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फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ा

दौर-ए-जवानी के हमको रंगीन ज़माने याद आये
महफ़िल में यारों से वो साग़र टकराने याद आये

तन्हाई में भूले बिसरे सब अफ़साने याद आये
जिनमें ग़म की रातें गुज़रीं, वो मैख़ाने याद आये

दिल मुट्ठी में लेकर कोई भींच रहा यूँ लगता था
ग़म की काली रातों में जब ख़्वाब सुहाने याद आये

इक मुद्दत के बाद ख़ुशी ने दरवाज़े पर दस्तक दी
दिल घबराया और मुझे कुछ यार पुराने याद आये

सब कुछ खोकर बर्बादी के सहरा में जब जागे हम
अपनों की साज़िश के सारे ताने बाने याद आये

हमने देखा हर शाइर के होटों पर ये मिसरा था
"तुम याद आये और तुम्हारे साथ ज़माने याद आये"

--समर कबीर
मौलिक/अप्रकाशित

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Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 26, 2016 at 9:10pm

मतला फिर हुस्ने मतला और गजल , क्या खूब कही आपने आ० समर कबीर साहिब और गिरह तो बिलकुल लीक से हटकर लाजवाब . सादर .

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 26, 2016 at 8:41pm
दिल मुट्ठी में लेकर कोई भींच रहा यूँ लगता था
ग़म की काली रातों में जब ख़्वाब सुहाने याद आये

इक मुद्दत के बाद ख़ुशी ने दरवाज़े पर दस्तक दी
दिल घबराया और मुझे कुछ यार पुराने याद आये

बेहतरीन बेहतरीन..बहुत ही बेहतरीन...नमन करता हूँ
Comment by Mahendra Kumar on December 26, 2016 at 8:05pm
और हाँ, इस बार मुशायरे में आपकी कमी शिद्दत से महसूस हुई आदरणीय समर सर। सादर।
Comment by Mahendra Kumar on December 26, 2016 at 8:01pm
आदरणीय समर कबीर सर, बहुत ही शानदार ग़ज़ल कही है आपने। सभी शेर एक से बढ़कर एक हैं। शेर दर शेर दाद के साथ मुबारक़बाद क़ुबूल फरमाएँ। सादर।
Comment by TEJ VEER SINGH on December 26, 2016 at 1:53pm

हार्दिक बधाई आदरणीय समर क़बीर साहब। आदाब ।बेहतरीन गज़ल।

सब कुछ खोकर बर्बादी के सहरा में जब जागे हम
अपनों की साज़िश के सारे ताने बाने याद आये |

Comment by Ashok Kumar Raktale on December 26, 2016 at 1:19pm

इक मुद्दत के बाद ख़ुशी ने दरवाज़े पर दस्तक दी
दिल घबराया और मुझे कुछ यार पुराने याद आये..........वाह ! बहुत खूब.

आदरणीय समर कबीर साहब सादर नमस्कार, बहुत खूबसूरत गजल हुई है यह आपकी गिरह भी जोरदार है. सादर.

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