अक्षय गीत ....
मैं हार कहूँ या जीत कहूँ ,या टूटे मन की प्रीत कहूँ
तुम ही बताओ कैसे प्रिय ,मैं कोई अक्षय गीत कहूँ
मैं पग पग आगे बढ़ता हूँ
कुछ भी कहने से डरता हूँ
पीर हृदय की कह न सकूं
बन दीप शलभ मैं जलता हूँ
शशांक का विरह गीत कहूँ,या रैन की निर्दयी रीत कहूँ
तुम ही बताओ कैसे प्रिय , मैं कोई अक्षय गीत कहूँ
अतृप्त तृषा है. घूंघट में
अधरों की हाला प्यासी है
स्वप्न नीड़ पर नयनों के
पी बिन घोर उदासी है
देह की अतृप्त धड़कन को ,निष्ठुर पलों का संगीत कहूँ
तुम ही बताओ कैसे प्रिय , मैं कोई अक्षय गीत कहूँ
सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
आदरणीय Ram Asheryजी प्रस्तुति के भावों को आत्मीय मान देने का दिल से आभार।
अति सुंदर रचना आपने अपने मन की अभिव्यक्ति बहुत ही सुंदर ढंग से प्रस्तुत की है आपको बहुत बहुत बधाई स्वीकार हो
आदरणीय vijay nikore जी प्रस्तुति के भावों को आत्मीय मान देने का दिल से आभार।
बहुत ही सुन्दर गीत, भाव भी उच्च-कोटि के ... हार्दिक बधाई आदरणीय सुशील सरना जी।
आदरणीय सुरेश कुमार 'कल्याण' जी प्रस्तुति के भावों को आत्मीय मान देने का दिल से आभार।
आदरणीय डॉ गोपाल जी भाई साहिब प्रस्तुति को अपना मूल्यवान समय देकर उसके तकनीकि पक्ष से रूबरू करवाना .... हृदय आपको नमन करता है। प्रथम तो सृजन को प्रोत्साहन देने का हार्दिक आभार। आपके द्वारा इंगित मात्रिक त्रुटि को मैं सुधार कर इसे आपकी कसौटी पर खरा उतारने का पूरा प्रयास करूंगा। सृजन आपके मार्गदर्शन का दिल से आभारी है।
आदरणीय समर कबीर साहिब व्यस्तता के बीच भी आपका प्रस्तुति को अपना आशीर्वाद देना ... दिल नमन एवम हार्दिक आभार व्यक्त करता है।
आदरणीय Mahendra Kumar जी प्रस्तुति के भावों को आत्मीय मान देने का दिल से आभार।
आ० सरना जी , आपकी रचना 16 मात्रिक छंद पर चलकर बीच बीच में टूट गयी है यानी कि मात्राए पूर्ण नहीं रह पायी इससे गेयता बाधित हुयी है जैसे -
मैं हार कहूँ या जीत कहूँ , या टूटे मन की प्रीत कहूँ
2 2 1 1 2 2 2 1 1 2 2 2 2 2 2 2 1 1 2 (16,16) अरिल्ल की भाँति
तुम ही बताओ कैसे प्रिय , मैं कोई अक्षय गीत कहूँ
2 2 1 2 2 2 2 2 2 2 2 2 2 2 1 1 2 (15,16) अरिल्ल में प्रत्येक चरण का प्रथम अक्षर गुरु होता है जैसा अपने किया भी है पर 'तुम ही बताओ में प्रथम अक्षर गुरु न होने से गड़बड़ हो गयी . पूरी कविता इस निकष पर कसेंगे तो लाजवाब गीत बन जाएगा. सादर .
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online