से प्रेरित होकर यह प्रस्तुति लिखी है तो सुलभ सन्दर्भ हेतु उसे अवश्य साझा कीजियेगा. महाकवि बाण ने 'हर्षचरित' में दो बार और 'कादम्बिनी' में दो बार प्रभात वर्णन किया है. यह आपने किस प्रभात वर्णन से प्रेरित होकर लिखा है उसका संक्षिप्त विवरण देंगे तो मंच को भी इसका लाभ होगा. चूंकि ये ग्रन्थ संस्कृत में हैं इसलिए इन्हें ज्यादा पढ़ा नहीं है. काफ़ी पहले अनुवाद पढ़ा था किन्तु अब बहुत ज्यादा याद भी नहीं है. 

दूसरी बात आपने अपनी प्रस्तुति के विषय में कहा है - //यह एक आधुनिक कविता के पुट लिए रचना है।// और //इस रचना को गीत न समझ कर आधुनिक कविता की मान्यता दीजिये// इन कथनों के आधार पर भी आपका मार्गदर्शन निवेदित है. चूंकि कथन आपके है अतः इस प्रस्तुति के सन्दर्भ में इनका तात्पर्य भी आप ही अच्छे से समझा सकते है. सादर 

Comment by नाथ सोनांचली on January 18, 2017 at 4:10am
आद0 मिथिलेस जी आपने मुझ जैसे अनगढ़ की दिल की बात कह दी हैं, हम भी यहाँ सिखने आये हैं क्योकि और कोई दूसरा मंच नही, जहाँ सिखने को मिले, किसी गुस्ताखी के लिए क्षमा,,

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 18, 2017 at 3:59am

आदरणीय बृजेश जी, आप मंच के वरिष्ठ सदस्य हैं। आप मंच पर मुझसे काफी पहले से सक्रीय है। मंच के आयोजनों में आप कई विधाओं में लिख चुके हैं। आपकी गीत, नवगीत, अतुकांत, ग़ज़ल, छंद, लघुकथा आदि कई विधाओं में मंच पर प्रस्तुत रचनाओं को पढ़ा और उनसे सीखा भी है. इसलिए आपसे केवल निवेदन कर सकता हूँ कि मंच पर आये नव अभ्यासियों से आप प्रश्न करने की बजाय उनका मार्गदर्शन करने की कृपा करें। इस मंच के हम सभी नव-अभ्यासियों को आपके मार्गदर्शन की आवश्यकता है. आप कई-कई विधाओं के एक लम्बी अवधि से अभ्यासी हैं और कई विधाओं में पारंगत भी है. अतः आपसे प्रश्नों के उत्तर की अपेक्षा अधिक है. आपके जैसे पारंगत अभ्यासी के प्रश्नों का उत्तर नव अभ्यासी कैसे और कितना दे पाएंगे, यह आप भी भलीभांति समझते हैं. आपके उठाये प्रश्न वाजिब होते हैं लेकिन क्या यह सही नहीं हैं कि उनके उत्तर भी आपके पास ही हैं. यदि कोई प्रस्तुति या उसकी पंक्तियाँ प्रश्न खड़ा कर रही है तो यकीन मानिए रचनाकार उससे अनभिज्ञ है या उस दिशा में सोच नहीं सका है. इस कारण कोई त्रुटी हुई है. आप अपने लम्बे अभ्यास और अनुभव के आधार पर यदि मार्गदर्शन करें तो नव अभ्यासियों को लाभ भी होगा. अन्यथा नव अभ्यासी अपनी प्रस्तुति के पक्ष में तर्क देने में ही अपनी उर्जा नष्ट करते रह जायेंगे. आप मंच के वरिष्ठ सदस्य हैं और मेरे लिए अग्रज और बड़े भाई के समान है. इसलिए इतना कहने की धृष्टता कर गया. मेरा निवेदन स्वीकार कर हम नव अभ्यासियों को अनुगृहित करेंगे, इसी आशा के साथ क्षमा सहित निवेदन कर रहा हूँ.  

