For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

व्यथित मन .....

कहते हैं
अंतर्मन की व्यथा को
कह देने से
हल्का हो जाता है
मन

कहा
आईने से
तो बिम्ब देख
और भी
व्यथित हो गया
मन

कहा
एकांत से
तो अंधेरों में
अट्टहास करती
असंख्य ध्वनियों ने
चीर डाला
व्यथित
मन

कहा
स्वप्न से
तो स्मृतियों के
सागर पर
मिल गया
मुझ जैसा ही
एक और
तन्हा
व्यथित
मन


देखा उसे
तो और भी
व्यथित हो गया
मन ही मन

ये

मन 

व्यथा
गर्म लावे सी
निर्झरणी बन
बह निकली

भावों की सुलगन में

जल गए
मन के

कुछ अनकहे
व्यथित अंश
मिट गयी
सारी व्यथा
एक बूँद
लावे में
मन को
मिल गया
एक और
मन

निर्मल हो
समा गया
निस्संकोच
किसी
मन के
मन में
ये
व्यथित
मन

सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित

Views: 762

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on November 24, 2016 at 8:11pm

आदरणीय डॉ. गोपाल जी भाई साहिब आप जैसे गुणीजनों की  ऐसी प्रशंसा से अलंकृत हो कौन रचनाकार स्वयं को धन्य न मानेगा। आपके इस आशीर्वाद का हार्दिक हार्दिक आभार सर. 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 23, 2016 at 7:48pm

आ० सरना जी आपको शब्दों का चतुर बाजीगर कहू तो अत्युक्ति नहीं होगी. सादर  

Comment by Sushil Sarna on November 23, 2016 at 12:48pm

आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपके आगमन से उपकृत हुआ। आपकी आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार। मंच पर आपकी कमी खलती रही। 

Comment by Sushil Sarna on November 23, 2016 at 12:46pm

आदरणीय समर कबीर साहिब प्रस्तुति में निहित भावों को अपने आत्मीय स्नेह से पोषित कर मान देने का  दिल से आभार। 

Comment by Sushil Sarna on November 23, 2016 at 12:45pm

आदरणीय समर कबीर साहिब प्रस्तुति में निहित भावों को अपने आत्मीय स्नेह से पोषित कर मान देने का  दिल से आभार। 

Comment by Sushil Sarna on November 23, 2016 at 12:44pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी जी प्रस्तुति में निहित भावों को समर्थन देती आपकी आत्मीय प्रशंसा का दिल से आभार। 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on November 22, 2016 at 5:55pm

आदरणीय सुशील सरना सर, व्यथित मन की अकुलाहट को शब्दिक करती बहुत शानदार प्रस्तुति हुई है. बहुत बहुत बधाई. सादर 

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on November 22, 2016 at 3:15pm
सही कहा है आपने आदरणीय सुशील सरना सर । बधाई आपको इस रचना के लिये ।
Comment by Samar kabeer on November 22, 2016 at 2:57pm
जनाब सुशील सरना जी आदाब,फ़िक्र में डूबी अच्छी कविता लिखी अपने,इस प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार करें ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 22, 2016 at 1:58pm

व्यथा
गर्म लावे सी
निर्झरणी बन
बह निकली

भावों की सुलगन में

जल गए
मन के

कुछ अनकहे
व्यथित अंश
मिट गयी
सारी व्यथा
एक बूँद
लावे में
मन को
मिल गया
एक और
मन    ---  आदरनीय बहुत सही बात कही आपने , ऐसे ही तो व्यथा बह जाती है और मन हल्का हो जाता है ... आपको कविता के लिये हार्दिक बधाइयाँ ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

बृजेश कुमार 'ब्रज' posted a blog post

गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा

सार छंद 16,12 पे यति, अंत में गागाअर्थ प्रेम का है इस जग मेंआँसू और जुदाईआह बुरा हो कृष्ण…See More
4 hours ago
Deepak Kumar Goyal is now a member of Open Books Online
4 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"धन्यवाद आ. बृजेश जी "
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. बृजेश जी "
yesterday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"अपने शब्दों से हौसला बढ़ाने के लिए आभार आदरणीय बृजेश जी           …"
yesterday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहेदुश्मनी हम से हमारे यार भी करते रहे....वाह वाह आदरणीय नीलेश…"
yesterday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"आदरणीय अजय जी किसानों के संघर्ष को चित्रित करती एक बेहतरीन ग़ज़ल के लिए बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं…"
yesterday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आदरणीय नीलेश जी एक और खूबसूरत ग़ज़ल से रूबरू करवाने के लिए आपका आभार।    हरेक शेर…"
yesterday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय भंडारी जी बहुत ही खूब ग़ज़ल कही है सादर बधाई। दूसरे शेर के ऊला को ऐसे कहें तो "समय की धार…"
yesterday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"आदरणीय रवि शुक्ला जी रचना पटल पे आपका हार्दिक अभिनन्दन और आभार। लॉगिन पासवर्ड भूल जाने के कारण इतनी…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"जी, ऐसा ही होता है हर प्रतिभागी के साथ। अच्छा अनुभव रहा आज की गोष्ठी का भी।"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"अनेक-अनेक आभार आदरणीय शेख़ उस्मानी जी। आप सब के सान्निध्य में रहते हुए आप सब से जब ऐसे उत्साहवर्धक…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service