For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

पिता की मृत्यु के बारह दिन गुज़र गये थे, नाते-रिश्तेदार सभी लौट गये। आखिरी रिश्तेदार को रेलवे स्टेशन तक छोड़कर आने के बाद, उसने घर का मुख्य द्वार खोला ही था कि उसके कानों में उसके पिता की कड़क आवाज़ गूंजी, "सड़क पार करते समय ध्यान क्यों नहीं देता है, गाड़ियाँ देखी हैं बाहर।"

 

उसकी साँस गहरी हो गयी, लेकिन गहरी सांस दो-तीन बार उखड़ भी गयी। पिता तो रहे नहीं, उसके कान ही बज रहे थे और केवल कान ही नहीं उसकी आँखों ने भी देखा कि मुख्य द्वार के बाहर वह स्वयं खड़ा था, जब वह बच्चा था जो डर के मारे कांप रहा था।

 

वह थोड़ा और आगे बढ़ा, उसे फिर अपने पिता का तीक्ष्ण स्वर सुनाई दिया, "दरवाज़ा बंद क्या तेरे फ़रिश्ते करेंगे?"

 

उसने मुड़ कर देखा, वहां भी वह स्वयं ही खड़ा था, वह थोड़ा बड़ा हो चुका था, और मुंह बिगाड़ कर दरवाज़ा बंद कर रहा था।

 

दो क्षणों बाद वह मुड़ा और चल पड़ा, कुछ कदम चलने के बाद फिर उसके कान पिता की तीखी आवाज़ से फिर गूंजे, "दिखाई नहीं देता नीचे पत्थर रखा है, गिर जाओगे।"

 

अब उसने स्वयं को युवावस्था में देखा, जो तेज़ चलते-चलते आवाज़ सुनकर एकदम रुक गया था।

 

अब वह घर के अंदर घुसा, वहां उसका पोता अकेला खेल रहा था, देखते ही जीवन में पहली बार उसकी आँखें क्रोध से भर गयीं और पहली ही बार वह तीक्ष्ण स्वर में बोला, "कहाँ गये सब लोग? कोई बच्चे का ध्यान नहीं रखता, छह महीने का बच्चा अकेला बैठा है।"

 

और उसे ऐसा प्रतीत हुआ जैसे उसके पैरों में उसके पिता के जूते हैं।

(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 569

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on December 8, 2016 at 12:20pm

बहुत-बहुत आभार आदरणीय समीर कबीर जी, आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सर, आदरणीय लक्ष्मण रामानुज लडीवाला जी, आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी सर, आदरणीया नीता कसार जी, आदरणीय भाई  जितेन्द्र पस्टारिया जी, आदरणीय विजय निकोरे जी, आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी साहब, यह प्रयास आप सभी को ठीक लगा, आप सभी सुधीजनों ने अपनी टिप्पणी द्वारा मेरा उत्साहवर्धन किया| सादर, 

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on December 6, 2016 at 8:00pm
जीवन के विभिन्न पड़ाव पर पिता जी की दी हुई शिक्षाओं, हिदायतों ताक़ीदों को याद करता बेटा पिता के पदचिन्हों पर सहज चल पड़ता बेटा ... बहुत ही उम्दा बेहतरीन भावपूर्ण शिल्पबद्ध प्रवाहमय विचारोत्तेजक प्रभावोत्पादक सृजन के लिए तहे दिल से बहुत बहुत मुबारकबाद मोहतरम जनाब चन्द्रेश कुमार छतलानी जी।
Comment by vijay nikore on December 6, 2016 at 7:36am

अति प्रभावपूर्ण लघु कथा। बधाई।

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on December 6, 2016 at 1:05am
बहुत उम्दा विषय पर लिखी यह लघु कथा दिल को छू गई. आपकी लखनी को नमन आदरणीय चंद्रेश जी.. .
Comment by Nita Kasar on December 5, 2016 at 3:37pm
कथा में आपने जीवन की सभी अवस्थायें,बाल्यावस्था ,किशोरावस्था और वृद्धावस्था सबका सुंदर समायोजन कर स्पष्ट किया है ,पिता हो या माँ सदा साये की तरह साथ रहते है बधाई आपको ।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 5, 2016 at 3:21pm

वाह वाह चंद्रेश जी क्या पञ्च मारा है . बहुत बहुत बधाई . 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 5, 2016 at 1:07pm

"और उसे ऐसा प्रतीत हुआ जैसे उसके पैरों में उसके पिता के जूते हैं।"  पिता के आद्रते और उनके संस्कार आते ही है |  उनकी यादें कब पीछा छोडती है | दायित्व बोध कराती बहुत सुंदर लघु कथा के लिए हार्दिक बधाई


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 4, 2016 at 10:26pm

आदरणीय चंद्रेश जी, सिर पर पिता का हाथ होना, जीवन का सबसे बड़ा संबल होता है. जब तक पिता का हाथ होता है तब तक उम्र चाहे जो हो जाये लेकिन बेटा बच्चा ही बना रहता है. लेकिन जब स्वयं पिता बनने का दायित्व आता है तब भीतर का बहुत कुछ बदलने लगता है. अपने शीर्षक को सार्थक करती बहुत प्रभावोत्पादक लघुकथा लिखी है आपने. इस शानदार प्रस्तुति पर बहुत बहुत बधाई. सादर 

Comment by Samar kabeer on December 4, 2016 at 2:59pm
जनाब चन्द्रेश जी आदाब,बहुत उम्दा लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
" जी ! सही कहा है आपने. सादर प्रणाम. "
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी, एक ही छंद में चित्र उभर कर शाब्दिक हुआ है। शिल्प और भाव का सुंदर संयोजन हुआ है।…"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति स्नेह और मार्गदर्शन के लिए बहुत बहुत…"
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"अवश्य, आदरणीय अशोक भाई साहब।  31 वर्णों की व्यवस्था और पदांत का लघु-गुरू होना मनहरण की…"
5 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय भाई लक्षमण धामी जी सादर, आपने रचना संशोधित कर पुनः पोस्ट की है, किन्तु आपने घनाक्षरी की…"
6 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी   नन्हें-नन्हें बच्चों के न हाथों में किताब और, पीठ पर शाला वाले, झोले का न भार…"
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति व स्नेहाशीष के लिए आभार। जल्दबाजी में त्रुटिपूर्ण…"
7 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आयोजन में सारस्वत सहभागिता के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी मुसाफिर जी। शीत ऋतु की सुंदर…"
10 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"शीत लहर ही चहुँदिश दिखती, है हुई तपन अतीत यहाँ।यौवन  जैसी  ठिठुरन  लेकर, आन …"
17 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सादर अभिवादन, आदरणीय।"
17 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सभी सदस्यों से रचना-प्रस्तुति की अपेक्षा है.. "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। लम्बे अंतराल के बाद पटल पर आपकी मुग्ध करती गजल से मन को असीम सुख…"
Friday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service