जहाँ तक इस प्रस्तुति की बात है तो मेरी  समझ से यह 16-16 मात्रा आधारित द्विपदियां हैं। गीत के मुखड़े और अन्तरे का पारंपरिक प्रारूप इसमें नहीं हैं। इसलिए निवेदन किया था। आप इस पर ज्यादा अच्छे से रौशनी डाल सकते हैं. सादर

Comment by नाथ सोनांचली on January 17, 2017 at 11:05pm
त्रुटि सुधार----- अवश्य साझा करें।
Comment by नाथ सोनांचली on January 17, 2017 at 11:05pm
त्रुटि सुधार----- अवश्य साझा करें।
Comment by नाथ सोनांचली on January 17, 2017 at 11:04pm
आदरणीय बृजेश नीरज जी शायद मैं अपनी बात रचना में नही कह पाया, उसके लिए आप क्यों क्षमा प्रार्थी हुए, रही बात सीखने की तो खैर उसकी बात क्या कहूँ, मैं खुद विगत 4 महीने से लिखना शुरू किया हूँ, पर यही चाहता हूँ की आप लोग जो भी गलती समझ पाए मेरी, उसे अवश्य साझा करें न। साथ में थोड़ा हौसला अफ़जाई भी, जिससे हम जैसे पहली कक्षा वाले विद्यार्थी भी सीख सके,। इस क्रम में आद0 सौरभ पांडेय जी, मिथिलेश वामनकर जी और आद0 समर कबीर साहब का शुक्रगुजार भी हूँ, कि समय समय पर सार्थक सुझाव भी देते रहते है। सादर
Comment by बृजेश नीरज on January 17, 2017 at 10:49pm

भाई मिथिलेश जी कुछ दिक्कत थी कंप्यूटर के टाइपिंग टूल में जिससे काफी देर से अक्षर स्क्रीन पर आ रहे थे जिसके कारण टिप्पणी संशोधित न हो सकी.

वैसे भी यह रचना गीत नहीं है तो किस विधा में है? प्रथम दृष्टया यह मुझे गीत जैसा लगा, बाकी मैं पहले निवेदित कर चुका हूँ. 

सुरेन्द्र जी किसी तरह की आधुनिक कविता बता रहे हैं, मुझे इसकी जानकारी नहीं थी.

सुरेन्द्र भाई आपने यह कविता बाण को पढ़कर लिखी है और मैंने बाण को पढ़ा नहीं है. समस्या मेरे लिए तो और विकट हो गई.

रही बात हौसला अफजाई की तो भाई मैं अभी तक उसी पंक्ति पर अटका हूँ.

'हुआ तेज जब अरुणोदय का' - मैं इस पंक्ति का मतलब नहीं समझ पाया. अरुणोदय का 'क्या' तेज़ हुआ? यह पंक्ति मुझे स्पष्ट नहीं हो पा रही.

फिर निशा जब भागने लगी तब 'हँसता पूरब देख चंद्र को' क्यों? 

भाई मैं साहित्य के ककहरे पर अटका हूँ इसलिए बाण के स्तर पर लिखी इस रचना के निहितार्थ नहीं समझ पा रहा. इसके लिए मैंने अपनी पूर्व टिप्पणी में क्षमा भी माँगी थी.

एक बार पुनः क्षमा प्रार्थी हूँ.

Comment by नाथ सोनांचली on January 17, 2017 at 4:00am
आदरणीय मिथिलेस जी आप मेरी रचना पर मुझे स्नेहयुक्त सलाह और बहुत ही बढ़िया सिखाने का प्रयास करते है, इसके लिए आभारी हूँ, आगे भी प्यार बना रहे।सादर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Vikas is now a member of Open Books Online
10 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम्. . . . . गुरु
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । विलम्ब के लिए क्षमा "
yesterday
सतविन्द्र कुमार राणा commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"जय हो, बेहतरीन ग़ज़ल कहने के लिए सादर बधाई आदरणीय मिथिलेश जी। "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"ओबीओ के मंच से सम्बद्ध सभी सदस्यों को दीपोत्सव की हार्दिक बधाइयाँ  छंदोत्सव के अंक 172 में…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, जी ! समय के साथ त्यौहारों के मनाने का तरीका बदलता गया है. प्रस्तुत सरसी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह वाह ..  प्रत्येक बंद सोद्देश्य .. आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, आपकी रचना के बंद सामाजिकता के…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाई साहब, आपकी दूसरी प्रस्तुति पहली से अधिक जमीनी, अधिक व्यावहारिक है. पर्वो-त्यौहारों…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी  हार्दिक धन्यवाद आभार आपका। आपकी सार्थक टिप्पणी से हमारा उत्साहवर्धन …"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी छंद पर उपस्तिथि उत्साहवर्धन और मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार। दीपोत्सव की…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय  अखिलेश कॄष्ण भाई, आयोजन में आपकी भागीदारी का धन्यवाद  हर बरस हर नगर में होता,…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी छन्द पर उपस्तिथि और सराहना के लिए हार्दिक आभार आपका। दीपोत्सव की हार्दिक…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service