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तरही ग़ज़ल --बेहोश इक नजर में हुई अंजुमन तमाम ( राज )

221   2121  1221   212/2121 

पर्दा जो उठ गया तो हुआ काला धन तमाम

चोरों की ख्वाहिशों के जले तन बदन तमाम

 

बरसों से जो महकते रहे भ्रष्ट इत्र  से

इक घाट पे धुले वो सभी पैरहन तमाम

 

बावक्त असलियत का मुखौटा उतर गया

किरदार का वजूद हुआ दफ़अतन तमाम

 

ये बंद खिड़कियाँ जो खुली, पस्त हो गई    

सब झूट औ फरेब की बदबू घुटन तमाम 

 

परवाज पर लगाम जो माली ने डाल दी

भँवरे का हो गया वो तभी बाँकपन तमाम

 

ईलाज  में दवाएँ भी नाकाम हो रही

ईमान की खुराक से सुधरे वतन तमाम

 

जादू न जाने क्या था मदारी के खेल में

बेहोश इक नजर में हुई अंजुमन तमाम

----मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 25, 2016 at 7:32pm
वाह आदरणीया वाह खुब चित्रण किया है..
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on November 25, 2016 at 6:06pm

मुहतरम जनाब मिथिलेश साहिब , आप सही कह रहे हैं , मिसरा बहर में है लेकिन" और "करने से
मिसरा सुन्दर लग रहा है ----सादर

Comment by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on November 25, 2016 at 11:42am

आदरणीया राजेश कुमारी जी ,अच्छी ग़ज़ल हुई है , मुबारकबाद क़ुबूल करें |

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on November 25, 2016 at 6:06am
तीसरे, चौथे व पाँचवें बेहतरीन दमदार अशआर के साथ वर्तमान परिदृश्य पर बेबाक लेखनी की इस पेशकश के लिए तहे दिल से बहुत बहुत मुबारकबाद मोहतरमा राजेश कुमारी साहिबा।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on November 24, 2016 at 9:56pm
आदरणीय राजेश दीदी , बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने। दाद ओ मुबारकबाद कुबूल फरमाएं।
सभी पैरहन = पैरहन तमाम
आदरणीय तस्दीक जी मुझे वह मिसरा बह्र में लग रहा है।
।।सब झूट औ फरेब की बदबू घुटन तमाम ।।
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on November 24, 2016 at 9:30pm

मुहतरमा राजेश कुमारी साहिबा ,अच्छी तरही ग़ज़ल हुई है , दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं
शेर 4 के सानी मिसरे में " झूट औ फरेब " को" झूट और फरेब " करने से लय और बहर बनी रहेगी
देख लीजियेगा ---शेर 6 के सानी मिसरे में सही शब्द इलाज है " ईलाज " नहीं , मुनासिब समझें तो इसकी
जगह " तदबीर " करलें तो मिसरा बहर में हो जायेगा -----सादर

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